मुखिया के मुखारी –  मानसिकता में अलगाव वाद क्यों ?

मुखिया के मुखारी – मानसिकता में अलगाव वाद क्यों ?

कोई व्यक्ति समाज और राष्ट्र कितना कृतघ्न हो सकता है इसका ज्वलंत उदाहरण बांग्लादेश है,इस कृतज्ञनता की वजह क्या है ? बांग्लादेश का जन्म ही भारत के पुरुषार्थ से हुआ, धर्म के आधार पर अलग हुए, बांग्लादेश को उन्मादी धर्मांधता की कीमत चुकानी पड़ी, पाकिस्तानियों ने जुल्म की इंतहा कर दी, बांग्लादेश के अस्मत को तार-तार किया हत्या, बलात्कार, जनमत का अपहरण, फौजी नरसंहार सब कुछ बांग्लादेश ने झेला। तब तेरा मेरा रिश्ता क्या ----------------काम नहीं आया । धर्म एक होने के बाद भी ये सब हुआ ,बांग्लादेश को 1971 में आजादी भारत के सैन्य कार्यवाही के वजह से मिली । आज वही बांग्लादेश अपनी धार्मिक कट्टरता का नंगा नाच कर रहा है ,भारत में करोड़ों की संख्या में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं, जिन्हें विभिन्न राजनीतिक दल संरक्षण देते हैं, सवाल वोट का है, सत्ता का है। बांग्लादेश में विद्रोह मुसलमानों ने किया, जिस हसीना वाजिद के खिलाफ विद्रोह हुआ और उसके बाद जो मोहम्मद यूनुस सत्ता में आए वो सब मुस्लिम है । पर अत्याचार हत्या,बलात्कार, नरसंहार सब हिंदुओं के खिलाफ हो रहा है, अल्पसंख्यक हिदूओ के मंदिर रोज तोड़े जा रहे हैं।

इन अल्पसंख्यक बांग्लादेशी हिंदुओं का दोष क्या हैं?  ना ये विद्रोह के कारण है ,ना कारक, ना कोई सक्रिय भागीदारी, फिर भी सारे जुल्मों सितम उन्हीं के ऊपर हो रहे हैं ,कृतघ्नता की मिसाल है बांग्लादेश ,जहां बांग्लादेश के निर्माता मुजीबुर्रहमान की हत्या हुई और अब उनकी प्रतिमाएं तोड़ी गई। वो अपने राष्ट्र निर्माता के प्रति कृतज्ञ नहीं रहे तानाशाही का लंबा इतिहास कृतघ्नता और कृतघ्नता ही इनकी थाती ।मुजीबुर्रहमान ,हसीना के पिता थे उनके पूरे परिवार की हत्या कर दी गई थी । बांग्लादेशी हिंदू अधिकांशत दलित (नमो शूद्र )और पिछड़े हैं। मतलब वहां दलित मुस्लिम प्रेम भी नहीं, सो हिंदुओं से धार्मिक समरसता रखने का कोई सवाल ही नहीं। अत्याचार गुलामी के दौर से लेकर आज तक हम बांग्लादेश की सहायता ही कर रहे । 1947 के पहले बांग्लादेशी भी भारतीय थे, फिर वो गंगा ,जमुनी, तहजीब कहां गुम हो गई ,या फिर ये सिर्फ एक जुमला हैं? जिसे कभी ना अमल में लाया गया ,ना लाया जाएगा, गजब की मानसिकता है सलमान खुर्शीद की दशकों पहले उन्होंने कहा था कि बटला हाउस (दिल्ली) एनकाउंटर में मारे गए मुस्लिम उग्रवादियों के शव देखकर सोनिया गांधी जार -जार रोई थी ,संयम देखिए उनका जो सहानुभूति तब सिर्फ सोनिया गांधी दिखा रही थी, आज संभल की उपद्रवियों के लिए राहुल, प्रियंका से लेकर पूरी कांग्रेस, अखिलेश भी ,पूरी समाजवादी पार्टी दिखा रही है ,और अधिकांश विपक्षी दलों का नजरिया यही है ।

अब कानून हाथ में लेने ,दंगा करने ,पुलिस पर प्राण घातक हमला करने,आगजनी करने के बाद भी आप मासूम और शहीद का तमगा पा सकते हैं। 5 लाख का मुआवजा इन आतंकियों को मिल सकता है ,ये न्यायालयीन आदेश को नहीं मानेंगे, हिंसा करेंगे ,आपको न्याय मांगने न्यायालय जाने से रोकेंगे।  ये बांग्लादेश में भी मंदिर तोड़ सकते हैं, पाकिस्तान में भी और भारत में भी मंदिर तोड़े जाने के ढेरों प्रमाण है। मंदिरों पर बने मस्जिदों का आप सर्वे भी न्यायालय के आदेश पर नहीं करा सकते, भगवानों की जन्मस्थालियां आज भी आक्रांताओं के अत्याचारों से सिसक रही है ,सिसक हिंदू समाज भी रहा है ,बांग्लादेश में जिहाद तीक्ष्ण है ,यहां वोट जिहाद चल रहा है, वोट जिहाद की बात सबसे पहले उसी सलमान खुर्शीद की भतीजी ने की, जिसे मुल्ले मौलवियों ने खूब दोहराया, पीढ़ी बदल गई पर चाचा भतीजी की जिहादी मानसिकता नहीं बदली ।चाहे विश्व का कोई कोना हो कोई देश हो जनसंख्या का सांख्यिकी अनुपात कुछ भी हो ,चाहे वो ईसाई,हिंदू बहुल हो या सिर्फ जहां मुस्लिम, मुस्लिम ही हों, हर आतंकवादी घटनाओं और आतंकियों मे समानता क्यों होती है?

ये गंगा, जमुनी,तहजीब या सामाजिक समरसता या फिर धर्मनिरपेक्षता नामक चिड़िया की गर्दन कौन मरोड़ता है, और क्यों मरोड़ता है ?क्या पूरे विश्व में RSS है, या हिंदू है, या फिर पूरा विश्व सहिष्णु नहीं है ,या फिर ये असहिष्णुता आप में ही भरी है ?क्या ये सच नहीं है कि पूरा विश्व आतंक और धार्मिक उन्माद की त्रासदी से जूझ रहा है?  हर जगह मे ये खूनी संघर्ष क्यों? ईरान से जान बचाकर भारत आए पारसी भारत की सबसे शांति प्रिय प्रगतिशील अल्पसंख्यक समाज है ,और जो पारसी ईरान में ही रह गए वो आतंक में उलझ गए ऐसा क्यों? अनुवांशिक गुण तों एक ही थे फिर ये बदलाव मानसिकता का कैसे हुआ। जिनको लगता है कि मुसीबत हमसे दूर है उन्हें ये सोचना और समझना होगा कि 1947 वाले भारत और आज के भारत के लोगों का डी.एन.ए. एक ही है । जब डीएनए एक ही है तो फिर नजरिया अलग-अलग कैसे ?  विश्व शांति ,सामाजिक समरसता से अलगाव ,आतंक से लगाव क्यों? भाईचारे के बाद भी देश बट गया पाकिस्तान बन गया आजादी में हिन्दू, मुस्लिम ,सिक्ख, इसाई सबकी भागीदारी थी, तो हिस्सेदारी (पाकिस्तान )  सिर्फ मुस्लिमों को क्यों दी गई , हालात वैसे ही आज भी हैं --------------------------------मानसिकता में अलगाव वाद क्यों ?

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल






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