मुखिया के मुखारी – – बस घाट में निगम ने घटा दिया मान रायपुर का….
गणेशोत्सव रायपुर की अपनी पहचान धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर दस दिन के हर्षोल्लास में पूरा शहर भक्तिमय हो जाता था , सांस्कृतिक समारोह के साथ पूरी रात श्री गणेश दर्शन के लिए लोग परिवार सहित जागते थे । शहर लाइटों से जगमग ,भक्ति की पावन धारा बहती थी, विसर्जन के दिन समीपस्थ – दूरस्थ ग्रामीण अंचल से श्रद्धालुओं का मेला शहर में लगता था ,व्यस्तम मार्गो से विसर्जन की झांकी निकलती थी, जो बुढ़ापारा में विसर्जित होने के पहले आम – खास सबको अपने आशीर्वादो से अनुग्रहित करती थी । झांकी के लिए राजनीतिज्ञ भी पुरस्कार समारोह आयोजित करते थे । धार्मिक और सांस्कृतिक गणेशोत्सव की अविरल धारा तब से बह रही है।
विसर्जन झांकियों का, अब बूढ़ा तालाब की जगह महादेवघाट होने लगा । शहर की विरासत को तिरोहित करने का जो झलक कल यहां देखी वो अशोभनीय और निंदनीय दोनों है । धार्मिक न सही रायपुर की सांस्कृतिक विरासत के नाते ही पुरानी गरिमा को कायम रखा जा सकता था । पर लगाव की कमी या अपनी विरासत के प्रति उपेक्षा ने फिर आस्था पर वार किया । कर्ता कह रहे कि हमने तुरंत कार्यवाही की कर्मचारियों को निलंबित कर दिया। अब इसमें राजनीति नहीं होनी चाहिए। बिल्कुल सही है, पर कार्टून के नाम पर हंगामा करने वाले भी इसी देश और शहर में रहते हैं।
दीवारों पर संत के खिलाफ सजा का ऐलान करते हुए पोस्टर भी लोगों ने यही लगाए हैं सहिष्णुता की परीक्षा कितनी और क्यों ? क्या ये क्षम्य है हद तो ये है कि इसके बाद भी सोशल मीडिया पर वर्ल्ड के बेहतरीन महापौर वाले वक्तव्य भी है अब इन शब्दों का उपयोग क्यों और कौन, किस के फायदे के लिए कर रहे हैं, क्या यही है आपसी भाईचारा ? जो गलत है वह गलत है, यदि गलती माननी है तो पूरे दिल से मानी जाए और जिनको चाटुकारी करनी है वो भी समझ ले कि वो ऐसा कर नगर के प्रथम नागरिक की गरिमा ही घटा रहे हैं ।
ऐसी गलतियां धार्मिक आयोजनों में ही क्यों होती है ? क्या यही गलती किसी राजनीतिक दल के उत्सव में होती, नेताओं की तस्वीरे कचरे की गाड़ियों में लाई जाती ,तो बर्दाश्त होता ,क्षम्य होता इतनी शांति से तीन कर्मचारियों के निलंबन से सब खत्म हो जाता।
जब पानी – पानी हो रही थी राजधानी तब भी लोगों ने व्यवस्था आपकी देखी पीलिया का प्रकोप भी नही रोक पाते है डेंगू के कहर से भी निगम नागरिकों को बचा नहीं पा रहा हर गलती पर नया बहाना कहां है जवाबदारी न मूलभूत सुविधाओ पर ध्यान है न सांस्कृतिक धार्मिक मान्यताओं का मान है ।
फिर वही तस्वीरों ,चित्रों वाली राजनीति किसने शुरू की ? क्या ये राजनीति नहीं है, घाट पर तो माननीय भी दिखे और निगम का दस्ता और प्रशासन भी था पुलिस की बैरिकेटिंग से गुजरे होंगे निगम के वाहन क्या किसी की नजर नहीं पड़ी या सब कुछ नजरअंदाज कर दिया गया, ऐसी कैसी व्यवस्था ?
कितना दिल बड़ा करे कोई जब आपने दिल तोड़ने की कसम ही खा रखी हो, दक्षिण पर नजर है तो जरा नजरें इतायत गणेशोत्सव पर भी कर लेते । आयोजन तो पूरे शहर का था थोड़ा गंगा -जमुनी हो जाते । प्रथम पूज्य विघ्नहर्ता हर शुभ कार्य में जिन्हें हम करते हैं पहले आमंत्रित उनकी विदाई में ऐसी चुक क्या एक प्रेस विज्ञप्ति और एक वीडियो से धूल जाएगी ।
जब प्रतिमाएं मिट्टी की है तो फिर विसर्जन के लिए इतनी शर्तें क्यों ? मिट्टी की प्रतिमाओ से कैसा प्रदूषण और प्रदूषण के प्रति इतने गंभीर है तो खारून नदी में औद्योगिक और प्रदूषित पानी को गिरने देने की छुट क्यों ?
मानव – जनित नित्यकर्मो के प्रदूषण भी तो नदी में ही समाहित होते हैं ,उनके लिए कब आपने ऐसी नियम शर्ते लगाई । क्या किया निगम ने इन सब प्रदूषणों के लिए । प्रतिमाओं को लेकर जो आपने नियम बनाए यदि आप उसका पालन नहीं करवा पाए तो ये किसकी असफलता है। ऐसा कौन सा कारण है कि धार्मिक संस्कारों / आयोजनों के वक्त ही आपको प्रदूषण और नियम शर्ते याद आ जाती है।
ये आयोजन रायपुर का था जो कुछ भी हुआ महादेव घाट में उससे रायपुर का मान घटा । अराध्य का मान घटा है न घट सकता है। बस घाट में निगम ने घटा दिया मान रायपुर का….
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल