मार्गशीर्ष अमावस्या पर कैसे करें पितरों का तर्पण? जानें-पूरा विधि-विधान

मार्गशीर्ष अमावस्या पर कैसे करें पितरों का तर्पण? जानें-पूरा विधि-विधान

हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि का खास महत्व होता है. अमावस्या की तिथि पर पितरों का तर्पण करना शुभ माना जाता है. हिंदू पंचांग के मुताबिक, मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को पड़ने वाली अमावस्या को मार्गशीर्ष अमावस्या कहते हैं. मार्गशीर्ष अमावस्या को अगहन अमावस्या भी कहा जाता है.

मार्गशीर्ष को हिंदू धर्म में सबसे पावन महीना माना जाता है, जिस कारण इस माह मे पड़ने वाली अमावस्या का विशेष महत्व होता है. इस दिन पितरों का तर्पण, स्नान, दान और श्राद्ध करने की मान्यता है. साथ ही इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान आदि कर्म किए जाते हैं. कहा जाता है कि मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण और श्राद्ध आदि करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

मार्गशीर्ष अमावस्या का शुभ मुहूर्त

इस बार मार्गशीर्ष अमावस्या कृष्ण पक्ष में 23 दिसंबर 2023 को मनाई जाएगी. मार्गशीर्ष अमावस्या की तिथि सुबह 6:56 से शुरू होकर अगले दिन 24 दिसंबर 2023 को सुबह 4:26 पर समाप्त होगी. मार्गशीर्ष अमावस्या की तिथि पर स्नान-दान के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 5:06 से 6:52 तक रहेगा.

मार्गशीर्ष अमावस्या का महत्व

ऐसी मान्यता है कि मार्गशीर्ष अमावस्या पर तर्पण करने से पितरों को नरक से राहत मिलती है और पितृ प्रसन्न होकर आपके परिवार की रक्षा करते हैं. इस दिन पितरों का श्राद्ध करने से उनका क्रोध भी शांत होता है और उनका आशीर्वाद आप पर बना रहता है.

पितरों के तर्पण की विधि

पितरों को जल देने को ही पितरों का तर्पण करना कहा जाता है. पितरों को तर्पण करने के लिए सबसे पहले अपने हाथ में कुशा लें. कुशा को लेने के बाद दोनों हाथ जोड़कर पितरों का स्मरण करें. पितरों का ध्यान करने के बाद उन्हें आमंत्रण देना चाहिए. उन्हें आमंत्रित करते हुए ‘ॐ आगच्छन्तु में पितर एवं गृह्णन्तु जलान्जलिम’इस मंत्र का जाप करना चाहिए. इसके बाद कुशा के साथ पानी लेकर उस जल को उन्हें अर्पित करना चाहिए.

ऐसे करें पिता का तर्पण

  • अगर आप अपने पिता का तर्पण कर रहे हैं तो उसके लिए अपने गोत्र का नाम लें.
  • गोत्र का नाम लेते हुए, ‘गोत्रे अस्मतपिता (पिता का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः’इस मंत्र का जाप करें.
  • मंत्र का जाप करने के बाद आखिर में पानी, दूध, तिल और जौ को एक साथ मिलाकर तीन बार पिता को अर्पित करें.

ऐसा करें माता का तर्पण

  • धार्मिक शास्त्रों में माता का तर्पण करने की विधि अलग होती है. माता के ऋण अधिक होते हैं, जिसकी वजह से उनके तर्पण की विधि भी अलग बताई गई है.
  • अपने गोत्र का नाम लेते हुए, गोत्रे अस्मन्माता (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः’ इस मंत्र का जाप करें.
  • मंत्र का जाप करने के बाद पूर्व दिशा में खड़े होकर 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में खड़े होकर 14 बार माता का ध्यान करते हुए उन्हें जल अर्पित करें.

 









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