मिल्कीपुर उपचुनाव की तारीखों का ऐलान, जान लीजिए कब है वोटिंग ?

मिल्कीपुर उपचुनाव की तारीखों का ऐलान, जान लीजिए कब है वोटिंग ?

नई दिल्ली :  अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर 5 फरवरी को वोटिंग और 8 फरवरी को मतगणना होगी। चुनाव आयोग ने मंगलवार को इसकी घोषणा की। इसके साथ ही 10 जनवरी से नामांकन शुरू हो जाएंगे।

अयोध्या को समाहित किए फैजाबाद संसदीय क्षेत्र की मिल्कीपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव की तारीख का एलान मंगलवार को चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस में हुआ। दिल्ली में विधानसभा चुनावों के साथ ही मिल्कीपुर में भी 5 फरवरी को मतदान होगा, वहीं 8 फरवरी को मतगणना होगी।मिल्कीपुर सीट पर सूबे की नजर टिकीबता दें कि इस सीट पर पूरे सूबे की नजरें टिकी हुई हैं, जहां एक तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद इस प्रतिष्ठित सीट की कमान संभाली हुई है। वहीं, दूसरी तरफ सपा ने भी अपने सभी पेच कसे हुए हैं।

सीएम योगी ने खुद संभाली कमान

सीएम योगी शनिवार को यहां आए थे। उन्होंने कृषि विश्वविद्यालय के सभागार में सांगठनिक समीक्षा की थी, जिसमें सीएम ने मंडल, शक्ति केंद्रों और बूथ इकाइयों में ज्यादा से ज्यादा मत प्राप्त करने की प्रतिस्पर्धा का मंत्र भी दिया था।

प्रभारी मंत्री सूर्य प्रताप शाही, जल शक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह, स्वास्थ्य राज्यमंत्री मयंकेश्वर शरण सिंह, आयुष मंत्री दयाशंकर मिश्र दयालु, खेल मंत्री गिरीशचंद्र यादव, खाद्य एवं रसद राज्यमंत्री सतीश चंद्र शर्मा, सहकारिता मंत्री जेपीएस राठौर भी मिल्कीपुर में अलग-अलग वर्गों के लोगों के साथ बैठक कर यह सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं कि उप चुनाव की तैयारी में कहीं भी कोई सुराख न रहे।

मिल्कीपुर के जातीय समीकरण पर एक नजर
मिल्कीपुर के जातीय समीकरणों पर निगाह डालें तो यहां दलित वोट अहम भूमिका निभाते हैं। इस सीट पर 3.5 लाख पात्र मतदाताओं में से 1.2 लाख दलित, करीब 55,000 यादव (ओबीसी) और 30,000 मुस्लिम वोटर्स हैं।

इसके अलावा यहां 60 हजार ब्राह्मण, 55 हजार पासी, 25 हजार ठाकुर, 25 हजार दलित, 50 हजार कोरी, चौरसिया, पाल और मौर्य समाज के लोग आते हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि जो भी पार्टी दलितों के साथ-साथ ब्राह्मणों, क्षत्रियों और अन्य पिछड़े वर्गों का समर्थन हासिल करेगी, वही विजयी होगी।

सालों से सपा का ही रहा है कब्जा
मिल्कीपुर सीट पर सालों से समाजवादी पार्टी का ही कब्जा रहा है। ये सीट सपा का गढ़ मानी जाती है। साल 1991 से अब तक बीजेपी यहां सिर्फ दो बार चुनाव जीती है, जबकि छह बार सपा और दो बार बसपा से विधायक रहे हैं।









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