दलित पति की गैर-दलित पत्नी.. बच्चे को आरक्षण मिलेगा या नहीं ...

दलित पति की गैर-दलित पत्नी.. बच्चे को आरक्षण मिलेगा या नहीं ...

सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए गैर-दलित महिला और दलित पुरुष की शादी को रद्द कर दिया. कोर्ट ने आदेश दिया कि महिला के बच्चों को अनुसूचित जाति SC का प्रमाणपत्र मिले, क्योंकि उनके पिता दलित समुदाय से हैं. असल में जूही पोरिया और प्रदीप पोरिया के तलाक के मामले में सर्वोच्च अदालत ने यह फैसला सुनाया है. कोर्ट ने साफ कहा कि जबकि एक गैर-दलित महिला अनुसूचित जाति की सदस्यता शादी के माध्यम से प्राप्त नहीं कर सकती, लेकिन अनुसूचित जाति के व्यक्ति से जन्मे बच्चे SC प्रमाणपत्र के हकदार होंगे.

पहले मामला क्या था.. ये समझिए

सुप्रीम कोर्ट ने पति को आदेश दिया कि वह छह महीने के भीतर बच्चों के लिए SC प्रमाणपत्र प्राप्त करें और उनके शिक्षा पीजी तक के संबंधित सभी खर्चों का जिम्मा उठाएं. इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने पति को ₹42 लाख का एकमुश्त भुगतान करने और रायपुर में एक प्लॉट पत्नी को देने का निर्देश दिया.

इसके अलावा यह भी कहा गया कि तलाक के बाद, बच्चों की परवरिश मां के घर में होगी, लेकिन उन्हें SC का दर्जा मिलेगा. इससे उन्हें सरकारी शिक्षा और नौकरियों में लाभ होगा. कोर्ट ने पति-पत्नी के बीच दर्ज सभी मामलों को खारिज कर दिया और बच्चों को उनके पिता से मिलाने के लिए निर्देश दिए. इन सबके बीच आइए जानते हैं कि आखिर संविधान के अनुच्छेद 142 में ऐसा क्या शक्ति है जिसे सुप्रीम कोर्ट यूज कर सकता है.

अब समझिए संविधान का अनुच्छेद 142, ओमनीबस पावर भी कहते हैं.. 

दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रावधान भारतीय सुप्रीम कोर्ट को विशेष अधिकार प्रदान करता है. इस अनुच्छेद के तहत, सुप्रीम कोर्ट को यह शक्ति प्राप्त है कि वह न्याय की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए कोई भी आदेश या दिशा दे सकता है, चाहे वह किसी कानूनी प्रावधान में स्पष्ट रूप से नहीं हो. इसे ओमनीबस पावर भी कहा जाता है, क्योंकि इसका उपयोग कोर्ट किसी विशेष मामले के निपटारे के लिए कर सकता है, जिसमें कानूनी दायरे से बाहर जाकर भी न्याय का रास्ता तलाशने की आवश्यकता हो.

कैसे काम करता है
संविधान के जानकारों के मुताबिक अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को ऐसा आदेश देने का अधिकार है, जो किसी अन्य कानून से परे जाकर न्याय और विवेक के आधार पर हो. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी पक्ष अपनी कानूनी स्थिति का लाभ न उठाए और वास्तविक न्याय को रोका न जाए. 

इसको ऐसे उदाहरण से समझिए कि यदि कोई विशेष स्थिति में कानून की कमजोरी के कारण न्याय नहीं हो पा रहा है, तो सुप्रीम कोर्ट इस अनुच्छेद का उपयोग करके न्याय देने के लिए आदेश जारी कर सकता है.

कहां उपयोग होता है
वैसे तो व्यावहारिक तौर पर यदि पारिवारिक विवादों या तलाक के मामलों में कोई कानूनी तकनीकी कारण न्याय में रुकावट डालते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 का उपयोग कर सकता है. साथ ही न्यायिक व्यवस्थाओं में सुधार में भी इसका यूज होता है. अगर किसी विशेष मामले में न्यायिक प्रक्रिया में कोई कठिनाई या विघ्न उत्पन्न होता है, तो कोर्ट इस अनुच्छेद के माध्यम से समाधान निकाल सकता है.

अन्य विशिष्ट मामलों में जब कोई मामले में कानून का पालन करना असंभव या अत्यधिक जटिल हो, तब सुप्रीम कोर्ट इस प्रावधान का इस्तेमाल करके अपनी दिशा और आदेश दे सकता है. इसके अलावा अनुच्छेद 142 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारतीय न्याय व्यवस्था में कोई भी पक्ष न्याय से वंचित न रहे, चाहे वह कानून में कोई खामी या अस्पष्टता हो.









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