मुखिया के मुखारी –  जुगलबंदी, जुगलबंदी बस जुगलबंदी की राजनीति हो रही है 

मुखिया के मुखारी –  जुगलबंदी, जुगलबंदी बस जुगलबंदी की राजनीति हो रही है 

छत्तीसगढ़ की राजनीति के राज समझ से परे हो रहे,घपले ,घोटालों भर्ष्टाचार के आरोपों से कांग्रेस सरकार की विदाई हुई ,भाजपा को सत्तारूढ़ हुए एक साल से उपर हो गया,आरोपों की जाँच चल रही, गिरोह के प्यादे जेल पहुँच गए, साथ उनका मंत्री विधायक और अधिकारी दे रहे ,पर सरगनाओं की सरगर्मी जस की तस है,बयानों से बाज बनने की तैयारी है,सरकार गाल बजाने क्यों दे रही, बयान बहादुरों को बहादुरी का जानें क्यों पूरा अवसर प्रदान कर रही,जाँच एजेंसियों के पास आरोपियों और उनके सहयोगियों के बयान है ,पुख्ता सबूत है,आरोपियों के आवेदन पर न्यायालय शराब निर्माताओं को आरोपी बनाने का आदेश दे चुकी,सबूत है ये साबित हो रहा, नियत की नियती और ना ही सरकारी नीति समझ में आ रही ,पूर्ववर्ती सरकारों के घपले घोटालों की जाँच क्या पांच वर्षो तक चलेगी? सरकार अपने पुरे कार्यकाल में क्या यही कार्य करेगी ? ऐसा नही है की जों हो रहा वों सरकार को पता नही है ,स्थानीय निकायों के चुनावों में भाजपा कांग्रेस ने मय से मतों का कारोबार किया,आरोंप है बाहरी प्लास्टिक बोतलों में भरी शराब जों पाटन में बटी वही पंडरिया ने बटा,यही आलम पुरे प्रदेश का था, सत्ता पक्ष और विपक्ष की जुगलबंदी मय के लिए दोनों एक मत, लगता है एक ही स्कुल की शिक्षा है ।

शराबबंदी के वादों से उपर कुछ नही होगा, शराबबंदी छत्तीसगढ़ के भाग्य में  नही दिखता,नशा नाश का जड़ है ये सिर्फ सरकारी जुमला है,नशा सत्ता के द्वार खोलता ,नेताओं को समृद्धशाली बनाता ,नशे के कारोबार में संलिप्त सरकारों से जनता नही होती तृप्त,फिर भी सरकारों को मदिरालय से लगाव है,ये चाहत बताती है सत्ता के लिए अंदरखाने बात ही नही समझौते भी होते,जाँच के नाम पर एक दुसरे की पीठ खुजाते ----विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति। बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति।। -------रामचरितमानस चौपाई बताती है की न्याय के लिए भय जरुरी है,पर यहां तों भय प्रेम के लिए उपजाया जा रहा है, भय से न्याय नही समझौते के रास्ते खोजे जा रहे,सुशासन वाली सरकार को अपनी छवि से ज्यादा दावों पर भरोसा है,यदि घोटालेबाजों को सजा नही मिली, छ.ग.को न्याय नही मिला तों फिर कैसा सुशासन ? विभाग नही कोई अछूता सरकारी कारिंदे रंगे भर्ष्टाचार के रंग में, हिस्सेदार नेता अधिकारी ,व्यापारी सब फिर भी नही हो रही कोई ठोस कार्यवाही,सारी बड़ी मछलियाँ ताल सुर में ताल में विचरण कर रही ,सरकार का कोई विचार त्वरित न्याय का दिखता नही ,राजनीति खड़ी जिस मोड़ पे है वहां कछुए की चाल भी टिकती नही,  भर्ष्टाचार के हिस्सेदार अफसरों ने जादू ऐसा चलाया है, कि सरकार सबूत खोज रही और उन्होंने कागजों को ताबूत में दबाया है । भर्ष्टतम इतिहास के रचयिता हिस्सेदारों से सरकार की सहानुभूति सरकार को बेअसर ही नही अलोकप्रिय भी करेगी,पड़ोसी के कुकर्मों की आड़ में कर्म अपने छिपेंगे नही,सुशासन के लिए सत्कर्म है जरुरी।

कांग्रेस का नया सूत्र वाक्य है हार में ही जीत है,हारे सारे पदाधिकारी बन रहे, अपने प्रदेश में आकाल लाने वाले पंजाब में बहार लायेंगे,बाकि हारे प्रदेश में कांग्रेस का भाग्य सवारेंगे,हारे नेता हर हाल में मस्त, कांग्रेसी पस्त, त्रस्त,चोरी और सीना जोरी का जोर है ,जोर -जोर से कांग्रेस भवन का शोर है ,भर्ष्टाचार व्यक्तिगत या सरकारी ही नही सामूहिक था ये इसका सबूत है ,बाबा भी बवाल में शामिल है, भर्ष्टाचार पर जवाब की जगह सिर्फ उनके सवाल है,CGMSC,आयुष्मान ,जल जीवन मिशन के घपलों की पोल खुल रही, फिर भी वों पोल डांस कर रहे ,पोल -पोल का ना अंतर समझ रहे ना उस संदर्भ में कुछ बोल रहे, ढाई अक्षर प्रेम (सत्ता ) के में खा धोखा ढाई अक्षर प्रेम के भर्ष्टाचार के लिए बोल रहे, राजनेताओं की दुश्मनी दिखावे की, दिखती उन्हें सिर्फ सत्ता है, जहां हिस्सेदारी बाँटने की प्रथा रही हो वहां अभी हिस्सेदारी ना हो रही हो संशय है ? संशय धारणा बन जायेगी यदि कार्यवाही ऐसी मंथर हो, धान गुरमटिया और दुबराज में कुछ तों अंतर हो ,विष्णुभोग तों न्याय का ही होगा,जनआकांक्षाओं  पर खरा नही उतरे तों छ .ग. की उम्मीदें टूटेंगी ,जनता और सरकार की कड़ी टूटेगी,वादों से उपर उठिए, कड़ी कार्यवाही करिए , छ .ग. की राजनीति में एक ही शोर है, चहुँओंर उसी का जोर है ------------------------------------ जुगलबंदी, जुगलबंदी बस जुगलबंदी की राजनीति हो रही है ।

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल
 






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