मेरा रंग दे बसंती चोला ----- -- गाने वाले देश में भगवा में दिखत हे बघवा ( भगवा में दिख रहा है शेर ) विगत लोकसभा चुनाव के पहले से सविंधान और आरक्षण का हव्वा खड़ा करने से पहले सारी इंडिया गठबंधन की राजनीतिक पार्टियों ने सनातन धर्म को मौके ढूंढ ढूंढकर कोसा धार्मिक ग्रंथो को निशाना बनाया भगवा आतंकवाद और मालेगांव बमकांड में साध्वी प्रज्ञा को आरोपित करने के बाद इनके बढ़े दुस्साहस को वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों ने और हवा दी। विगत लोकसभा चुनाव के परिणाम से अति उत्साहित पराजित विपक्ष अपने आप को सत्तारूढ़ दल से बड़ा समझ रहा है, मतदाताओं से तिरस्कृत होकर भी अपने आप को पुरस्कृत समझ रहा है देश के स्वतंत्रता आंदोलन का श्रेय लेने वाली कांग्रेस कभी भी ये नहीं बताती है कि देश के बंटवारे की जवाबदेही किसकी है? देश का जब विभाजन हुआ तो कांग्रेस ही सबसे बड़ी राजनीतिक दल था और महात्मा गांधी सर्वमान्य नेता कांग्रेस और महात्मा गांधी के रहते दो नेताओं के क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ की वजह से देश बट गया । क्या देश की जनता ये बटवारा चाहती थी ? क्या देश अंग्रेजों ने बांटा या फिर ये अर्धसत्य है इस देश में सारे चुनावों का विश्लेषण होता है पर 1946 के द्विसदस्यीय चुनाव की बात कोई नहीं बताता जब हिंदुओं ने सिर्फ हिंदू और मुसलमानों ने मुस्लिम जन प्रतिनिधि चुने कालांतर में यही इस देश के विभाजन का सबसे बड़ा कारण बना ये सत्य आज भी छुपाया जाता है।
दक्षिण से निकलकर शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में पीठों की स्थापना की आचार्य चाणक्य ने विशाल भारत और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की समर्थ गुरु रामदास ने शिवाजी को वीर योद्धा बनाया जिनकी हिंदू पद, पादशाही की चर्चाएं आज भी होती है सनातन आदि अनंत से है और भगवाधारी आदि अनंत से इसके ध्वजवाहक। इस देश ने हजारों वर्ष की गुलामी सही फिर भी नहीं मिटी हस्ती हमारी क्योंकि सनातनी परंपरा की समरसता दिव्यता ने हमें बचाए रखा हिंदू एक जीवन पद्धति है ये बात उच्चतम न्यायालय भी कह चुका है फिर भी इंडी गठबंधन और खास करके कांग्रेस हिंदू और सनातन को नीचा दिखाने का कोई अवसर नहीं छोड़ रही है ताज़ा बयान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का है जो कह रहे हैं कि भगवा वस्त्र पहनकर कोई राजनीति नहीं कर सकता संतो को राजनीति नहीं करनी चाहिए ,जिन्होंने मतदाताओं को भी अपनी हार की वजह से सांप्रदायिक बता दिया । जिनके बेटे सनातन को खत्म करने की बात करते हैं ,उनके पिता ने हार की डर से अपनी हिंदू विरोधी भावनाएं प्रस्फुटित कर दी संत राजनीति नहीं कर सकते मौलाना देश के शिक्षा मंत्री हो सकते हैं भगवा वस्त्र पहन के राजनीति नहीं की जा सकती पर टोपी वाले उसी कांग्रेस के द्वारा संसद भेजे गए दस्यु फूलन देवी संसद की शोभा बढ़ा सकती हैं अतीक अहमद,मुख्तार अंसारी, सहाबुद्दीन जैसे कुख्यात अपराधी राजनीति कर सकते हैं ।
भ्रष्टाचारी सजायापता लालू प्रसाद राजनीति के शिखर पुरुष हो सकते हैं सिमरनजीत सिंह मान, इंजीनियर राशीद, अमृत पाल सिंह और आतंकी गतिविधियों में शामिल सांसद हो सकते हैं, नहीं हो सकते तो सिर्फ भगवाधारी योगी आदित्यनाथ क्योंकि वों हिंदू एकता की बात करते हैं दशकों से एक धर्म विशेष के प्रति अनुरागी रहा विपक्षी गठबंधन उलेमा काउंसिल की 17 मांगे महाराष्ट्र में स्वीकार कर सत्तावरण को आतुर है फिर भी वों धर्मनिरपेक्षता का ढोल पीट रहे हैं भगवा से डरना तो उनकी पुरानी आदत है करपात्री महराज से लेकर शंकराचार्यों, कार सेवकों और कई धर्माचार्यों को प्रताड़ित सिर्फ इसलिए किया गया की वों भगवाधारी थे । इंडिया गठबंधन की चाहत है मौलवी जो चाहे, जब चाहे, जैसा चाहे वैसा बोले हिंदू भगवाधारी धर्म गुरुओं को कुछ भी बोलने की इजाजत नहीं है क्या ये दोहरा मापदंड नहीं है ?भगवे से इतनी चिढ़ क्यों? कांग्रेस के कई सांसद, विधायक भगवाधारी रहे हैं तों अब के भगवाधारी नेताओं से इतना डर क्यों? संत कवि स्वर्गीय पवन दीवान भगवा ही पहनते थे । मतलब वों जब तक आपका गुणगान करें तब तक सब सही यदि वों हिंदू हितों सांस्कृतिक विरासत और सनातनी सभ्यता के पैरोंकार बनकर जब आपका राजनीतिक विरोध करें तो उनकों राजनीति की मनाही । मतों का दान नहीं मिल रहा सत्ता से दुरी बन गई तो सनातन धर्म और सनातनियों से ये दूरी आपकी हरकतें बता रही हैं। की ये जो डर है उसका कारण आपको भगवा में बघवा (शेर ) दिख गया हैं।
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल
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