मुखिया के मुखारी – जब जान लिया तों सजा में देरी क्यों ?

मुखिया के मुखारी – जब जान लिया तों सजा में देरी क्यों ?

आधुनिकता के फ्यूजन युग में बड़ा कन्फ्यूजन है,छत्तीसगढ़ के रामायण पर हों रहा महाभारत इसी फ्यूजन से उपजी कन्फ्यूजन है,राजा की प्रवृत्ति सामंती हों सकती है, पर नारायण नामधारी ,दर्पधारी कैसे हों सकता है ? छत्तीसगढ़ के पूर्व मुखिया के नाम का शाब्दिक अर्थ राजा है,वर्तमान मुखिया नारायण नामधारी इस अंतर को समझना होंगा, नाम के मान को निभाना होगा ,आचरण को वैसा ही बनाना होगा ।लोकतंत्र की स्थापना से ये दौर चल रहा भगवानों के चरित्र, जन्म स्थान, व्यक्तित्व पर टिप्पणियां और विवादित बयान होते रहे ,धार्मिक ग्रंथो ,पुराणों पर भी अल्पज्ञानी विवाद की जगह ढूंढते रहे ,विवादित बयान देते आ रहे, पर इन नेताओं को अपने चाल चरित्र का विश्लेषण पसंद नही,अपने आप को सर्वज्ञ, सर्वव्यापी ,सर्व शक्ति संपन्न समझने ,सुनने की आदत है,कभी भगवान के अस्तित्व को नकारना,कभी उनके लिए अनर्गल उपमाएं इनकी पुरानी फितरत है ,जब संकट अपने अस्तित्व का आए तों सतीत्व का प्रलाप है,जों कल तक भगवान श्री राम का अस्तित्व नकारते थे, उन्हें आज रामायण पर ऐतबार है ,राक्षसों से तथाकथित अपनी तुलना पर ऐतराज है  । भगवान श्री राम  के अस्तित्व पर, राम सेतु पर ,जन्म स्थान पर उच्चतम न्यायलय में शपथ पत्र पे ,शपथ पत्र दे विरोध कर रहे थे ,उन्हें आज अपने लिए FIR की दरकार है । समय चक्र बदला, चक्रवर्ती राजा राम के चक्कर लगाने सारे लोकतंत्रीय राजा मजबूर है,मज़बूरी की मजबूरियां है राजपथ से निकलने के डर ने वन गमन पथ बनवा दिया , ये बात अलग है बनाते हुए भी कलयुगी प्रवृत्ति नही गई,  उसमे भी भ्रष्टाचार हों गया । 

राजा राम ने पिता वचन निभाने वन जाना स्वीकार किया, सत्ता का मोह छोड़ दिया ,राजशाही जीवन छोड़ कंदमूल खा जीवन जी लिया ,राजा राम से मर्यादा पुरुषोत्तम हों गए ,अवतारी होकर भी समस्त जीवन मूल्यों को स्थापित कर गए, भगवान होकर भी सर्वोत्तम मानव लीला कर गए, निम्नतम मानवों की भगवान से बड़े बनने की कोशिश है ,गिरगिटों के रंग बदलने का राजनीतिक ढोंग है, दान लेके जमीन वापस लेने वाले ,प्रभु श्री राम को सिर्फ राम कह दुष्ट बताने वाले ,फिर भी रामायण को मानने वाले ,अजीब इनका पारिवारिक इतिहास है, अपने पे आई तों तिलमिलाहट है ,जो राजा भगवान श्री राम का अस्तित्व ना मानने का पारिवारिक इतिहास लेकर चलता हों, उसके अस्तित्व को क्यों कोई स्वीकारे ? भांचा तों छत्तीसगढ़ में  पूज्यनीय है ,प्रभु श्री राम छत्तीसगढ़ के ही तों भांचा है ,अवधेश होकर भी कहलाते कौशलेश है ,कौशल्या नंदन जिसका वंदन हर हिन्दू और दुनिया करती है,उनके अस्तित्व  के भान से आपका इंकार था ,माननीय सिर्फ अपने मान के सम्मान से कैसे चलेगा ?

सर्वभौमिक सत्य से दूर ,सत्ता में सर्वभौमिकता देखने की आपकी अदा बड़ी मासूम है ,मासूमियत आपकी इतनी की सारी राजनीति वार दी जाय,आस्था सारी आप पर ही वार न्यौछावर कर दी जाय, मन तों कहता यही है ,पर इतिहास आपका रोकता है ,इतिहास के पन्ने चाहे स्वर्णिम हों, या काले खुलते जरुर है, कर्मों के फल भुगतने ही पड़ते है ,सुर -असुर संग्राम की कहानी है रामायण ,देवासुर का अस्तित्व मानती है रामायण ,देव थे तों असुर भी थे, यही बताती है रामायण, असुरी प्रवृत्तियों के त्याग की शिक्षा देती है रामायण, पुरुष नही पुरुषोत्तम बनने का बताती है पथ, अब आप नेपथ्य में चले गए ,तब उस पथ पर चलने की कोशिश कर रहे ,जब मौका था चक्रवर्ती बनने का, तब भ्रष्टाचार में मौका ढूंढ रहे थे, जब बात राजनीति के सिद्धांतों की थी, राज करने की नीतियों की थी ,तब आप नीतियों में राज रखकर सरकार चला रहे थे ,सिर्फ सरकार बनने की आपकी कोशिश ने आपको असरकार नही होने दिया, नियति कैसी हों गई देख लीजिए  । शत्रु सम्मान की भी सीख है रामायण, रथहीन भगवान श्री राम ने पुष्पकधारी रावण का मान मर्दन कर दिया, शक्ति नही सत्य जीतता है, हरण से वरण नही होता, उसके लिए स्वयंवर में पुरुषार्थ दिखाना होता है ,धनुष पे प्रत्यंचा चढ़ानी होती है ,तब जाकर अवतारी भी मर्यादा पुरुषोत्तम होता है । शक्ति तों मेघनाथ कुंभकरण और रावण की असुरी सेना में भी थी, पर वों संबंधो की चाटुकारिता में रंगे थे ,सत्य से परे थे, वानर सत्य से भरे थे ,चाटुकारिता से बहुत दूर खड़े थे, अंतर इतने ने उन्हें जीता दिया, कालजीवी बना दिया ।अलौकिक सत्ता के अवतरण का प्रगटीकरण है अयोध्या ,जो अस्तित्व भगवान का मानते है वों पूण्य के भागी है , जो नही मानते वों राक्षस का अस्तित्व भी अस्वीकार कर सकते है, जो अस्तित्व राम का मानते है उन्हें भी नम्र होना चाहिए, शत्रु सम्मान की सीख लेनी चाहिए ,कलयुग के काले कारनामे है ,घोटाले ही घोटाले है ,फिर क्यों रामायण का उद्धरण कानून में संवैधानिक प्रावधान है, उनका उपयोग करिए अलग -अलग कालखंड की खंड -खंड तुलना क्यों ? कलयुग में सतयुग की अपेक्षा क्यों ?---------------------------------जब जान लिया तों सजा में देरी क्यों ?

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल






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