मुखिया के मुखारी – नेताओं के लिए तो कार्यकर्ता बस बंधुआ मजदूर है….

मुखिया के मुखारी – नेताओं के लिए तो कार्यकर्ता बस बंधुआ मजदूर है….

क्या कार्यकर्ता है बंधुआ मजदूर? राजनीति में लगता है अब कार्यकर्ताओं की कोई हैसियत ही नहीं रह गई है । राजनीतिक दल कार्यकर्ता विहीन अधिनायकवादी पारिवारिकहित संरक्षण के लिए बनाया गया समूह है। जिसमें नेता स्वेच्छाचारी, मैं और मेरा की प्रवृत्ति लिए परिक्रमा वादियों को वरद हस्त देता और परिश्रम को तिरस्कृत करना अपना परम सत्ता प्राप्ति का राजनीतिक उद्देश्य समझते है । पदाधिकारी चाटुकार है, सर्व अवगुण संपन्न है फिर भी वही गुणी है । बच गया कार्यकर्ता जो कार्य तो है कर्ता पर राजनीति उसके भाग्य में कुछ भी नहीं है धर्ता, पीढ़ी दर पीढ़ी राजनीतिक शक्तियों का हस्तांतरण हो रहा। लोकतंत्र से ज्यादा राजतंत्र का आभास हो रहा ये अपने तरह का कुलीन राजनीतिक आरक्षण है जिसमें संसदीय और विधायकी से लेकर पार्षदीय तक की सीटें परिवार और परिवार के चाटुकारों के लिए आरक्षित कर दी गई हैं ।

कार्यकर्ताओं के लिए निर्धारित है ये चीजें चिलचिल्लाती धुप हो या बरसते बादल सर्दी से ठिठुरते सुबह हो या राते धरना प्रदर्शन नारे हो- हल्ला कानून के आगे सबसे पहले कार्यकर्ता को ही किया जाता है खड़ा । नेताओं को तो सिर्फ चुनाव में खड़ा होना है हारे या जीते अभिमान को तो हमेशा रहना ही हैं खड़ा खड़े रहने पर इनका जन्मसिद्ध अधिकार है । अड़कर सत्ता हासिल करना ईनकी नैतिकता कार्यकर्ताओं की मेहनत पर पानी फेरना इनका परम ध्येय । कर्तव्यविहीन राजनीति है  । मै और मेरा से आगे है ही नहीं इनकी सोच । सोच नहीं लोच कहा सत्ता भोगी ही है, इनकी मंजिल एकांकी है ,इनकी सत्ता प्राप्ति की राह दर्री बिछाव नारे लगाव या इनके आंदोलनों के खातिर आप अपराधी बन जाओ इससे बड़ी नहीं है नियति कार्यकर्ताओं की ।

नेताओं की नियत है मैं मेरा लाल और मेरा परिवार का , सत्ता पर पूरा अधिकार ये प्रजा पालक नहीं पूंजी पालक है ,जनवादी नहीं ,परिवार वादी हैं, क्षण में तोला क्षण में मासा बहुरूपिये भी इनसे हैं हारे ।हरबोलवो के ये वंशज हैं चाटुकारिता के ये सबसे बड़े ध्वजवाहक हैं । दल -बदल सत्ता बदल नजरें घुमाकर देख लीजिए प्रदेश – प्रदेश देश की राजनीति का अधिकांश हिस्सा भाई भतीजावाद से ग्रसित है। उठे तो गरीबी से थे अब अमीरों के करीबी है सो प्रतिस्पर्धा नहीं चाहते गरीबों को गरीब ही रहने देने की चाहत है ।राजनीति करते दलों के ये समूहों के ये प्रणेता है पर नेता ये सिर्फ ,अपने स्वार्थ सत्ता और घर के कार्यकर्ता भटक रहा कार्य के लिए ।

कार्य के लिए उसे कर्ता न बन पाने का दुख है ,अभी भी जीवन स्तर वही का वही है दो जून की रोटी के वैसे ही लाले हैं । पर ममता ,मुलायम, मायावाली जीवन ,लालू वाली वैभव से हाथ रीते हैं । रीते ही रहना है ये राजनीति की नई रीत है जिसमें कार्यकर्ताओं के लिए किसी की नहीं प्रीत है झुण्ड भेड़ो का समझ ये हाक रहे बिना सुविधाओं का आपका उपभोग खुलेआम कर रहे भोग सत्ता का इनको अपने लालों को लगाना है । चुरा चाटुकारों में बांट तुम्हें सिर्फ लड्डुओं का लालच दिखाना है कार्यकर्ताओं की सोच समझ कुंद कर भ्रमित भीड़ खड़ी करना कैसे और कब मिलेगी कार्यकर्ताओं को सत्ता में हिस्सेदारी ? वों न तुम्हें समझते ,ना वों अपना, ना अपना भागीदार नेताओं के लिए तो कार्यकर्ता बस बंधुआ मजदूर है ।

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल

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