क्या अघोरी साधु मरे हुए इंसानों के मांस का सेवन करते हैं? जानिए क्या है इसके पीछे की सच्चाई

क्या अघोरी साधु मरे हुए इंसानों के मांस का सेवन करते हैं? जानिए क्या है इसके पीछे की सच्चाई

महाकुंभ 2025 का इंतजार खत्म हो चुका है. आज यानि 13 जनवरी को संगम नगरी प्रयागराज में वो दिन आ ही गया जिसका सबको इंतजार था. महाकुंभ के लिए देश के कोने-कोने से लेकर विदेशों तक से श्रद्धालु पहुंचे हैं. यहां सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं अघोरी बाबा. अघोरी वही, जो कापालिक क्रिया करते हैं. वही जो तांत्रिक साधना श्मशान में करते हैं और वी जो भस्म से लिपटे होते हैं. जिन्हें देख लोगों के मन में एक डर भी होता है. तो आज हम आपको उस सच से रूबरू करवाएंगे जिसे लेकर अघोरी हमेशा से ही चर्चा में रहते हैं.

वास्तव में अघोर विद्या डरावनी नहीं है. बस उसका स्वरूप डरावना होता है. अघोर का अर्थ है अ+घोर यानी जो घोर नहीं हो, डरावना नहीं हो, जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव नहीं हो. अघोर बनने की पहली शर्त है अपने मन से घृणा को निकालना. अघोर क्रिया व्यक्ति को सहज बनाती है. मूलत: अघोरी उसे कहते हैं जो श्मशान जैसी भयावह और विचित्र जगह पर भी उसी सहजता से रह सके जैसे लोग घरों में रहते हैं.

ऐसा माना जाता है कि अघोरी मानव के मांस का सेवन भी करता है. ऐसा करने के पीछे यही तर्क है कि व्यक्ति के मन से घृणा निकल जाए, जिनसे समाज घृणा करता है अघोरी उन्हें अपनाता है. लोग श्मशान, लाश, मुर्दे के मांस व कफ़न से घृणा करते हैं लेकिन अघोर इन्हें अपनाता है.

अघोर विद्या भी व्यक्ति को हर चीज के प्रति समान भाव रखने की शिक्षा देती है. अघोरी तंत्र को बुरा समझने वाले शायद यह नहीं जानते हैं कि इस विद्या में लोक कल्याण की भावना है. अघोर विद्या व्यक्ति को ऐसा बनाती है जिसमें वह अपने-पराए का भाव भूलकर हर व्यक्ति को समान रूप से चाहता है, उसके भले के लिए अपनी विद्या का प्रयोग करता है.

अघोर विद्या के जानकारों का मानना है कि जो असली अघोरी होते हैं वे कभी आम दुनिया में सक्रिय भूमिका नहीं रखते, वे केवल अपनी साधना में ही व्यस्त रहते हैं. अघोरियों की पहचान ही यही है कि वे किसी से कुछ मांगते नहीं हैं.

अवधूत दत्तात्रेय भगवान शिव का अवतार

अघोर पंथ के प्रणेता भगवान शिव माने जाते हैं. कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं अघोर पंथ को प्रतिपादित किया था. अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरु माना जाता है. अवधूत दत्तात्रेय को भगवान शिव का अवतार भी मानते हैं. अघोर संप्रदाय के विश्वासों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों के अंश और स्थूल रूप में दत्तात्रेय जी ने अवतार लिया. अघोर संप्रदाय के एक संत के रूप में बाबा किनाराम की पूजा होती है. अघोर संप्रदाय के व्यक्ति शिव जी के अनुयायी होते हैं. इनके अनुसार शिव स्वयं में संपूर्ण हैं और जड़, चेतन समस्त रूपों में विद्यमान हैं. इस शरीर और मन को साध कर और जड़-चेतन और सभी स्थितियों का अनुभव कर के और इन्हें जान कर मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है.

नर मुंडों की माला पहनते हैं अघोर

अघोर संप्रदाय के साधक समदृष्टि के लिए नर मुंडों की माला पहनते हैं और नर मुंडों को पात्र के तौर पर प्रयोग भी करते हैं. चिता के भस्म का शरीर पर लेपन और चिताग्नि पर भोजन पकाना इत्यादि सामान्य कार्य हैं. अघोर दृष्टि में स्थान भेद भी नहीं होता अर्थात महल या श्मशान घाट एक समान होते हैं.

 








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