विरासत में गद्दी मिल सकती है बुद्धि नहीं, राजनीति अवधारणाओं का खेल है। राजनीति का अंतिम लक्ष्य सत्ता प्राप्ति है, अवधारणाएं बनाकर सत्ता पाने के लिए और सत्ता पाने के बाद शासन चलाने के लिए बुद्धि की आवश्यकता होती है । पहले बात अवधारणाओं की ,उत्तर प्रदेश में 9 सीटों पर विधानसभा के उपचुनाव थे जिसमें सात भाजपा ने और दो समाजवादी पार्टी ने जीते । सपा ने पूरा जोर लगाया 27 का सेमीफाइनल कहा गया अखिलेश को 27 का सत्ताधीश भी बता दिया। पी. डी. ए. का नारा बुलंद किया, पर जोर सारा मुस्लिम मतदाताओं को विशेष बना, अपने पक्ष में मतदान करवा कर जीत का रास्ता बनाने की कोशिश। मतदान से पहले बवाल मचाया, पहले मुस्लिम क्षेत्र को लेकर फिर मुस्लिम मतदाताओं को लेकर, पर परिणाम मनोंकूल नहीं रहे। मुस्लिम मतदाताओं के मत पड़े तभी वों सीसामऊ जीती और कुंदरकी में भाजपा करीब सवा लाख मतों से जीती ,तो वहां भी मुस्लिम मतदाताओं ने मत डाला होगा तभी ये संभव हुआ। योगी ने हरियाणा चुनाव में बटेंगे तों कटेंगे का नारा दिया ,जिसका असर इस पूरे चुनाव में दिखा । योगी ने अपनी चुनाव जिताऊ नेता की छवि को मजबूत किया और अपनी देशव्यापी स्वीकार्यता बनाई ।
महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में भाजपानीत गठबंधन की आंधी चली जिसमें भाजपा की सुनामी थी, परिणाम ऐसे की विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनने की संख्या भी अघाड़ी के एक भी दल नहीं पा सके। मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब पालने वाले अघाड़ी के नेताओं की हार नहीं हुई बल्कि वों जनता के द्वारा खदेड़ दिए गए । चुनाव परिणाम के पहले कांग्रेस ने पर्यवेक्षक नियुक्त कर डाले ,रिसॉर्ट और विमान बुक करा डाले बस अपनी जीत नहीं बुक करा पाए। फतवों से फतह, चुनावी किला करने चले थे ,सतह पर धूल -धुसरित होकर आ गए । लोकसभा के चुनाव परिणामों का नशा सपा को भी चढ़ा था,और महाविकास आघाडी के नेताओं को भी ,मतदाताओं को अपना बंधूआ समझ लिया था मतदान केंद्रों को भी अपना बता रहे थे ,धार्मिक और जाति आधार पर वोटो का अपने नाम की रजिस्ट्री दिखा रहे थे, पर जनता नें दिखा दिया कि फतवों से फतह नहीं मिलती बाटोगे तो खुद भी कटोगे। कांग्रेस बटी भी और कटी भी इसलिए एकता की जरूरत महसूस कर शरद पवार को गले भी लगाई । चाहत सत्ता की थी और इसी चाहत ने उद्धव को जनमत बांटने के लिए मजबूर किया तो जनता ने उन्हें अब की बार सत्ता से ही काट दिया ।
महाराष्ट्र आर्थिक, गतिविधियों का देश का केंद्र है वहां एक नए विचारधारा के पक्के हिंदुत्ववादी क्षेत्रीय छत्रप का उदय देवेंद्र फडणवीस के रूप में हुआ । हेमंत बिस्वा शर्मा, देवेंद्र फडणवीस, योगी आदित्यनाथ के बाद भाजपा को दक्षिण में एक क्षेत्रीय छत्रप की जरूरत है,ताकि वों अखिल भारतीय विस्तार पा सके । भाजपा ने दूसरी पंक्ति के नेता बनाये उनकी स्वीकार्यता बढ़ाई उन्हें लोकप्रिय जननेता बनने का अवसर दिया, कांग्रेस ने एक-एक कर अपने क्षेत्रीय छत्रपों को बाटा भी और काटा भी ममता बनर्जी, राजशेखर रेड्डी, हेमंत बिस्वा शर्मा,शरद पवार -----------------से लेकर दूसरी पंक्ति के नेताओं को भी सिर्फ इसलिए बाटा और काटा ताकि कोई गांधी परिवार को राजनीतिक चुनौती ना दे सकें।झारखंड में हेमंत सोरेन ने इंडिया गठबंधन की लाज रख दी, हेमंत झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बने जिन्होंने अपनी सरकार की अभूतपूर्व बहुमत के साथ वापसी करवाई।भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे, जेल गए फिर भी उनकी लोकप्रियता और स्वीकार्यता में कमी नहीं आई । आदिवासी क्षेत्रों में उन्हें जबरदस्त सफलता ,पूरे झारखंड के साथ मिला और अपने कंधे पर बिठाकर कांग्रेस की भी नैय्या पार करवा दी ,कम से कम सोरेन सरकार में कुछ कांग्रेसी मंत्री तो बन जाएंगे ।
अब बात राजनीति की कल तक जो बुद्धजीवी (मीडिया) इन चुनावों में कांटे की टक्कर बता रहे थे ,वों एक तरफा जनादेश के बाद भी बेशर्मी से उपदेश दे रहे थे, जीत की वजह फ्री बीज योजना, लाडकी बहीण और माई को बता रहे थे ।यदि लाभार्थी सिर्फ फ्री बीज योजनाओं की वजह से वोट देते तो फिर मोदी को 400 के पार होना था । करोड़ो को मुफ्त का राशन,शौचालय,आवास योजना सब तो था फिर मोदी सरकार एनडीए सरकार कैसे बन गई? अवधारणाएं बिना भावनाओं के नहीं बनती अपने विशेष (मुस्लिम) समुदाय की भावनाओं को धर्म के आधार पर उकसाया मुल्ला, मौलवियों नें खूब फतवें दिए तों बहुसंख्यकों की भी भावनाएं जागृत हुई, और बटेंगे तो कटेंगे की स्वीकार्यता अवधारणा में बदल गई ।आप बांग्लादेश के हिंदुओं के लिए कुछ नहीं बोलेंगे पर फिलिस्तीन और गाजा के मुसलमानों के लिए सब कुछ करेंगे। देश के मुसलमानों को मोदी विरोध की घुट्टी ऐसी पिलाई की शाहीन बाग में बच्चे भी मर जा मोदी का नारा लगा रहे थे, ये बात अलग है कि कई अरब मुस्लिम देशों के साथ फिलीस्तीन ने भी मोदी को अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया है। वों सम्मानित कर रहे और आप रोज अपमानित, अवधारणा बटेंगे तो कटेंगे की है ,और इसे बनाए रखना होगा अखिलेश, उद्धव, हेमंत तीनों को गद्दी विरासत में मिली है ,पर सोरेन के पास बुद्धि थी उसने अपनें गद्दी बचा ली। जिनके पास लोकसभा चुनावों में सांसदों की गद्दी थी ,परिस्थितियाँ अनुकूल थी फिर भी ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा। बुद्धिविहीन कार्य वही उसका परिणाम, इन चुनावों का परिणाम तो यही कहता है---------- विरासत में गद्दी तो मिल सकती है बुद्धि नहीं
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल
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