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मुखिया के मुखारी – “अधजल गगरी छलकत जाए, पूरी गगरिया चुपके जाए”

मुखिया के मुखारी – “अधजल गगरी छलकत जाए, पूरी गगरिया चुपके जाए”

कांग्रेस की कथा चंहुओर व्यथा में परिवर्तित हो रही है ,यही हाल इंडी गठबंधन के बाकि दलों का है, आकुलता व्याकुलता सत्ता की मुद्दों से दूर कर रही,  मसले वों उठाये जा रहे जिनमे मुद्दा बनने की ताकत नही है,जन सारोकार नही, तों फिर अवैध भारतीय प्रवासियों को अमेरिका से वापस भेज देना इन्हें असरकार दिख गया ,नैतिकता से परे जों विधि सम्मत भी नही है ,उसके लिए घड़ियाली आंसू बहाने लगे, ये भारतीय अवैध घुसपैठिये थे अमेरिका के लिए अमेरिका ने वही किया जों घुसपैठियों के साथ किया जाना चाहिए था,अब इनको इसमें अस्क दिख गया होगा बंगलादेशी ,रोहिंग्या,घुसपैठियों का हश्र भी वही ना हो जाए डर सता गया, सों चिल्ला रहे बेवजह का माहौल बना रहे,गठबंधन तों अपना चला नही पा रहे चले अमेरिका कों अपने हिसाब से चलाने, घुसपैठियों कों कोई जवाई बनाए क्यों ?  कानून है उनकों रहना है तों मानना भी पड़ेगा ,देश संविधान से चलेगा कहने वाले दोनों तरफ घुसपैठियों की वकालत कर रहे, वैसे अमेरिका की अदालत ने ही बताया था की कुछ प्रदेश सरकारों कों घुस दी गई की तब तों मौन थे,हार से उपजी हताशा,फिर हार देखकर निराशा हो रही ,अकललेस चुनाव आयोग कों कफन ओढ़ा संविधान को शिखर पर पहुँचाने की कोशिश कर रहे ।

घोटालों की कालिख से पुते केजरी धार -धार आंसू आरोपों के बहा रहे,ना हार टलना है ,ना कालिख पूछनी है,तिहाड़ जाना तय है. अब तक अंतर्कलह गठबंधन के सारे गांठ खोल चुकी है, चुक गए है आप जन आकांक्षाओं को पहचानने से. सों पूरी नही हुई होंगी आपकी भी आकांक्षाएँ है ,बिहार में बहार आयेगी आपके कलह की समय बताएगा कितना मजबूत है गठजोड़ आपका ,बढ़ती उम्मीदे टूटती जीत की अभिलाषाएं चेतना शून्य कर रही, छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस छत्तीस टुकड़ो में बंट रही ,टूट रही,सरगुजा में कांग्रेस के कद्दावर नेता ने कहा अगला चुनाव बाबा के नेतृत्व में लड़ेंगे ,नगर निगम ही नही प्रदेश में सरकार बनायेंगे ,वक्तव्य से बवाल मच गया उम्रदराज बाबा जों है धैर्य के बैराज, उन्हें भी सफाई देना पड़ा,ढाई साल की समय सीमा गुजर गई ,सत्ता भी चली गई ,ढाई महीने के उपमुख्यमंत्री का पद भी स्वीकारा ,फिर भी ढाई अक्षर प्रेम के नही मिले, बाबा सत्ता नही मिली तों नही मिली सम्मान तों मिलना चाहिए, संतोष की सुखद अनुभूति होनी चाहिए ,महंत ने एका की बात की पार्टी को दिशा दिखाई, कुछ को बात बुरी लगी वों दिल्ली तक घूम आये,न महंत की बात पची न बाबा का नेतृत्व स्वीकारा ,बीच चुनावों में ही गुटबाजी और अहं ब्रह्मास्मि का नारा बुलंद हुआ ।

कानून किस खेत की मुली,काहे की प्रशासन की अनुमति ट्रैक्टर चला वों भी बिना अनुमति,पूर्व मुख्यमंत्री को कानून व्यवधान लगते है, सों इनके अपने प्रावधान है,सत्ता चली गई सत्ता को हाँकने वाले जेल चले गए, कई मुहाने पर खड़े है पर मुंह से अप्रिय बोल ही निकल रहे है ,अपने ही वरिष्ठों का अपमान, चाटुकारों का सम्मान कैसे बचा पाएंगे आप अपने दल का स्वाभिमान,अभिमानी को कहां कोई भान होता है ? उसके लिए सबसे बड़ा अपना मान होता है, चुनाव संचालक बनकर जिसने महंत,रामसुन्दर दास की लुटिया डूबाई उन्हें दो वार्डो की पार्षद उम्मीदवारी मिल गई, पूर्व महापौर ,सभापति के घर में महिला सशक्तिकरण का जलवा बिखरा ,बिखर गए अरमान कांग्रेस नेत्रियों के ,दीप्त हो गई दीप्ति महापौर की उम्मीदवारी से, किरनमयी संवैधानिक पद का हवाला दे पद पर बनी है, फिर भी चुनाव प्रचार कर रही है ,प्रेम तों प्रेम है राजधानी ना सही न्यायधानी से देवर प्रेम है, तीन प्रथम नागरिक रायपुर के मिशाल है त्याग के, सत्ता घर में ही रहे, पूरी नही तों अर्ध रहे, चाहे अर्धागनी के पास रहे,देवर के लिए सत्ता का वर मांगने में भी त्याग है, सत्ता की उम्मीद की किरण वही तों है । कार्यकर्ता आस लगाए बैठे थे उनकी आस धरी की धरी रह गई ,अस्तित्व पे संकट दीपक के था बच गई तों कार्यकर्ताओ का अस्तित्व संकट में डाल दिया, टिकिट देने के बजाय बेच दिया, बागी को भी सत्ता का भागी बनाने की चाह थी ,सरदार ने असर उस काम का होने नही दिया ,महापौर का चुनाव राजधानी में 70 वार्डो का है,पर उम्मीदवार 68 वार्डो से लड़ रही ,निवर्तमान महापौर का फोटो नही लगा रही पति इच्छा कबुल है,दिल नही मिले तों क्या हुआ दल तों एक है ,बिना दिल मिलाये ही दिल जीत लेंगे ,बिना मत पाए ही चुनाव जीत लेंगे, ये है सबकी सदइच्छा,कांग्रेस की जीत की जिजीविषा बिना एका के एकला चलों रे के इरादें ,नारे सारे जीत वाले नारों से ही चुनाव नही जीते जाते ,नियत ठीक ना हो तों नियति नही सुधरती ,बिना सबकों साधे सत्ता की कुंजी नही मिलती, पूंजी सत्ता की क्षर रही ,गुमान फिर भी पूंजीपतियों का ,विपक्षी होकर भी तेवर सत्ताधिशों सा ,आपके इस हश्र के लिए पुरानी कहावत है पढ़कर सीख समझ ले तों भविष्य सवर जाए, दल का भी आपका भी ---------------------------------------“अधजल गगरी छलकत जाए, पूरी गगरिया चुपके जाए”

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल

 






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