संविधान ,संविधान निर्माता और सौहार्द ,अभी देश की राजनीति के केंद्र बिंदु बने हुए हैं,उनके लिए सियासी श्रद्धा का सैलाब आया हुआ है, सियासत दानों को सर्वाधिक प्रिय संविधान ,राजनीति के लिए हो गया है । भारत के मूल संविधान में धर्मनिरपेक्षता शब्द नहीं था ये 42 वें संशोधन के जरिए आपातकाल के दौरान जोड़ा गया ,भारत की धर्मनिरपेक्ष सरकार बाकी किसी भी धर्म के ,धर्म स्थलों का नियंत्रण नहीं करती लेकिन हिंदू मंदिर सरकारी नियंत्रण में है, क्यों है? क्या धर्मनिरपेक्षता यही है, हिंदू अपने विवादित धर्म स्थलों ,जिन पर विदेशी आक्रांताओं ने बलात कब्जा किया, विध्वंस कर मस्जिद बनाए ,उनके लिए कोर्ट नहीं जा सकता,1991 का उपासना स्थल कानून ऐसा ही कहता है,जो हिंदुओं के न्याय की आस पर कुठरा घात है । हाँ वक्फ बोर्ड अधिनियम 1995 के अनुसार वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति पर दावा कर सकता है ,और कर भी रहे हैं,यहां तक की मंदिरों पर भी दावे हो रहे, जब यें दोनों कानून बने तब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ वजूद में था, क्या यें दोनों कानून सौहार्द को बढ़ाएंगे? क्या यें एक पक्षीय नहीं है? सौहार्द कैसे बढ़ेगा जब आज भी जमीयत ए उलेमा ए हिन्द,ISI अलकायदा, हरकत उल अंसार, उसके जैसे कई आतंकी संगठनों के,आतंकियों का केस न्यायालय में लड़ता है,देश में हुई कई आतंकी घटनाओं में शामिल आतंकियों को कानूनी सहायता दे रहा है, प्रमाण के बावजूद जन्म स्थल एवं मंदिर विवाद में हमेशा पक्षकार बनता है ,और यही काम मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड करता है।
सर तन से जुदा के नारे ही नहीं लगते ,बल्कि सर तन से जुदा कर दिए गए, नूपुर शर्मा घर बिठा दी गई, रोज आग उगलने वाले मौलाना, मौलवी मुस्लिम नेता अपनी राजनीति चमका रहे, अनाधिकार दावे कर रहे,चुनावों में खुलेआम आतंकियों को टिकट दिए जा रहे, दिल्ली दंगे के आरोपी ताहिर हुसैन के बाद शाहरुख पठान को टिकट देने की तैयारी में ओवैसी की पार्टी है, अंकित शर्मा और दिल्ली के दंगा पीड़ितों पर क्या गुजर रही होगी, आप के अमानत तुल्लाखान का अमन से कोई वास्ता नहीं, उनका दिल रोहंगियों के लिए धड़कता है, कांग्रेस इशरत जहां जैसे दंगे के आरोपी को टिकट देने के लिए लालायित है, तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों ने मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, शहाबुद्दीन ,तस्लीमुद्दीन जैसे कइयों को नेता बनाया, इन्हें डॉक्टर ए.पी.जे.अबुल कलाम को दोबारा राष्ट्रपति चुनने में शर्म आई, क्या देश का मुस्लिम समाज ऐसे उम्मीदवारों को ही पसंद करता है? डॉक्टर कलाम से उनकी ना पसंदगी है ,और यदि ऐसा नहीं है, तो फिर मुस्लिम समाज की ऐसी छवि यें तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल क्यों प्रस्तुत करते हैं, यें भारतीय मुस्लिम समाज को भी सोचना होगा।
भारतीय राजनीति में अपराधिकरण की प्रणेता कांग्रेस है,बाकी दलों ने उसी का धीरे-धीरे अनुसरण किया, कंधार कांड की बातें बहुत होती है पर 1978 में पांडे बंधुओ द्वारा किए गए विमान अपहरण की बात कोई नहीं बताता,भोला पांडे और देवेंद्र पांडे ने विमान का अपहरण इंदिरा और संजय गांधी की रिहाई एवं मुरारजी सरकार के इस्तीफे की मांग के साथ की, विमान अपहरण जैसी जघन्य अपराध के अपराधी पांडे बंधुओ से इंदिरा सरकार ने केस वापस ले लिए,दोनों विधायक और सांसद बन गए,कई बार कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े, यदि इस अपहरण कांड की कोई चर्चा नहीं होती तो यें भाजपा की असफलता है ,कि उसके विद्वान प्रवक्ताओं के संज्ञान में नहीं है, या फिर उनकी उदासीनता है ,ठीक वैसी है जैसी संविधान बदलने वाले मसले पर थी, वों आज तक राहुल गांधी की जाति देश को बता नहीं पाए, गांधीजी और अंबेडकर जी चाहते तो अपने नैसर्गिक वारिसों के हाथ में अपनी राजनीतिक विरासत दे देते, पर उनके नैसर्गिक उत्तराधिकारी बियाबान में है जो उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी थे, उन्होंने अपनी कई पीढ़ियों को राजनीति में स्थापित कर दिया और आज भी कर रहे हैं,नाना, दादा,मां,बाप,भाई, बहन, भाभी, चाचा,फूफा सब विधायक सांसद, यें खानदानी राजनीतिज्ञ हो गए, देश के भाग्य विधाता हो गए, इनका परिवार सत्ता सुख ले रहा, गांधी जी अंबेडकर जी के परिवार को कोई पूछ नहीं रहा, नैतिकता का यही अंतर है, वों रत्न थे इस देश के उन्होंने देश आगे बढ़ाने का सोचा, अब की राजनीति है अपने( पुत्र, पुत्री) रत्नो को आगे बढ़ाने की सोच के अलावा, कुछ और नहीं है, स्वार्थ, तानाशाही, सत्ता लोलुपता अन्यायप्रियता की राजनीति में --------- कहां से और कैसे लाएं सौहार्द?
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल
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