7 अप्रैल 2025: वक्फ संशोधन बिल पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर ने उसे कानून में परिवर्तित कर दिया, वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसलों के खिलाफ न्यायालयों में अपील नही की जा सकती थी, सिर्फ रिट लगती थी,आज वही कानून की डेहरी पर खड़ा है ,वक्फ संशोधन बिल के लिए कांग्रेस, ओवैसी और मुस्लिम नेता उच्चतम न्यायालय में याचिकाएं दायर कर इसे रद्द करने की मांग कर रहे, इसे असंवैधानिक बता रहे, संसद से कानून ऐसे ही पास होते हैं और होते आये हैं । जब वक्फ बोर्ड का कानून बना ,जब इसमें संशोधन हुए 1995 में धारा 40 जोड़ी गई,2013 में इसे असीमित अधिकार दिए गए ,तब इसे संसद ने ही पारित किया था, तब कांग्रेस और विपक्षी दल सत्ता में थे,उनके पास बहुमत था, तब कानून बनाना सही था,जब अबकी सरकार प्रदत्त संवैधानिक अधिकारों के अनुरूप कानून बना रही है तों विपक्षियों के मुंह क्यों बिगड़ रहे हैं ? यदि सरकार गैर संवैधानिक कृत्य कर रही तो आप उच्चतम न्यायालय गए ही हैं वहां फैसला हो जाएगा फिर सड़को पर फैसलों की बात क्यों ? आंदोलन की धमकियां क्यों ? संसद से पारित कानून को नही मानेंगे का उदघोष क्यों ? दान ( वक्फ ) दी हुई संपत्तियों का कुप्रबंधन, वक्फ बोर्ड ना कोई धार्मिक संस्था है ,ना उसकी संपत्ति निजी है,वों सामुदायिक संपत्ति है ,जिसका उपयोग सामुदायिक कल्याण के लिए होना निहित है ,क्या ऐसा हो रहा ?
वक्फ की संपत्तियों पे अवैध कब्जे हैं ,होटल, मॉल ,फार्महाउस व्यवसायिक परिसर सब बन गए ,पर इस पर काबिज कौन है? क्या इसकी आय चुनिंदा लोगों के जेबों में नही जा रही,आम मुसलमान को इससे क्या फायदा हो रहा ? बावजूद इसके वक्फ बोर्ड संसद एयरपोर्ट ,कुंभ मंदिरों ,चर्चों ,सरकारी जमीनों पर अपने दावे ठोक रहा ,ना खाता ना बही जों वक्फ बोर्ड कहे वही सही क्यों ? संपत्तियों के कुप्रबंधन की कई मिसालें फिर भी जमीनों पर अवैध दावा इसमें किसका फायदा ? सच्चर कमिटी की रिपोर्ट कहती है की वक्फ संपत्तियों से यदि 10 % आय हो तो वो 12 हजार करोड़ रूपये होती है 100 % में तों ना जानें इसमें और कितना शून्य लगाना पड़े,पर आय हो रही सिर्फ 168 करोड़, संपत्तियां बढ़ रही आय घट रही क्यों ? यदि सच्चर कमिटी सही हैं तों आय के ये आंकड़े भी सही हैं ,इसका जवाब कौन देगा ? वक्फ की संपत्तियों पर अवैध कब्जे किस राजनीतिक दल के नेताओं के नही हैं ,उन्होंने लीज के नाम पर संपत्तियों की बंदरबांट भी खूब की है मुस्लिम धार्मिक नेताओं की भी इनमें सहभागिता है,कब उन्होंने इसका विरोध किया सहभागिता के सुर आज भी मिले हुए हैं ,वक्फ संशोधन कानून का विरोध करने वालों के उपर वक्फ की संपत्तियों पर कब्जे और उन्हें कौड़ियों के मोल बेचने लीज पर देने के आरोप हैं,इन आरोपों पर बुद्धजीवी मौन हैं।
खोजी पत्रकारिता तो दूर समाचारों की भी कोई खोज नही हो रही,ओवैसी ने सैकड़ो एकड़ वक्फ की जमीन पर हैदराबाद में कब्ज़ा कर रखा है बावजूद इसके वों मीडिया में वक्फ संपत्तियों को बचाने का दावा कर रहे ,यही हाल बाकि सबका है ,पर मीडिया कभी इनसे इनके अवैध कब्जों पर कोई सवाल नही पूछती क्यों? एकतरफा तर्क को बढ़ावा देने का कारण चढ़ावा ही होगा मीडिया में भी चढ़ावा खूब चढ़ता है,भ्रष्टाचार की चाशनी यहां भी खूब चांटी जाती है,कुतर्की प्रवक्ताओं की बदजुबानी दुर्व्यवहार इसीलिए सहे जाते हैं,बेबश न्यूज़ एंकर अपनी कमजोरी नही छुपा पा रहे वों लोकतंत्र कों मजबूत बनाने की बात करते हैं, सपा के सांसद मिया नदवी ने वक्फ संशोधन पर खूब बोला ,अधिकारों की वकालत की मौलवी हैं ,बहुविवाह किये हैं,पत्नी बच्चों कों गुजारा भत्ता देने से इंकार किया तों न्यायालय ने सम्पत्ति कुर्क कर गुजारा भत्ता दिलाया, जिनके व्यक्तिगत जीवन में ना कोई स्थान नारी अस्मिता का ,अधिकारों का वों सार्वजनिक जीवन में संसद में इन्ही पर ज्ञान पेल रहे थे कथनी और करनी का अंतर बुद्धजीवियों को नही दिख रहा,विपक्षी दलों ने कमर कास ली है,एकतरफा प्रेम और हिन्दू विरोध का यदि है, वक्फ बोर्ड जरुरी तों सनातन बोर्ड भी बनवा दीजिये ,वही अधिकार दे दीजिये धर्म निरपेक्ष हैं तो हर धर्म को वक्फ बोर्ड जैसी सुविधाएं दे दीजिये ,क्या 1991 का वर्शिप एक्ट हिंदू हितों की रक्षा करता हैं ,उसके लिए क्यों कभी न्यायालय नही गए ,संसद में क्या कभी कुछ बोला हिंदूओं का भाग्य था कम्युनल वायलेंस बिल लागु नही हों पाया, वरना इस देश में हिन्दुओं का जीना मुहान हो जाता,वक्फ वर्शिप कम्युनल वायलेंस एक्ट के मसौदों को गजवा ए हिन्द गाजी ,काफ़िर जैसे शब्दों के भावार्थो को समझना हर भारतीय को जरुरी है, धर्म निरपेक्षता और समानता कितनी सतही और एकतरफा है, ये उसकी बानगी हैं ,वक्त बदल रहा हिंदू अस्मिता जाग रही, जेडीयू टीडीपी पर उसका असर हुआ ,जागी अस्मिता कायम रही तो बहुतों को बदलना होगा और वों बदलेंगे भी ,सरकारों को धर्मो में हस्ताक्षेप नही करना चाहिए ,तों फिर हिंदू कोर्ट बिल क्यों ? मंदिरों पर नियंत्रण क्यों ? ,अल्पसंख्यक प्रेम है तों फिर वास्तविक अल्पसंख्यक पारसियों से यही मोहब्बत क्यों नही दिखती ? चुनाव लड़कर हारे, बहुमत से तरसे लागों की यही है मंशा -------------------------बहुमत को तरसाना है,लड़ाकर उन्हें सत्ता पाना हैं
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल की टिप्पणी
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