आज भी समस्याओं से जुझने मजबूर विशेष पिछड़ी भुंजिया जनजाति गांव रायआमा,जहां की पहाड़ियों के बीच स्थित है अंग्रेजों के शासन काल में बने टिला

आज भी समस्याओं से जुझने मजबूर विशेष पिछड़ी भुंजिया जनजाति गांव रायआमा,जहां की पहाड़ियों के बीच स्थित है अंग्रेजों के शासन काल में बने टिला

परमेश्वर राजपूत,गरियाबंद :  जिला मुख्यालय गरियाबंद से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित है ग्राम रायआमा जो बिल्कुल मलेवा डोंगर के नीचे बसा हुआ है।जहां लगभग 40 घर के विशेष पिछड़ी भुंजिया जनजातीय समुदाय के लोग निवासरत हैं। जहां आजादी के इतने वर्षों बाद भी आवागमन हेतु पक्की सड़कें नहीं बन पाया है और बारिश के दिनों लोग परेशानियों को झेलने मजबूर नजर आते हैं। इसी गांव के बीच पहाड़ी पर आज भी अंग्रेज शासन काल में बना हुआ एक चांदा निर्मित है जो संभवतः उस समय सीमा रेखा या पहाड़ों की ऊंचाई मापने के लिए बनाया जाता था। जिस जगह पर कुछ वर्ष पहले कुछ बाहर के अज्ञात लोगों के द्वारा विस्फोट कर खुदाई भी किया गया था। ग्रामीणों की मानें तो कुछ गुप्त खजाने या धातु के चक्कर में यह विस्फोट व खुदाई रात में की गई थी। जिसके निशान आज भी मौजूद हैं।

बता दें कि यहां से एक कच्ची रास्ता ग्राम लिटिपारा के लिए है वहीं एक कच्ची रास्ता ग्राम कोदोपाली के लिए है तो एक कच्ची रास्ता ग्राम बोकरामुड़ा के लिए है ये तीनों ही रास्ते बारिश के दिनों में किचड़ और गढ्ढों से सराबोर हो जाते हैं। जिसके चलते यहां के ग्रामीणों को बाजार से सामान लाने, स्वास्थ्य संबंधी ईलाज और स्कुली बच्चों को स्कुल आने जाने के लिए इन्हीं रास्तों से जद्दोजहद कर गुजारा करना पड़ता है। वहीं गांव की गलियां भी कीचड़ से सराबोर नजर आता है। वहीं हम यहां संचालित प्राथमिक शाला की बात करें तो पूर्व में बने प्राथमिक शाला भवन जर्जर होकर पुरी तरह टूट गया। और एक अतिरिक्त कमरे में पांच कक्षाओं का संचालन होता है। वहीं यहां निवासरत विशेष पिछड़ी जनजातियों की मानें तो हर पांच वर्ष में चुनाव में जनप्रतिनिधि आते हैं तो हर बार हम अपने गांव की समस्याओं को बताते हैं और दूर करने का आश्वासन भी दिया जाता है लेकिन उसके बाद वापस पांच साल तक इस गांव की ओर ध्यान नहीं देते हैं और आज भी समस्याएं जस की तस बनी हुई है।

वहीं हम स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें तो गांव में किसी का स्वास्थ्य ज्यादा खराब हो जाता है या किसी महिला को डिलीवरी संबंधित परेशानी होती है तो किसी भी तरह मोटरसाइकिल या अन्य साधनों से लिटिपारा या कोदोपाली मुख्य मार्ग तक छोड़ना पड़ता है तब कहीं जाकर 108 या 102 की सुविधा उपलब्ध हो पाता है। वहीं आगे की पढ़ाई के लिए गांव के स्कुली छात्र छात्राओं को रोज इन्हीं रास्तों से होकर पढ़ाई के लिए आने जाने को मजबूर रहते हैं।वहीं ग्रामीणों की मांग है कि किसी भी एक तरफ से हमारे गांव को पक्की सड़क से सरकार और प्रशासन जोड़ दें तो हमारी समस्याएं दूर हो जाएगी और हमें रोज जद्दोजहद नहीं करनी पड़ेगी।









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