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मुखिया के मुखारी – होली वक्फ की रार कितना बढ़ाऐगी दरार 

मुखिया के मुखारी – होली वक्फ की रार कितना बढ़ाऐगी दरार 

होली महाकुंभ, वक्फ ,औरंगजेब  जैसे कई संवेदनशील मुद्दों पर रोज नई रार हो रही दरारें तों इससे बढ़नी ही है,धर्मनिरपेक्षता और गंगा जमुनी तहजीब की दुहाईयां सदियों से दी जा रही पर क्या इनका अस्तित्व प्रभावशाली है? यदि गंगा जमुनी तहजीब है तों फिर देश का बटवारा क्यों हुआ ? होली के रंग कैसे किसी को नागवार लग सकते है ? रंग बेचना गैर इस्लामिक नही है ,तों फिर रंग लगाना कैसे धर्म को दूषित कर सकता है? रंगरेज अधिकांश मुस्लिम हैं ,निकाह में भी हल्दी, आलता और जोड़ा सुहाग का रंगीन ही होता है,और ये विशुद्ध भारतीय परंपरा है,मतदान की स्याही के साथ भी नमाज अदा की जा सकती है ,तों फिर होली के रंगों से चिढ़ क्यों ? बवाल तों माँ के पैर छूने और बिटिया के होली खेलने पर भी हुआ,क्योकिं माँ,बेटी को भी सिर्फ मुस्लिम नजरिए से देखा गया,क्या ये बवाल कुतर्को की चरम पराकाष्ठा नही है ? मीमांसा यदि धर्म ग्रंथो की हो सकती है ,तों फिर वों सारे धर्म ग्रंथो पर लागू क्यों नही हो सकता ? यदि रामचरितमानस, मनु स्मृति जैसे धर्म ग्रंथ जलाए, फाड़े जा सकते है उनकी आलोचनाएँ हो सकती है, तों फिर यही मापदंड और यही सहिष्णुता सर्वव्यापी क्यों नही हो सकती ? यदि बाल विवाह, सती प्रथा गैर कानूनी है तों फिर हलाला कैसे नारी अस्मिता का पर्याय हो सकता है ?

देश का बटवारा हिन्दू मुस्लिम सह अस्तित्व को नकारने का परिणाम था ,संस्कृति से बड़ा धर्म को समझा गया, तराना ए हिंदी ( सारे जहां से अच्छा ) लिखने वाले अल्लामा इकबाल ने किस मनोदशा के साथ तराना ए मिल्ली लिखा 1906 में ढाका के नवाब सलीमुल्लाह ने मुस्लिम बुद्धजीवियों के साथ मिलकर मुस्लिम लीग की स्थापना की जों मुस्लिम लीग 1937 तक नेपथ्य में रहा, वों उसके बाद इतना प्रभावशाली हो गया की उसने अलग मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान बनवा लिया ,1946 के चुनावों ने भारतीय सभ्यता की दिशा हमेशा के लिए बदल दी,1585 सदस्यीय केन्द्रीय विधान मंडल की सीटों में से 923  ( 58% ) सीटें  कांग्रेस ने जीतीं 425 (26.8%) सीटों पर मुस्लिम लीग जीतीं, आरक्षित मुस्लिम सीटों में से  87 % सीटें मुस्लिम लीग ने जीतीं ,उस वक्त देश की आबादी में 66.4% हिन्दू थे और 23.6% मुस्लिम पर मुस्लिम सीटें आरक्षित हुईं 31% ,1946 के चुनावों को चरम इस्लामी रंगों से भरा गया, जहां मुस्लिम लीग के लिए मतदान करना अनिवार्य बना दिया गया, पाकिस्तान की परिकल्पना से असहमत मुस्लिमों को काफिर घोषित किया गया, फतवे जारी हुवे, जिसमें नमाजे जनाजा और मुस्लिम कब्रिस्तान में दफनाने की मनाही की गई, मुस्लिम लीग ने अपनी ताकत बढ़ाने के लिए पीरों और मौलवियों को गोलबंद किया,राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति धार्मिक कट्टरता से पाई गई,धर्म के नाम पर देश बट गया, ये बटवारा बताता है की धर्मनिरपेक्षता और गंगा जमुनी तहजीब का बोझ हम ढो रहे, उसे प्रभावी ना तब रख पाए थे ना वों आज प्रभावी है,आक्रांताओं ने तलवार के दम पर धर्मांतरण तों करवा लिया ,लोग कट्टर भी हो गए ,पर आज भी भारतीय मुसलमान जातिप्रथा को मानते है क्यों ?जिन्ना के दादा हिन्दू थे, ऐसा ही इतिहास भुट्टों, लियाकत अली, फारुख अब्दुल्ला ,ओवैसी सबका है, जब जाति गैर इस्लामिक है, तों फिर मुस्लिम आरक्षण किस आधार पर मांगा और दिया जा रहा है ? चुनावों में फतवों की धार्मिक कट्टरता की शुरुवात आज की नही है ये 1946 के चुनावों से चली आ रही है,यही मुस्लिम लीग के उभार और देश के बटवारे का सबसे बड़ा कारण था,फिर हम 1946 के दौर में खड़े है जिसमें उदंडता को समझाइश नही दी जा रही बल्कि उनकी नाजायज फरमाईशे मानी जा रही हैं,क्या फिर देश में वही परिस्थितियां बनानी हैं ?

यदि धर्म निरपेक्ष हैं तों अलग से मदरसा ,वक्फ बोर्ड,पर्सनल लॉ  क्यों  ? यदि गंगा जमुनी ,तहजीब है तों होली और रमजान में  हिन्दू मुस्लिम सहभागिता क्यों  नही होती ? हिस्टोरियनों ने इतिहास डिस्टोरियन बनके लिखा दुष्परिणाम सामने है,मुस्लिमों के लिए गैर मुस्लिम काफिर हैं,चाहे वों स्वर्ण हों या पीडीए ,गजवा ए हिन्द ,काफिर ,गाजी का मतलब क्या है ? क्या इसकी मीमांसा नही होनी चाहिए ? तहजीब यदि संगम को कहते है तों उसके लिए गंगा और जमुना का मिलना जरुरी है,दुर्भावना से संगम कैसे होगा ? दुर्भावनाजनित तहजीब गंगा जमुनी कैसे होगी? अपनी आस्था को श्रेष्ठ दुसरे की आस्था को कमतर बता सहअस्तित्व कैसे पाया जायेगा ? अंग्रेजों ने देश को गुलाम बनाया परिस्थिति बदली देश छोड़ चले गए ,देश की आत्मा को छलनी नही किया ,ना मंदिर तोड़े ,ना तलवार की दम पर धर्मांतरण कराया ,ना गाजी की पदवी धारण की, ना भगवानों के विग्रहों को मस्जिदों की सीढ़ियों के नीचें दबाया। कल ये साबित हो जाए की जिसे आप फव्वरा बता रहे वों शिवलिंग तों फिर क्या आप उस जन आक्रोश को थाम पाएंगे ? अपनी इस करनी के लिए आँखे मिला पाएंगे ?  समय की कसौटी पर सब कसे जायेंगे ,यदि तीन सौ साल बाद औरंगजेब जैसे क्रूर शाषक के कब्र पर सवाल है ,तों वक्त  आयेगा जरुर ,जब आज के औरंगजेब प्रेमी उसी प्रवृति वाले नेताओं की क्रूरता और समाधि स्थलों पर सवाल ऐसे ही उठेंगे, पूर्वजो के कुकर्मो पर नई पीढियां उन्ही की लज्जित होंगी जरुर,धर्म बड़ा होता तों पाकिस्तान बांग्लादेश अलग ना होते, ना 100% मुस्लिम देशों में आतंक का राज होता ,ना मस्जिदों में बम फट रहे होते,गलत को सही बताने का जतन कितना भी कर लें वों रहेगा गलत ,होगा गलत वतन के लिए,भारत माता और माँ का प्रेम सब बच्चों के लिए एक जैसा पर उदंडता की सजा की बात संविधान में लिखी है ,विरोध संवैधानिक है तों सरकार को संसद में कानून बनाने का अधिकार भी संवैधानिक ही है ,फिर संविधान की संविधान से भाई की भाई से लड़ाई क्यों ? यदि न्याय ,संविधान है तों फिर समदर्शिता क्यों नही?  सही गलत का फर्क क्यों नही?  क्या एकतरफा रवैय्ये से भाईचारा बढ़ेगा? इफ्तार पार्टी जरुरी तों फिर होली मिलन क्यों नही है जरुरी ? फिजा में कट्टरता घोली जायेगी तों रार होगा और रार से दरार बढ़ेगी ----------------------------------------होली वक्फ की रार कितना बढ़ाऐगी दरार।

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल
 






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