मुखिया के मुखारी – अद्भुत – चाल चरित्र और चेहरा….

मुखिया के मुखारी – अद्भुत – चाल चरित्र और चेहरा….

चाल चरित्र चेहरा श्रेष्ठ और अलग होने का दावा करने वाली विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल की छत्तीसगढ़ इकाई जिन क्रियाकलापों में संलिप्त है उसे देख कर तो लगता है कि पार्टी की छवि को पलीता लगाने में ये कोई कसर नहीं छोड़ रहे । सत्ता से दूर होने के बाद भी न उनको जन समस्या से कोई सरोकार है न छत्तीसगढ़ से कोई लगाव । पन्द्रह साल की सत्ता यूं ही नहीं गई, यही आत्ममुग्धता और वर्चस्व की लड़ाई ने जन सरोकार से नेताओं को दूर किया जिससे पार्टी की बदनामी भी हुई अंतोगत्वा सत्ता भी गंवानी पड़ी ।

पर नेता है कि हम नहीं सुधरेंगे की तर्ज पर अभी भी वही पुराना ढर्रा कायम है। छत्तीसगढ़ी अस्मिता से दुराव के आरोप जनधारणाओं में बदल गए पर मजाल किसी नेता या पार्टी पदाधिकारी ने इस पर ध्यान दिया हो । छत्तीसगढ़ की राजनीति में सब नवागंतुक बोनसाई छत्तीसगढ़िया हावी हो गए । शहरी राजनीति में इनका ऐसा सिक्का चलने लगा कि मूल छत्तीसगढ़ियों के लिए कोई जगह ही नहीं रही । राजधानी की राजनीति में तो जन कल्याण में इनका कितना योगदान है ये शोध का विषय है, पर उड़ीसा वालों ने अकूत धन संपत्ति इकट्ठा कर ली राजनीतिक पहचान के साथ ये व्यवसायिक पुरोधा बन गए पता नहीं ऐसी कौन सी जादू की छड़ी है इनके पास कि ये शहर के सबसे बड़े बिल्डर व्यवसायी बन गए । प्रवासी थे प्रवासी हैं और प्रवासी ही रहेंगे इनका छत्तीसगढ़िया बनने का कोई इरादा ना है ना ये छत्तीसगढ़ के विकास के लिए कुछ कर रहे हैं। ना इन्हे पार्टी का विकास चाहिए इनका सिर्फ स्वविकास से वास्ता है। कर्मठता से सफलता जरूर मिलती है पर इस सफलता में कर्मठता से ज्यादा योगदान चाटुकारिता का हैं।

पन्द्रह साल के शासन में छत्तीसगढ़िया तो दुखिया ही रहे पर ये नवागंतुक बोनसाई छत्तीसगढ़िया सबके सब सुखिया हो गए । प्रभुत्व से मिले वैभव ने अब इनको इतना बलशाली बना दिया कि वो अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझते न जनता न कानून बस उन्हें अपना स्वार्थ और व्यवसाय दिखता है,चाहे उसके लिए पार्टी की छवि खराब क्यों ना हो जाए । और यही हो रहा है नेता अब सड़कों पर ही नहीं ट्रेन में लड़ने लगे हैं ,आदमी क्या ये झगड़ा अब मातृ शक्ति से करने लगे हैं, झगड़े का कारण जो भी हो वो तो वो ही जानते हैं पर अंदाजा लग जाता है आपके इतिहास से ।

झाड़े आप कई बार गए झारसुगड़ा वाले बाबू । जब से शहर में है दिलों पर नहीं जमीन और घरों पर ही आपके कब्जे का इतिहास है । न कभी कोई चुनाव लड़ा न पार्टी ने आपको इस के योग्य समझा फिर जलवा बरकरार है आपकी प्रतिभा के आपके नेता कायल हैं और नेत्रिया गवाह है। झगड़ा निपटाने का जो तरीका था वो भी अद्भुत था स्टेशन पर कार्यकर्ता नेताजी का झगड़ा निपटाने गए थे जैसे किशोरावस्था की लड़ाई है, पार्टी के कार्यकर्ताओं को दी गई ये नई भूमिका है अद्भुत वो भी है जिन्होंने इसे अपनी योग्यता मान इसमें अपनी सक्रिय सहभागिता निभाई परिवारवाद का विरोध कर रहे बाप मंडल अध्यक्ष तो बेटा भाजयुमो मंडल अध्यक्ष हर मंडल में अपनों की नियुक्ति न प्रतिभा न लोकप्रियता बस मैं और मेरा की युक्ति । युक्ति या गिनती के व्यक्तियों के बीच पद बाटकर संगठन पर कब्जे की युक्ति। पन्द्रह साल सत्ता में रहे तो जनता से दूरी अब सत्ता से दूरी बन गई फिर भी क्यों है जनता से बनी हुई है वहीं दूरी ।

न जन के साथ न अपनों के साथ बस है अपने स्वार्थ के साथ । न संघर्ष न जनसमस्याओं से वास्ता जीत गए तो माननीय वरना संगठन पे कब्जा । जो अपना चुनाव नहीं जीत पाए वो संगठन मजबूत बनाएंगे जिनकी अपनी भूमि हो पड़त वो सदाबहार वन उगायेंगे धन्य हैं आप और आपकी राजनीति हमने भी आज मान लिया इतना आसान नहीं है समझना आपका — चाल चरित्र और चेहरा….

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल

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