मुखिया के मुखारी – बुद्धजीवी हो गए परजीवी 

मुखिया के मुखारी – बुद्धजीवी हो गए परजीवी 

आदिमानव जीवन से सभ्य ,मानव समाज की संरचना सिर्फ बुद्धि (मेंधा) के बल पर हुई । ज्ञान सर्वोत्तम विश्व व्यापी गुण माना जाता है और इस ज्ञान को अर्जित करने के लिए हर धर्म के अराध्यओं ने मानव को बुद्धि दी हैं और इसलिए विश्व के सारे प्राणियों में मनुष्य श्रेष्ठ है, क्योंकि वों बुद्धजीवी है। विकास और सभ्यता की निरंतरता बुद्धजीवियों की वजह से ही हैं ,समाज में मलीनता या कुरीतियां तभी बढ़ती है जब बुद्धजीवी परजीवी हो जाते हैं। शिक्षा और साक्षरता सापेक्ष रूप से बढ़ रही है, समाज को सभ्य से सभ्यतम बना रही है, पर ये सभ्य समाज की त्रासदी है कि बुद्ध जीवियों के पालक वृद्धा आश्रम में पाए जाने लगे हैं । बुद्धजीवियों की बुद्धि स्वार्थ से लकवा ग्रस्त हो रही है जिसका असर परिवार, समाज, देश और विश्व को हो रहा है ।भारतीय राजनीतिक परिपेक्ष्य में बुद्ध जीवियों की यही परजीविता रोज दिखाई देती है।जब लिखने वाले संचार माध्यम थे ,तब भी और जब सुनने और दिखने वाले माध्यमों का उद्भव हुआ तब भी नीति,अनीति का नीर - क्षीर परीक्षण करने का दायित्व मीडिया को है । मीडिया पर लिखने बोलने वाले लोग बुद्धजीवी ही है ये अलग बात है कि इन बुद्धजीवियों के चुनाव विश्लेषण उन्हें बार-बार गलत साबित कर रहे हैं।

लोकसभा में बीजेपी को पूर्ण बहुमत दे रहे थे हरियाणा में कांग्रेस को जीता रहे थे महाराष्ट्र और झारखंड में कांटे की टक्कर बता रहे उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में अखिलेश को सिकंदर बता रहे, इससे पहले भी इनके सारे अनुमान धराशाई हुए हैं । संसाधन जब कम थे, विश्लेषक कम थे तो उनके अनुमान सही साबित होते थे फिर अब उनकी असफलता का कारण स्वार्थ से उपजी परजीविता के अलावा कुछ नहीं है । स्वार्थ मुफ्त के घर का अन्य भौतिक सुख सुविधाओं का अपने आप को वीआईपी होने का एहसास दिलाने का सत्ता से संबंध बना हर बंधन को तोड़ने का बुद्धजीवियों के संस्थानों (मिडिया ) नें देश के कई शहरों में मुफ्त की जमीनों पर इमारतें तानी ,उसका गैर संवैधानिक ढंगो से व्यवसायिक उपभोग कर रही पत्रकारों ने मुफ्त के भूखंडों के लिए अपनी बुद्धि खंड-खंड कर ली । चुनाव जनधारणाओं से जीती जाती है और धारणाएं एक दिन में नहीं बनती निरंतर प्रयासों से प्रभावित होकर मनोभाव धारणाओं में परिवर्तित होती है गुस्से से भरे तम तमाए कुतर्कों की अनर्गल बयान बाजी कैसे कोई बुद्धजीवी कर सकता है, करवा सकता है इस देश में दशकों तक एक ही पार्टी का शासन रहा विपक्ष था लेकिन शक्तिहीन सो बुद्धजीवी भी सत्ताधीशों के चारण बन गए।

सुविधाओं का उपयोग करते-करते स्वार्थी हुए फिर बुद्धजीवी से परजीवी,बुद्धजीवी बन गए तुष्टिकरण खुले आम होता रहा आरक्षण और संविधान बचाने के नाम पर जहर उगला पाकिस्तान और भारत दोनों के पहले कानून मंत्री दलित थे । भारतीय कानून मंत्री ने देश का संविधान बनाया पर दोनों का राजनीतिक हश्र क्या हुआ? जो दलितों को जम्मू कश्मीर, AMU, जामिया में जिन्होंने अपने परिवार के अलावा कभी किसी दलित या अल्पसंख्यक को मुख्यमंत्री नहीं बनाया वों इनके हितैसी बन रहे हैं,अलगाव से बिखराव होता है ये स्थापित सत्य है और इसका प्रमाण देश का बंटवारा।  ये भी बुद्धजीवियों की परजीविता थी, और आज फिर वही बात दोहराई गई आज दो राजनीतिक घटनाक्रम हुए ,एक पर बुद्धजीवियों ने ताबड़तोड़ गाल बजाएं महाराष्ट्र में भाजपा के महासचिव पैसों के साथ कथित रूप से पकड़ाए सबने इसकी गूंज- अनुगूंज सुनी । दूसरा उत्तर प्रदेश में उपचुनाव के लिए समाजवादी पार्टी ने निर्वाचन आयोग को चिट्ठी लिखी कि वाली बुर्के वाली महिलाओं के पहचान के लिए बुर्के न हटाए जाए जबकि मतदान पूर्व पहचान की संवैधानिक व्यवस्था है । सरकारी सुविधाओं के लिए वों बुर्के हटाकर ही वों अपनी पहचान बताती है, तो फिर मतदान में ये आपत्ति क्यों? दूसरी मांग है कि पुलिस और अर्धसैनिक बल चुपचाप खड़े रहे कोई कार्यवाही न करें,तीसरी बात अखिलेश यादव ने खुद कहीं की समाजवादी पार्टी के बूथों पर गस्त हो रही है। निर्वाचन आयोग सिर्फ मतदाताओं के लिए बूथ बनाता है, न कि किसी दल विशेष के लिए अब ये तीनों गैर संवैधानिक मांगे संविधान बचाने वालों के द्वारा की जा रही है।पर देश सारा बुद्धजीवी वर्ग मौन है, बुद्धजीवियों के रहते वोट जिहाद की बातें हो रही है? पूरा विश्व आतंकवाद से पीड़ित है विकसित, अविकसित, विकासशील हथियारों की होड़ में उलझें हैं ,लड़ाइयां चल रही है ,सरपंची से लेकर प्रधानमंत्री के चुनाव तक ,समाज के हर मसले पर बुद्धजीवियों को अपने देखा, सुना और पढ़ा होगा पर परिणाम वही सिफर के सिफर, शिक्षा बढ़ती गई विकास बढ़ता गया साथ-साथ वैमनस्यता भी बढ़ रही  । सही को सही और गलत को गलत कहने की बौद्धिकता तो है पर स्वार्थ प्रेरित बौद्धिकता संयुक्त परिवार को एकांकी बना दिया  । वहां किसी त्याग की उम्मीद कहां, हर सामाजिक विघटन का एक ही कारण है--------- ---------------------------------------    बुद्धजीवी हो गए परजीवी

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल






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