भारत बंद का असर, दुकान बंद और सड़कें रही सुनसान, निकाली आक्रोश रैली 

भारत बंद का असर, दुकान बंद और सड़कें रही सुनसान, निकाली आक्रोश रैली 

 

डोंगरगढ़:  देश के आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति द्वारा सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण पर फैसला सुनाने के विरोध में बुधवार को भारत बंद के तहत राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन किया गया। इसी कड़ी में धर्मनगरी में भी अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति संयुक्त मोर्चा के तत्वाधान में सुप्रीम कोर्ट निर्णय के विरोध में हजारों की संख्या में समाज के लोगों ने आक्रोश रैली निकाली गई, जो कि सुप्रीम कोर्ट के विरोध में नारेबाजी करते हुए नगर के मुख्य चौक-चौराहें से होते हुए तहसील कार्यालय पहुंची, जहां उपस्थित समाज प्रमुखों ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को वापस लेने की मांग करते हुए देश के प्रधानमंत्री के नाम अनुविभागीय अधिकारी को ज्ञापन सपा है। ज्ञापन में बताया गया कि 1 अगस्त 2024 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुसूचित जाति एव जनजाति वर्ग के आरक्षित कोटे के अंतर्गत कोटा अर्थात आरक्षित वर्ग के अंदर क्रीमिलेयर एवं सिर्फ एक ही पीढ़ी को प्रतिनिधित्व निर्धारित कर आरक्षण प्रदान करने का निर्णय पारित किया गया। इस निर्णय से देशभर के अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग प्रभावित हो रहे है। वास्तव में अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के भीतर वर्गीकरण करने का अधिकार राज्यों को नही है, क्योंकि यह आदेश आर्टिकल 341 (2) एवं 342 (2) यह अधिकार देश की संसद को होता हैं, और यही बात ईवी चिनैया मामले में सुप्रीम कोर्ट की 05 जजों की संवैधानिक पीठ ने 2005 में कहा था। पंजाब राज्य बनाम दविन्दर सिंह मामले में 01 अगस्त 2024 के निर्णय में 07 जजों में से 01 जज जस्टिस बेला एम1 त्रिवेदी जी ने 06 जजों के फैसले से असहमति जताते हुए अपना निर्णय उप-वर्गीकरण, क्रीमिलेयर, सिर्फ एक ही पीढ़ी को प्रतिनिधित्व लागू करने के खिलाफ दी हैं। जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने 09 जजों की संवैधानिक पीठ इन्द्रा साहनी मामले वर्ष 1992 में जस्टिस जीवन रेड्डी के कथन को उद्धृत करते हुए निर्णय लिखा है कि क्रीमिलेयर टेस्ट केवल पिछड़े वर्ग तक सीमित हैं। अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के मामले में इसकी कोई प्रासंगिकता नहीं है। आगे पिछड़ेपन को लेकर कहा कि सामाजिक एवं शैक्षिक पिछड़ेपन का परीक्षण आवश्यकतानुसार अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों पर लागू नही किया जा सकता।

संविधान लागू होने के 74 वर्षों बाद भी अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व देश के सभी उच्च संस्थानों में पूरा नहीं हो पाया हैं। वास्तव में अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग को प्रतिनिधित्व का अधिकार सदियों वंचित रहने एवं पिछड़ेपन के कारण मिला है। आर्थिक आधार पर नहीं। माननीय सर्वोच्च न्यायालय का फैसला अपने आप में ही कानून है इसे केवल अध्यादेश लाकर ही बदला जा सकता है। कोरे आश्वासन से नहीं। भारत सरकार से अपील है कि तत्काल संसद सत्र बुलाकर पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह मामले दिनांक 01 अगस्त 2024 के आये हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए अध्यादेश लाये, यदि अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के नागरिकों को न्याय नही मिला तो देशव्यापी उग्र आंदोलन किया जायेगा, जिसकी संपूर्ण जवाबदारी शासन-प्रशासन की होगी। इस दौरान डॉ. मुन्नालाल नंदेश्वर अजाक्स, ओबीसी समाज से विल्पव साहू, भीषम ठाकुर अजजा शास. सेवक संघ, उमेश हथेल, श्रीमती प्रीति चमन समुद्रे सुदर्शन समाज, सीएल टंडन सतनामी समाज, रामदास कंवर कंवर समाज, संतोष धुर्वे गोंडवाना समाज, सुनील मालेकर, मधुसूदन हठीले, रविदास समाज, एचके अजाद एससीएसटी एशोसिएशन रेलवे, प्रेम लाल ठाकुर हलबा समाज, श्रीमती पदमा मेश्राम, महिला सशक्तिकरण संघ, महेश सुधाकर सर्व आदिवासी समाज, धन्नालाल गणवीर, संतोष लांजेवार प्रज्ञागिरि ट्रस्ट समिति, योगेश चौरे लघु वेतन कर्मचारी संघ, मनीष कुमार बडोले कोषाध्यक्ष, नपा अध्यक्ष सुदेश मेश्राम, पूर्व अध्यक्ष संगीता टेंबुरकर, धीरज मेश्राम, नलिनी मेश्राम, किरण मेश्राम, घासीराम कंवर, अनिता इंदुरकर, नरोत्तम कुंजाम अनुसुचित जाति-जनजाति संयुक्त संघर्ष मोर्चा, अमिताभ दुफारे मिडिया प्रभारी अनुसुचित जाति-जनजाति संयुक्त संघर्ष मोर्चा के अन्य सदस्य गण उपस्थित थे।









You can share this post!


Click the button below to join us / हमसे जुड़ने के लिए नीचें दिए लिंक को क्लीक करे


Related News



Comments

  • No Comments...

Leave Comments