मुखिया के मुखारी –खराबी ईवीएम की नहीं आपके ऐम (उद्देश्य ) की है

मुखिया के मुखारी –खराबी ईवीएम की नहीं आपके ऐम (उद्देश्य ) की है

3 दिसंबर 2023 को छत्तीसगढ़ की सत्ता की बागडोर ,बीजेपी के हाथों में रहेगी इसका निर्धारण ईवीएम ने कर दिया था। आज विधानसभा चुनाव परिणाम को आए हुए ठीक एक वर्ष हो गए  । 5 वर्षों तक 2018- 2023 तक छत्तीसगढ़ के शासन की बागडोर कांग्रेस के हाथों में थी, अपार बहुमत की कांग्रेस सरकार का नेतृत्व भूपेश बघेल के हाथों में था। अपार जनआकांक्षाओं की परिणिति थी यह अपार बहुमत। सरकार ,छत्तीसगढ़िया वाद,छत्तीसगढ़ी अस्मिता, धान खरीदी, शराबबंदी, बिजली बिल हाफ के लोक लुभावन नारों के साथ सत्तारुढ़ हुई थी।  नरवा, गरवा, घुरवा अउ बारी के सूत्र वाक्य के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार के संकल्प ,औद्योगिक विकास और समावेशी विकास के लिए उत्सुक और दृढ़ संकल्पित लग रही थी । इन सारे संकल्पों और वादों से ऊपर बंद दरवाजे का हाईकमान के साथ छत्तीसगढ़ के नेताओं का एक संकल्प था,जीत के संकल्प के आगे सारे संकल्प बौने साबित हो गए  । शासन ने  जनता के लिए तो सुचारू और प्रभावी ढंग से कार्य करना आरंभ किया ही था ,कि बंद दरवाजों में किए गए ढाई- ढाई साल के संकल्प की वजह से अंतर्विरोधों से घिरती गई ,ढाई साल ने ढाई आखर प्रेम के, परस्पर प्रेम की कमी ने अविश्वास पैदा किया, महत्वाकांक्षाएं हावी हो गई, परस्पर प्रतिस्पर्धा ने सहयोगियों को राजनीतिक शत्रु बना दिया  । एक ही राजनीतिक दल,एक ही सरकार के ओहदेदारों के बीच शत्रुता, सामंजस्य तो नहीं बनने दे सकती थी आदर्श स्थिति थी चाटुकारों के प्रवेश की ,परजीवों के बरगद पर चढ़कर बरगद को सुखाने की, बेलगाम अफसरशाही, की चुगली का साम्राज्य खड़ा हो गया। ,लोकतंत्र में राजतंत्रीय संबोधनों का उद्भव हो गया ।महाराजा तो पहले से महाराजा थे, भैया भी दाऊ बन गए, जन नेता से दाऊ की उपाधि ने ऐसी सामंती प्रवृत्ति की पैठ ,मन में बनाई की दाऊ और महाराजा के बीच तलवारें खींच गई  ।तलवारें मयानों से निकल गई, एक दूसरे के प्यादों से एक दूसरे को शह मात देने का खेल शुरू हुआ। बृहस्पति ,सिंहदेव पर गुर्राने लगे सिंहदेव ,देवत्व छोड़ सिंह हो गए सुशासन की जगह धन -धान्य ने ले ली ।

धन-धान्य से पूर्ण होने का खेल ऐसे चला कि उसकी चाहत में घोटालों पर घोटाले होने लगे,कारोबारी और अफसरों ने , सरकार और सरकार के निर्णयों पर एकाधिकार बना लिए, सरकार का सारा उद्देश्य ही पैसा बनाना हो गया। घोटालों के अलावा स्थानांतरण उद्योग,भर्ती उद्योग, 2200 करोड़ का शराब घोटाला, 5000 करोड़ का चावल घोटाला, 700 करोड़ का कोल खनन परिवहन घोटाला, 6000 करोड़ का महादेव सट्टा एप्प घोटाला,घोटालों पर घोटाले छोटे बड़े से लेकर चिरकुटई वाले घोटाले और हरकतें ,अहम् ब्रह्मास्मि वाला, हाव भाव ना जनसेवक वाले, हाव ना भाव मैं और सिर्फ मेरी सरकार--------- -इस मनोवृत्ति नें पूरी कसर उतार दी ,सरकार को छत्तीसगढ़ियों के नजर से उतरना ही था ,और छत्तीसगढ़ियों ने वही किया जो करना था । आत्ममुग्ध, सत्ता में मदमस्त कांग्रेस की भूपेश सरकार आज ही के दिन अस्त-व्यस्त पस्त हो गई ,सत्ता का सूर्य अस्त हो गया पर मदमस्तता गई नहीं।  कुकर्मों के चिन्ह इतने स्थाई थे कि पिछले महीने हुए रायपुर दक्षिण विधानसभा के उपचुनाव में भी करारी हार मिली ले- देकर जमानत कांग्रेस की बच गई इतनी ही लाज रह गई । साल भर पहले हुए हार से कोई सबक नहीं लिया,जन आक्रोश को ना तब पढ़ पाए थे, ना आज पढ़ पा रहे हैं, कांग्रेस के हार की राष्ट्रीय समस्या है ईवीएम, वों अपने खराब ऐम (उद्देश्य )की खराबी कभी नहीं देखते, जिस एवीएम ने 15 साल के भाजपा के शासन को उखाड़ फेंका, आपको अपार बहुमत दिलाया जिस ईवीएम के सहारे आप उपचुनाव पे उपचुनाव जीते, जिसनें भाजपा को कोने में बिठा दिया, जब 2018 में जीत मिली थी तब ईवीएम सही था।

2023 में आप चुनाव हार गए तो वही ईवीएम गलत हो गया ,वों भी साल भरें बाद, आप तंज कर रहे चुराई हुई जीत का जश्न बता रहे,क्या छत्तीसगढ़ी मतदाताओं के विवेक पर आप प्रश्न चिह्न नहीं लगा रहे? छत्तीसगढ़ियों का क्या ये अपमान नहीं है? क्या आपके बंधुआ बन जाए? क्या छत्तीसगढ़ियों को अपना भविष्य सुधारने का अधिकार नहीं है? आपके कुकर्मों की सजा छत्तीसगढ़िया क्यों भुगतता? आपने अपनी चाल बदली, चरित्र बदला,सुशासन को कुशासन बनाया,जनता ने तरीका अपना बदल दिया मतदान का । मतों का दान है मतदान ,आप तो दान में भी अपना अधिकार समझने लगे। रस्सी जल गई पर बल नहीं गया, हारें आप अपनी घोटालों की लंबी फेहरिस्तों, अपनी और अपने अधिकारियों, संगी साथियों, कारोबारियों की मनमर्जी, उच्च शृंखलता की वजह से ,दोष ईवीएम का कैसा ?फिर आज लगता है आप नींद से अलसाई आंखों से अर्धसत्य देख रहे, अर्धसत्य बोल रहे, कह रहे । भाजपा सरकार वाहवाही में मस्त ,किसान त्रस्त, जब आपकी सरकार थी तो सिर्फ आप मस्त ही नहीं थे बल्कि मदमस्त थे,सिर्फ किसान ही नहीं सारे छत्तीसगढ़िया त्रस्त थे ।सिर्फ मुखिया और मुखिया के सारे संगवारी सुखिया थे । आज वों दिन है जो सुखिया और दुखिया का अंतर आपको समझा रहा होगा आज ही के दिन सत्ता के सुख से सत्ता जाने का दुख आपने भोगा था ,आज तो पूर्ण सत्य समझ लीजिए किसी का जश्न बर्दाश्त हो ना हो अपने हार का अवलोकन करने का साहस तो कर लीजिए,पूर्ण सत्य तो यही है--------- ---------------------------खराबी ईवीएम की नहीं आपके ऐम (उद्देश्य ) की है।

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल






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