मुखिया के मुखारी –आपके उत्तर प्रदेश मोह के लिए हर छत्तीसगढ़ीया आपका आभारी है….
chhattisgarh.co 6 अक्टूबर 2021 : जद्दोजहद है राजनीतिक अस्तित्व बचाने की न तथ्य ,न सत्य , कथ्य के भरोसे राजनीतिक शक्ति पाने की साल भर से मुद्दे खोजे जा रहे, कैसे भी करके केंद्रीय राजनीति के केंद्र में आ जाएं कोरोना में खूब रोना किया पर कुछ कर नहीं पाए, सीएए, एनआरसी पर भी मचाया बहुत बवाल हासिल कुछ कर नहीं पाए।किसानों के भरोसे वोटों की फसल काटने की कर ली पूरी तैयारी पर वो भी अब धरी की धरी रह गई, मुद्दों के लिए मुर्दों के शरण में गए कोरोना में गंगा में बहती लाशों पर भी अपनी राजनीति बहा ले जाने की भरपूर कोशिश की । पतित पावन गंगा थी पाप करने वालों को पाप करने का मौका ही नहीं मिला । देश की राजनीति जितनी देश सेवा के लिए जानी जाती है उससे ज्यादा उसकी पहचान पारिवारिक सेवा की है ।
कई क्षेत्रीय दल और राष्ट्रीय राजनीति दल आकंठ परिवार हितों में डूबे हुए हैं, जहां सत्ता परिवार के लिए चाहिए। सत्ता के लिए ऐसा मोह उन्हें नैतिकता से कोसों दूर ले जा रहा जहां सब कुछ उनके लिए सत्ता और सत्ता ही है किसान आंदोलन के नाम पर अराजकता पूरे देश में फैलाने की असफल कोशिशे जारी है । क्षेत्र -विशेष के किसान हितों का राजनीति का मुद्दा बनाने वाले ,पूरे देश के किसानों की समस्याओं को समदर्शी होकर क्यों नहीं देखते ? पंजाब, केरल ,राजस्थान, महाराष्ट्र के किसानों की समस्याओं पर क्यों चुप्पी साध लेते हैं ? हे ! साधक वोटों के तुम्हारे लिए वोट के आगे जान की भी कीमत नहीं है । आंदोलनों के नाम पर कानून व्यवस्था बिगाड़ना आम गरीब कार्यकर्ताओं के जीवन को खतरे में डालना अब तुम्हारा शौक हो गया है।
खुद तो जनता के पैसे से हवाई जहाज और बड़ी-बड़ी गाड़ियों में सुरक्षा घेरा में चलेंगे। सिर्फ मुंह बजाएंगे, बज रही जिंदगियां आम कार्यकर्ताओं की है। लोकतंत्र राजाओं के पुत्र -पुत्रियों राजनीतिक युवराजों बस इतना बता दो कभी किसी आंदोलन में सामने क्यों नहीं खड़े होते हो? किसान मर गए या मार दिए गए? कानून टूट गया या जानबूझकर तोड़ दिया गया ? तुमने लाठी से पीट-पीटकर हत्या कर कौन सा इंसाफ दे दिया, ये परिस्थितियां बनी क्यों सत्तर साल की आजादी के बाद भी देश का किसान गरीब और देश के नागरिक गरीबी रेखा के नीचे जीते है । तो तुम्हे कैसे ये राजशाही जीवन जीने का पेंशन का अधिकार है उत्तर प्रदेश के साथ राजनीतिक संबंध जो छत्तीसगढ़ का जोड़ा जा रहा उससे छत्तीसगढ़ीयोँ को क्या फायदा मिल रहा ? पिछले वर्ष अमानक, किट नाशको कि वजह से गृहमंत्री एवं कृषिमंत्री के क्षेत्रों के अलावा प्रदेश में कई स्थानों पर किसानों ने आत्महत्याएं कि आदिवासियों पर गोलियां चली संरक्षित आदिवासियों के ऊपर लगातार अपराध हो रहे धर्मान्तरण का रोज -शोर है अब उस पर कवर्धा कि घटना का ना कोई ओर-छोर है ।
प्रदेश का राजनीतिक स्वास्थ ढाई – ढाई साल के चक्कर में ख़राब है अदावत का शिकार छत्तीसगढ़ के किस किसान को कब आपने पचास लाख मुआवजा दिया ? कवर्धा की घटना के लिए न शब्द सरकार के पास है, ना वहां के विधायक कुछ बोल रहे, विपक्ष भी मौन है पैसा हमारा ,सरकार हमारा चुना हमने और आप आंसू पोछने गए है उत्तरप्रदेश तो आंसू छत्तीसगढ़ियो की भी पोछ लेते किसानों ,आदिवासियों के आंसू पोछ न पाए तो क्या कवर्धा वालो के भी आंसू नही पोछने है । सरकार हमने सरकार चुनी थी ये सोचकर चुनी थी असर-कार रहेगी पर अफ़सोस आप तो राजनीति में मग्न है । अपनों को छोड़ आकाओं की मर्जी से अर्जी यू.पी. की लगाए बैठे है एक के साथ माँ और एक के साथ मौसी ये कैसी राजनीतिक प्रतिबद्धता है । निर्वाचित क्षेत्र से हो स्वनिर्वासित बहुमत का कर परित्याग ,अल्पमत में अलख जगाने चले है चार सौ से उपर विधायकों वाली सभा संभल जाएगी । यहां तो नब्बे में से सत्तर को ही संभालना आपके लिए भारी है । आपके उत्तर प्रदेश मोह के लिए हर छत्तीसगढ़ीया आपका आभारी है….
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल