महावीर जयंती : राजघराने में हुआ था महावीर का जन्म,जानिए राजपाट छोड़ कैसे बने संन्यासी

महावीर जयंती : राजघराने में हुआ था महावीर का जन्म,जानिए राजपाट छोड़ कैसे बने संन्यासी

 चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भगवान महावीर का जन्म हुआ था. यह दिन जैन धर्म में महावीर जयंती के रूप में मनाया जाता है. इस साल महावीर जयंती 10 अप्रैल दिन गुरुवार को मनाई जाएगी.

भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे. उन्होंने बहुत छोटी उम्र में ही राजसी जीवन छोड़कर संन्यास अपना लिया था. आइए महावीर जयंती के अवसर पर भगवान महावीर के जीवन के बारे में विस्तार से जानते हैं.

महावीर जयंती का महत्व

महावीर जयंती के दिन जैन धर्म के लोग पूजा, व्रत और सेवा करते हैं. मंदिरों में भगवान महावीर की मूर्ति का अभिषेक किया जाता है और उन्हें सजाया जाता है. इसके बाद रथ या पालकी यात्रा निकाली जाती है, जिसमें भक्त भजन-कीर्तन करते हैं.

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राजघराने में हुआ था महावीर का जन्म

भगवान महावीर का जन्म बिहार के वैशाली के पास कुंडग्राम स्थान पर हुआ था. उनके पिता का नाम राजा सिद्धार्थ था. जब महावीर जी का जन्म हुआ था, तब राजा के घर में सुख-समृद्धि बढ़ गई थी. इसी कारण बचपन में उनका नाम वर्धमान रखा गया था. राजघराने में जन्म होने की वजह से उनका बचपन बहुत सुख-सुविधाओं में बीता.

भगवान महावीर का संदेश - जियो और जीने दो

भगवान महावीर ने अपने जीवन के पहले 30 साल राजसी जीवन में बिताए. लेकिन इसके बाद उन्होंने सब कुछ त्याग कर 12 साल तक जंगलों में तपस्या की. इस लंबी साधना के बाद उन्हें कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ था. भगवान महावीर ज्ञान की तलाश में कई जगह भटके. लेकिन अंत में उन्हें इसकी प्राप्ति जम्बक में एक वृक्ष के नीचे प्राप्त हुई, जिसके उपयोग उन्होंने लोगों की भलाई व समाज कल्याण के लिए किया.

इसे ही मोक्ष कहा जाता है, यानी आत्मा की पूरी जागृति. भगवान महावीर ने लोगों को बताया कि हमें वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करना चाहिए, जैसा हम अपने लिए चाहते हैं. यही उनका प्रसिद्ध सिद्धांत है- जियो और जीने दो.उन्होंने लोगों को मुक्ति पाने का रास्ता बताया और इसके लिए पांच मूल सिद्धांत दिए हैं- सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, ईमानदारी और ब्रह्मचर्य. इन सिद्धांतों को अपनाने वाले को ही जिन कहा गया, और इसी से जैन शब्द बना है. इसका मतलब है जो अपनी इच्छाओं और इंद्रियों को जीत ले.

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