डौंडीलोहारा :- ग्राम कामता में पांच दिवसीय रामचरित मानस का आयोजन किया गया है। जिसके तीसरे दिन उपाध्यायपुर उत्तर प्रदेश के भागवताचार्य एवं राम कथा वाचक पूज्य कृपा शंकर मिश्र जी के द्वारा लगातार व्यास पीठ पर विराजमान होकर राम कथा की अविरल धारा बहा रहे हैं । ग्रामीणों के अलावा आसपास के उनके शिष्य मंडली तथा श्रद्धालु भक्तगणों ने राम कथा का श्रवण पान करने लगातार ग्राम कामता पहुंच रहे हैं। दोपहर 12 बजे से शाम 4 बजे तक राम कथा की अविरल धारा बहती है। पंडित कृपा शंकर मिश्र ने राम कथा की व्याख्या करते हुए कहा कि जीव जब शिव की सम्मुख हो जाता है, अपने आपको समर्पण कर देता है तो जीव और शिव का मिलन होता है। भक्त और भगवान की चर्चा करते हुए कहा कि एक बार जब कुम्हार की पत्नी घड़े को पकाने के लिए इक्कठा करके रखी थी तो उस कच्चे मिट्टी के घड़े में बिल्ली का बच्चा घुस गया था। घड़े को पकाने के लिए आग जलाया जा चुका था। भगवान नारायण की स्तुति से जिस घड़े में बिल्ली का बच्चा घुसा था उस घड़े को आग गर्म तक नहीं कर पाया।
सारे घड़े आग से पक चुका था और एक घड़े से बिल्ली का बच्चा उछलते कूदते बाहर आया। ये भगवान की असीम कृपा है। भक्ती हमेशा जनकल्याण के लिए होना चाहिए। गोस्वामी तुलसीदास जी को उनकी धर्म पत्नी रत्नावली ने ज्ञान देकर प्रभु के चरणों में समर्पित कर दिया। एक स्त्री ऐसा होता है जो अपने पति को आंख से ओझल नहीं होने देती है। और एक पत्नी रत्नावली ने गोस्वामी तुलसीदास को भगवान श्रीराम के चरणों में समर्पित कर दिया। पंडित कृपा शंकर मिश्रा ने आगे बताया कि गोस्वामी तुलसीदास जी की पत्नी रत्नावली को तीजा के समय उनके मायके वाले लिवा करके ले गए तो पत्नी की वियोग में व्याकुल सा होकर गोस्वामी तुलसीदास जी ने रात्रि कालीन बेला में अपनी पत्नी के मायके जाने लगा। नदी नाला उफान पर था अंधेरी रात थी परन्तु पत्नी के वियोग में गोस्वामी तुलसीदास को कुछ नहीं सूझ रहा था। नदी में बहते हुए एक लाश आ रहा था उसे नौका समझकर उसी में सवार होकर नदी को पार किया। बारिश का मौसम होने के कारण रिमझिम रिमझिम वर्षा हो रही थी गोस्वामी तुलसीदास जी बारिश से पूर्णतया भीगे हुए थे देवी रत्नावली अपने कमरे में विश्राम कर रही थी आवाज देने पर किवाड़ नहीं खुला तो गोस्वामी तुलसीदास जी ने खिड़की के सहारे अंदर रूम में प्रवेश करने का प्रयास किया।
बार-बार असफल होने पर वहीं एक खिड़की में सर्प लिपटा हुआ था उसे रस्सी समझ कर पकड़ कर अंदर प्रवेश कर गया। आधी रात के बेला में देवी रत्नावली ने अपने स्वामी को पाया तो आश्चर्य करने लगी इस भयंकर बारिश में आप किवाड़ बंद होने के बावजूद कहां से प्रवेश कीये हैं स्वामी तो उन्होंने खिड़की की ओर इशारा करते हुए बताया की इसी रास्ते से रस्सी को पकड़ कर अंदर आया हूं। देवी रत्नावली देखी तो बड़ा आश्चर्य चकित हो गई। भयंकर सर्प है जिसे आप पकड़ कर अंदर प्रवेश किए हैं उसी क्षण गोस्वामी तुलसीदास जी को कहा कि स्वामी हाड़ मांस की शरीर के लिए आप इतना प्रेम कर रहे हो । काश इसी प्रेम को भगवान श्री राम के चरणों में करते तो आपके जीवन उद्धार हो जाता आपके कुल तर जाते । ऐसा कठोर बात को सुनकर गोस्वामी तुलसीदास जी को बहुत पश्चाताप हुआ और उसी क्षण वापस लौट करके प्रभु श्रीराम को समर्पित हो गए। हर माता को धर्ममय जीवन यापन करते हुए सभी का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए इसी में आनंद है।पंडित कृपा शंकर मिश्र ने रामचरित मानस को मनुष्य जीवन के लिए एक अमूल्य मार्गदर्शक बताते हुए कहा है कि यह हमें सदाचार, कर्म, कर्तव्य, मर्यादा, भक्ति, विश्वास, सत्य और न्याय जैसे मूल्यों का पालन करने की प्रेरणा देती है। रामायण के आदर्श चरित्र और शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं और हमें एक बेहतर जीवन जीने में सहायता करती हैं। रामचरित मानस से हमें सीख लेना चाहिए कि जीवन में परिस्थितियाँ कितनी भी खराब क्यों न हों, अच्छाई हमेशा बुराई पर विजय पाती है। हर परिस्थिति में ईश्वर का स्मरण करते हुए जीवन आपन करें। आपका कल्याण ही होगा।



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