राजनांदगांव:- शहर की जन- जन की आवाज एवं पूर्व पार्षद हेंमत ओस्तवाल ने एक जारी पत्र के माध्यम से निगम की महापौर को दो-टूक शब्दों यह कहा कि, आज जो समाचार पत्रों मेें एक निगम का एम.आई.सी सदस्य के द्वारा अपने चेयरमैन पद से इस्तीफा शहर कांग्रेस के अध्यक्ष को सौपा है और उस पत्र में महापौर की तानाशाही के चलते जिस तरह से इस्तीफा देने मजबूर हुआ उससे राजनांदगांव की राजनैतिक और कांगे्रस पार्टी को बहुत बड़ा झटका है? क्योंकि जिन विपरीत परिस्थतियों में जिन निर्दलीय पार्षदों के भरोसे मो. अकबर साहब और भूपेश बघेल जी की मेहनत और रणनीति के तहत् निर्दलीय पार्षदों को तैयार कर कांगे्रस पार्टी का महापौर राजनांदगांव नगर निगम में बनाया गया। और आज लगभग साढ़े चार वर्ष तक महापौर हेमा देशमुख सत्ता का खूब - सूख और आनंद लिया और पार्षद गुप्ता जब अपने वार्ड की समस्या या भष्ट्राचार और गुणवत्ताहीन निर्माण कार्यों आदि को लेकर सामान्य सभा से लेकर जवाबदार लोगों को शिकायत की उसके बावजूद जब महापौर के द्वारा कार्यवाही नहीं की गई? जो कि कांगे्रस पार्टी के और उस वार्ड की जनता के हित में निर्णय नहीं लिया गया। वह महापौर श्रीमती हेमा देशमुख की सबसे बड़ी कमजोरी साबित हुई? क्योंकि उन्हीं निदर्लीय पार्षदों के भरोसे वह सत्ता में टिकी है। और यदि सामने होने वाले नगरीय निकाय के चुनाव के एन समय यदि कांग्रेस पार्टी ने महापौर हेमा देशमुख के खिलाफ कार्यवाही करने की बजाय उस निर्दलीय पार्षद के खिलाफ कार्यवाही करती है, तो उससे उस निर्दलीय पार्षद का कुछ नहीं बिगड़ेगा? इसलिए शहर कांग्रेेस अध्यक्ष कुलबीर सिंह छाबड़ा और प्रदेश कांग्रेस कमेंटी के अध्यक्ष श्री दीपक बैज जी एवं पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी एवं छ.ग. के प्रभारी सचिन पायलट जी से चाहूँगा कि जो यह राजनैतिक घटनाक्रम राजनांदगांव में पूर्व महापौर मधुसूदन यादव के इसारे पर चल रहा है।
उस पूरे राजनैतिक घटनाक्रम की विस्तार से संज्ञान में लेते हुए पूर्व में चार विधानसभा और लोकसभा चुनावों में राजनांदगांव से लगभग ३६ हजार वोट से हार अल्का मुदलियार जी और करूणा शुक्ला जी १६ हजार और गिरीश देवांगन जी ४५ हजार और भूपेश बघेल जी ५७ हजार वोट से राजनांदगांव विधानसभा से हार हुई है, इसे गंभीरता से लेते हुए होने वाले नगरीय निकाय के चुनाव में ठोस निर्णय लेने की आप लोगों को आवश्यकता है, अन्यथा जिस तरह से महापौर श्रीमती हेमा देशमुख के कार्यकाल में तानाशाही रवैये के चलते १० पार्षद भी जीत के आने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है?इसलिए निर्दलीय एवं पार्टी के पार्षदों को हल्के में ना लेवें।
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