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मुखिया के मुखारी –  लोकतंत्र में बहुमत का सम्मान करना सीखिए

मुखिया के मुखारी – लोकतंत्र में बहुमत का सम्मान करना सीखिए

लोकतंत्रीय व्यवस्था का आधार बहुमत है,बहुमत से जनप्रतिनिधि और सरकारें चुनी जाती हैं,बहुमत से सरकारों का और संसद एवम विधानसभाओं का संचालन होता है,बहुमत से ही कानून बनाए जाते है,एक वोट से केंद्र की वाजपेयी सरकार गिर गई थी ये मत की महत्ता है,शत प्रतिशत वोट पाकर ना कोई जनप्रतिनिधि बनता है,ना कोई सरकार बनती है,ना ही शत प्रतिशत मतदान होता है,लोकतंत्र में विरोध का प्रावधान है,पर वों सकारात्मक होना चाहिए, सिर्फ विरोध के लिए विरोध व्यवस्थाओं के लिए अनुचित है,राजनीतिक दल सत्ता विहीन होते ही विरोधी मतों के साथ अराजकता पैदा करने की कोशिश कर रहे ,मतदान से मिली हार को सड़क की अराजकता में उसका हल ढूंढने की असफल कोशिश है,शत प्रतिशत संतुष्टि किसे और कौन से तंत्र से मिली है,आधुनिक भारत में भी बहुमत के सम्मान की जगह अल्पमतों के तुष्टीकरण से लोग सत्तारूढ़ हुए,बहुमत होने के बाद भी नेता जी को कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ना पड़ा ,सरदार पटेल प्रधानमंत्री नही बन पाए बिना मतों के नेहरु जी प्रधानमंत्री मनोनीत किए गए ,राजनेताओं के यही तानाशाही पारिवारिक राजनीति ने विद्रोह को जन्म दिया ,पार्टियां टूटी ,1977 में बनी जनता पार्टी सरकार के बहुतायत सदस्य और प्रधानमंत्री पूर्व कांग्रेसी ही थे,पदलोलुपता के अन्तर्विरोध से सरकारें गिरी आयाराम गयाराम की कई मिसाले देश ने देखी जिन्होंने सत्ता के लिए नई पार्टियां बनाई उन्होंने लोकतंत्र की सेवा से ज्यादा महत्ता परिवार तंत्र को दिया।

सत्ता उनके घर की चौखटों में बांध दी गई लोकहित की जगह स्वहित ने ली सत्ता के समीकरण बदले सारे भूतपूर्व हो गए,राजनीतिक संक्रमण के दौर में देश ने गठबंधन सरकारों का दौर भी देखा, स्थिरता और अस्थिरता के हिचकोलों से निकल पूर्ण बहुमत की सरकार का दौर आया ,मजबूत सरकार मजबूत फैसले लेने लगी ,देश में ही नही पुरे विश्व में राष्ट्रवाद की अलख जगी ,दक्षिण पंथी सरकारें बनी ,देश में भी यही हुआ ,राष्ट्रवाद के उभार में आत्मगौरव से लबरेज किया, बहुमत की सरकार ने उसका सम्मान किया ,स्वतन्त्रता आंदोलन के दौर में कांग्रेस अकेली राजनीतिक शक्ति थी जिसके संस्थापक और  कई अध्यक्ष अंग्रेज अधिकारी थे, 1930 में पहली बार कांग्रेस  ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव तब पास किया जब 1920 में तत्कालीन कांग्रेसी और आरएसएस के संस्थापक डॉ.हेडगेवार के प्रस्ताव को कांग्रेस ने अंगीकार नही किया,बाद में उन्होंने आरएसएस का गठन किया,देश का बहुमत कांग्रेस के साथ था तों मुस्लिम लीग का गठन कैसे हुआ ? यदि गंगा जमुनी, तहजीब थी तों फिर देश का बटवारा कैसे हुआ ?

बहुमत बटवारे के पक्ष में नही था तों फिर अल्पमत की कैसे चली या फिर ये अर्धसत्य हैं? इतिहास से तथ्य छुपाए गए  वीभत्स नरसंहार के बाद मिली आजादी अहिंसक बताई जाती है,बहुमत का सम्मान होता तों देश का बटवारा नही होता ,बहुमत के अपमान की नई ईबारत लिखनी की कुचेष्टा हो रही,विश्व 21 वीं सदी में पहुँच गया पर न्याय की कोई व्यवस्था नही हो रही ,तुष्टीकरण वोटों के लिए उसकी खातिर न्याय की उपेक्षा हो रही,हिन्दू धार्मिक स्थल विवादों से घिरे, आस्था फाईलों में बंद बहुमत के लिए धर्म स्थल कानून का रोड़ा ,अल्पमत के लिए वक्फ बोर्ड कानून का तोहफा, अन्याय की उम्र लम्बी नही होती तों जनमानस बदला उसने सरकारें बदल दी ,जिन्होंने सत्ता को अपने ढेहरी में बंधक समझ लिया था वों खुद समय के बंधन में  बंध गए। बहुमत से दूर सत्ता से विमुख मुख से सिर्फ अराजकता की वकालत बहुमत बदला आपके अपने सिद्धांत विहीन राजनीति से बहुमत का अपमान कैसे आपको सत्ता का सम्मान दिलाता ,देश की प्रगति आपकों अखर रही क्योकि आपको अपनी प्रगति चाहिए थी,ना दल राजनीतिक थे ,ना देश सेवा की भावना थी,दल पारिवारिक ,पारिवारिक हित सर्वोपरि थे, आज जब राजनीति सिध्दांतों की  राष्ट्र प्रथम की नीति से हो रही बहुमत उसे बारम्बार चुन रही तों आपकों मिर्ची लग रही ,जिनका इतिहास तानाशाही से भरा पड़ा जिन्हें अपने परिवार के बाहर कोई नेता नही मिला ,वों तानाशाही की परिभाषा लिख रहे खुद अल्पमत के तानाशाह ,बहुमत की सरकार को तानाशाह बता रहे,जिनकों नही मिली राजनीति की प्राथमिक शिक्षा वों बहुमत और अल्पमत का अंतर कैसे समझें ,देश प्रदेश निकायों के चुनावों में हार रहे फिर भी मतदाताओं के उपर ऊँगली उठा रहे,लोकतंत्र बहुमत के सम्मान से ही कायम रह सकता है यही इसका मूल आधार हैं,सत्ता वरण करना हो यदि तों ---------------------लोकतंत्र में बहुमत का सम्मान करना सीखिए

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल
 






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