राणा की सेक्रेटरी ने खोले राज, रायपुर के व्यापारियों ने हटाई स्वाइप मशीनें

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महाकोशल न्यूज. मुंबई/रायपुर

मनीलांड्रिंग के मामले में गिरफ्तार यस बैंक के फाउंडर राणा कपूर 11 मार्च तक प्रवर्तन निदेशालय की हिरासत में हैं। इधर रविवार को हॉलिडे कोर्ट में ईडी ने बताया कि कैसे यस बैंक की पब्लिक मनी की राणा परिवार और डीएचएल के वधावन ब्रदर्स के बीच बंदरबांट की गई है। ईडी ने राणा की सेक्रटरी के जरिए करोड़ों के रिश्वत लेने की पूरी कहानी बयान की है। इस पूरे घटनाक्रम के बीच रायपुर के उन व्यापारियों ने अपनी दुकान से स्वाइप मशीनें हटा ली हैं, जिनका कनेक्शन यस बैंक से है। इससे ग्राहकों को भटकना पड़ रहा है।

बाम्बे मार्केट के करीब एक बेकरी के मालिक ने बताया कि जब से यस बैंक ने लिमिट तय की है तब से मशीनों ने काम करना बंद कर दिया है। इसकी वजह से कार्ड स्वाइप नहीं किए जा रहे। ऐसी ही हालत प्रदेश में कई व्यापारियों की है। हालांकि आरबीआई के द्वारा ग्राहकों को आश्वस्त किया जा रहा है कि उनका पैसा सुरक्षित है, इसके बावजूद लोग परेशान हैं। वहीं दूसरी ओर ईडी ने रविवार को हॉलिडे कोर्ट में अपने रिमांड ऐप्लिकेशन में मनी लॉन्ड्रिंग की पूरी कहानी को बताया कि किस तरह राणा कपूर ने अपने परिवार के नियंत्रण वाली कंपनियों के जरिए 2,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की रिश्वत ली। ईडी ने बताया है कि कैसे राणा की सेक्रेटरी लता दवे ने डीएचएफएल के अधिकारियों के साथ मिलीभगत करके 600 करोड़ रुपये का लोन लिया, जिसे रिश्वत माना जा रहा है। यह लोन डीओआईटी अर्बन वेंचर्स नाम की फर्म के लिए लिया गया, जिसकी कर्ताधर्ता यस बैंक के फाउंडर की तीनों बेटियां हैं। ईडी के मुताबिक, यह रिश्वत यस बैंक द्वारा डीएचएफल ग्रुप की कंपनियों के लिए मंजूर किए गए लोग और 4,450 करोड़ रुपये के डिबेंचर इन्वेस्टमेंट के बदले में चुकाई गई थी।

ईडी ने कहा- यस बैंक से दिए लोन के बदले ली गई रिश्वत
ईडी सूत्रों का आरोप है कि राणा कपूर ने कई अन्य मामलों में भी अपने पद का दुरुपयोग किया और अपने और अपने परिवार के नियंत्रण वाली कंपनियों के लिए 2,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के रिश्वत लिए। सीबीआई ने जब राणा कपूर और उनके परिवार के खिलाफ केस दर्ज किया तो ईडी और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने भी उनके खिलाफ अपनी जांच तेज कर दी। ईडी ने कोर्ट को बताया कि 600 करोड़ रुपये के लोन को मंजूरी देने के बाद यस बैंक ने अप्रैल 2018 से जून 2018 के बीच डीएचएफएल में 3,700 करोड़ रुपये का निवेश किया। इसके बाद यस बैंक ने डीएचएफएल ग्रुप की एक अन्य कंपनी को 750 करोड़ रुपये का दूसरा लोन दिया।

डीएचएफएल के अधिकारी ने ईडी के सामने खोले राज
डीएचएफएल के प्रेजिडेंट (प्रोजेक्ट फाइनैंस) राजेंद्र मिराशी ने ईडी को दिए अपने बयान में बताया कि डीओआईटी अर्बन वेंचर्स ने सिक्यॉरिटी के तौर पर 735 करोड़ रुपये कीमत बताकर अपनी 5 प्रॉपर्टीज को डीएचएफल को दिया। लेकिन बाद में पता चला कि इन संपत्तियों (अलीबाग और रायगढ़ में खेती की जमीन) की परचेज प्राइस सिर्फ 40 करोड़ रुपये थी। मिसाशी ने बताया कि इस दौरान उसकी कभी भी राणा कपूर की तीनों बेटियों से बातचीत नहीं हुई और पूरे मामले को राणा की सीनियर एग्जिक्यूटिव सेक्रटरी लता दवे ने हेंडल किया।

जिस कंपनी में कोई कारोबारी गतिविधि नहीं, उसे दे दिया लोन
इन लेनदेन के लिए मिराशी को डीएचएफएल के कपिल वधावन या उनके असिस्टेंट एस. गोविंदन निर्देश दिया करते थे। मिराशी ने ईडी को बताया कि डीओआईटी अर्बन वेंचर्स में कोई कारोबारी गतिविधियां या राजस्व नहीं होने के बावजूद उसे 600 करोड़ रुपये का लोन दिया गया। इतना ही नहीं, लोन को ऐसे स्ट्रक्चर किया गया कि प्रिंसिपल अमाउंट को 2023 में चुकाना था यानी 5 साल बाद और वह भी एक साथ।

ईडी का दावा- साढ़े चार हजार करोड़ की हेराफेरी
हालांकि, इस 750 करोड़ रुपये की हेराफेरी की पूरी कहानी वधावन ब्रदर्स के ही नियंत्रण वाली आरकेडब्लू डिवेलपर्स के सीए सोनपाल जैन ने ईडी को बताई है। जैन ने बताया कि बिलीफ रिएल्टर्स ने बांद्रा में एसआरए रीडिवेलपमेंट प्रोजेक्ट के नाम पर लोन लिया। लेकिन उसने तत्काल इस पूरी रकम को 3 अन्य ग्रुप कंपनियों के जरिए केवाईटीए अडवाइजर्स को ट्रांसफर कर दिया। इसके बाद केवाईटीए ने आरआईपी डिवेलपर्स को ट्रांसफर कर दिया और आखिर में ये रकम डीएचएफएल को ट्रांसफर कर दिया गया। खास बात यह है कि इस मनी लॉन्ड्रिंग साइकल में शामिल सभी कंपनियां वधावन ब्रदर्स के नियंत्रण वाली हैं।

जानिए ईडी के वकील ने कोर्ट में ये कहाज्

ईडी के विशेष वकील सुनील गोंजाल्वेस ने रविवार को कोर्ट को बताया कि ‘पब्लिक मनी के डिपॉजिट्स का इस्तेमाल 3700 करोड़ रुपये का लोन’ लेने में किया गया। इसके अलावा 600 करोड़ का एक अलग से लोन लिया गया। इस तरह कुल 4,300 करोड़ रुपये की हेराफेरी की गई। गोंजोल्वेस ने कोर्ट को बताया कि यस बैंक के पैसे को डीएचएफएल और परिवार की कंपनियों में बांटा गया जिसकी जांच की जरूरत है।

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