श्रीगणेश चतुर्थी व्रत प्रत्येक मास में किया जाता है, ताकि व्रती के बुद्धि-विवेक, गणेश जी की कृपा से निर्मल बने रहें। गणेश जी की पूजा सही मायने में विवेक एवं सही निर्णय द्वारा भाग्य बदलने की शक्ति प्रदान करती है। विघ्नहर्ता, गणेश जी बुद्धि, विवेक के देवता हैं और इन्हें भाग्य विधाता भी कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब किसी व्यक्ति की कुण्डली में बुध ग्रह कमजोर स्थिति में हो तो उसे गणेश जी की पूजा, उपासना अवश्य करनी चाहिए, ताकि गणेश जी से प्राप्त सद्बुद्धि से सही निर्णय लेकर व्यक्ति जीवन में सफलता प्राप्त करे।
गणेश जी का आशीर्वाद मन, बुद्धि, विवेक का संतुलन-
अक्सर देखा गया है, सफलता और असफलता, सुख और दुःख आदि मन की अवस्था व्यक्ति के सही निर्णयों पर ही निर्भर करती है। धर्मशास्त्रों के मुताबिक मन के स्वामी देव चंद्र हैं, चतुर्थी तिथि पर बुद्धिदाता देवता श्री गणेश की पूजा के साथ चंद्रदेव को अर्घ्य देकर मानसिक संतापों को दूर कर शुभ मनोरथ पूर्ण किया जाता है। व्यावहारिक नजरिए से सारे कलह, संकट या असफलता के पीछे डांवाडोल मन और विकृत बुद्धि ही होती है। मन का असंतुलन ही विचारों को नकारात्मक दिशा देकर कलह का कारण बनता है। यही कारण है कि मानसिक अशांति व मन की चंचलता पर काबू पाने के लिए इस पर्व पर चंद्रदेव की उपासना का महत्व बताया गया है। संकष्टी चतुर्थी पर चंद्र अर्घ्य के पीछे सुख व शांति की ऐसी ही कामनाएं व भावनाएं जुड़ी है।
पूजन विधि-विधान -
संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी व्रत का पालन 27 अप्रैल 2024, शनिवार को किया जाएगा। पूजन हेतु चन्द्रोदय रात्रि 09:50 पर होगा जो स्थान भेद के कारण भिन्न हो सकता है। पुराणों में चतुर्थी का विशेष महत्व बताया गया है। भगवान गणेश की अर्चना के साथ चंद्रोदय के समय अर्घ्य दिया जाता है। मंगलमूर्ति गणेश जी को पंचामृत से स्नान के बाद फल, लाल फूल, अक्षत, रोली, जनेउ, मौलि अर्पित करना चाहिए, लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए तथा गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ अवश्य करना चाहिए। प्रत्येक स्थान पर वहां की प्रचलित मान्यताओं के अनुसार लोग पूजा-अर्चना सम्पन्न करते हैं।
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