संविधान की 75वीं वर्षगांठ पर संसद में चर्चा हो रही है, संविधान की महत्ता और उपयोगिता हमेशा रहेगी, संविधान अपने सारे स्थायित्व के साथ गतिशील भी है । हमारे संविधान निर्माताओं ने संशोधनों का संवैधानिक अधिकार प्रदत्त किया, ताकि संविधान गतिशील, समयानुरूप हो, समय-समय पर सरकारों ने संशोधन भी किए ,और करते रहेंगे,भारतीय संविधान की सबसे बड़ी विशेषता धर्मनिरपेक्षता को बताया जाता है, इतिहास बताता है कि भारत का अस्तित्व युगो- युगो से है, हम विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता है,हमने दशकों की गुलामी झेली, विदेशी आक्रांताओं के आतंक को झेला, उनकी धार्मिक कट्टरता ने भारतीय संस्कृति और धर्म को छिन्न- भिन्न किया, पर वों हमारा पूरा अस्तित्व नहीं मिटा पाए, इस देश में मंदिर तोड़े गए,जजिया कर लगाया गया, धर्मांतरण हुए,लोगों ने गाजी की पदवी धारण की, इसी दौर में खालसा पंथ की स्थापना हुई गुरुओं ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, सर्वोच्च बलिदान दिया ,फिर हम अंग्रेजों के गुलाम हुए, पूरा हिंदुस्तान स्वतंत्रता के लिए छटपटाता रहा ,स्वतंत्रता आंदोलन हुए, 1947 को भारत दो हिस्सों में बटा, 14 अगस्त को पाकिस्तान स्वतंत्र हुआ और 15 अगस्त 1947 को भारत ।
देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ जिस गंगा जमुनी, तहजीब की दुहाई हम आज तक देते हैं, वों इतनी निष्प्रभावित हो गई थी कि हम गंगा, जमुनी, तहजीब वालों ने साथ रहने की जगह बटना पसंद किया ।बटा हुआ हिस्सा पाकिस्तान इस्लामी राष्ट्र बना और भारत की सरकार का कोई धर्म नहीं था, ना हैं ,यदि भाईचारा था गंगा जमुनी तहजीब थी तो देश क्यों बटा ? क्या 1946 के चुनाव में वोट हिंदुस्तानियों ने नहीं डाला था, क्या यही चुनाव परिणाम देश की विभाजन के लिए जवाबदेह नहीं था? 1885 में कांग्रेस का गठन हुआ और दो दशक के बाद ही मुस्लिम लीग की स्थापना हो गई, जिसका आधार सिर्फ धर्म था, कांग्रेस की स्थापना भी अंग्रेजों ने ही की थी, राजनीतिक पार्टियों के उदय के साथ आपसी सौहार्द कम हुआ, और अंतोगत्वा देश का विभाजन हुआ,यदि देश अंग्रेजों ने बाटा तो भी कमी हमारी थी ,कि हम एक नहीं रह पाए,ऐसी कुछ तो बातें हमारे अंदर थी ,इसी अलगाव में आग अंग्रेजों ने लगाई होगी पर लकड़िया हमने ही इकट्ठी करके दी थी, यदि हम सच को सच नहीं कहेंगे, गलत को गलत तो फिर गलतियों में सुधार कैसे होगा? जिन्ना डायरेक्ट एक्शन डे करते हैं, चुनकर मुंबई से जाते हैं, फिर भी पाकिस्तान बनवा लेते हैं,क्या ये कांग्रेस की नैतिक हार नहीं थी? बंटवारे का कोई तो उत्तरदायित्व ले, इस देश में गुरुद्वारा शीशगंज है, वों बताता है कि धर्म के नाम पर क्या हुआ था, कुतुबमीनार और कुतुबमीनार जैसी इमारतें बताती है कि हम कितने धर्मनिरपेक्ष थे
परिस्थितियाँ फिर वही, हम जो नहीं थे वही बताने की कोशिशे, गलती करने वालों को सजा की जगह पुरस्कार, कश्मीर से चालू हुई पत्थर बाजी देश के कोने-कोने तक पहुंच गई, धर्मनिरपेक्ष देश में हिंदू मुस्लिम बहुल क्षेत्र हो गए, उस पर तुर्रा ये की कुछ संवेदनशील हो गए, जयचंदो ने राष्ट्र धर्म से ऊपर अपना स्वार्थ रखा, जयचंद आज भी वही कर रहे,धर्मनिरपेक्ष देश में जय श्री राम के नारे को सांप्रदायिक बता रहे, दूसरे लाउडस्पीकर पर दिन में पांच बार शांति का संदेश दे रहे,क्या ये द्वेष बढ़ाने वाला राजनीतिक कृत्य नहीं है? भारतीयों को जितनी जरूरत जाति, धर्म की है उससे ज्यादा सरकार को इसकी जरूरत है, हर सरकारी कागज में जाति, धर्म का कालम है ,कभी सिर्फ हिंदुस्तानी बनने की बात कोई नहीं करता, धर्मनिरपेक्षता बाबासाहेब के संविधान में नहीं था, इसे 42 वें संविधान संशोधन के द्वारा 1976 में आपातकाल के दौरान जोड़ा गया, क्या इतनी आपत स्थिति थी ? धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में फिर कैसे अल्पसंख्यक आयोग ,जब आप निरपेक्ष हैं तो धर्म के आधार पर ,आप बहू या अल्प संख्यक की गणना कैसे करते हैं। यदि आप सही में निरपेक्ष हैं तो फिर 1991 का उपासना स्थल कानून,और 1995 का वक्फ बोर्ड कानून कैसे बना, शाहबानो को न्याय क्यों नहीं मिला, जम्मू कश्मीर में देश के कानून क्यों नहीं लागू होते थे AMU,जामिया और जम्मू कश्मीर में आरक्षण क्यों नहीं मिलता था, क्या अन्याय को बर्दाश्त कर मौन रहकर ही सौहार्द बनाया जा सकता है या फिर आत्म अवलोकन कर गलतियां सुधार कर सौहार्द कायम रखा जा सकता है । धर्मनिरपेक्ष कहने लिखने और बोल देने से नहीं हो जाएंगे बल्कि सोंच व्यवहार से धर्मनिरपेक्ष होना पड़ेगा, जो राजनीतिज्ञ आज कर रहे हैं उनमें से कौन से कृत्य धर्मनिरपेक्षता की परिधि में आता है, एक को लाड़, दूसरे को लताड़ ये कैसी समदर्शिता है ---------- -----------------------------कहने कों नहीं सही में धर्मनिरपेक्ष बनिए.....
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल
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