21 अप्रैल 2025 : प्रथा बदल नए कथाओं की शुरुवात हो गई पट्टी आँखों की ही नही उतरी पानी भी उतर गया,न्यायालयों की प्रतिष्ठा और न्यायमूर्तियों की विशिष्टता पर प्रश्न चिन्ह लग गए साख दांव पर हैं,ये लगा या लगाया गया ? न्यायपालिका की स्थिति ऐसी है की उसके नाक के नीचे हो रहे करप्शन ने जनता से उसका कनेक्शन ख़राब कर दिया,भारतीय जनमानस के न्याय की उम्मीदें एवं आस्था हमेशा न्यायालयों पे टीकी रही,पर वों अब डिग रही,ससम्मान मीमांसा का वक्त है भारतीय न्यायालयों में करीब 6 करोड़ मुकदमें लंबित हैं, जिनमे कुछ सालों से और कुछ दशकों से एक केस में यदि औसतन 6 लोग प्रभावित हो रहे है तो देश की 36 करोड़ जनता अदालतों के चक्कर सालों से लगा रहीं ,न्यायाधीशों के सामने ही नजराना न्यायालयों में दे रहे, नजराना ए भ्रष्टाचार ने मुवक्किल के विश्वास पर किल ठोक दी न्याय मिलने में देरी हो रही, न्यायालयीन अन्तर्विरोध ,अव्यवस्थाए,प्रतिस्पर्धा सीमाएं लांघ दुर्गुणों से ग्रसित होती दिख रही, पटना न्यायालय के पूर्व न्यायधीश ने पूर्व मुख्य न्यायधीश की शिकायत की है, CALT में न्याय बिक रहा, सीबीआई ने गिरफ्तारियां की हैं, हाईकोर्ट के न्यायधीश के आवास से करोड़ो रूपये मिले न्यायालय अब अपनी प्रतिष्ठा को रों रहें हैं , पर ये समाचार की सुर्खियां नही बन पा रही थी क्योंकी अर्जियां सबकी न्यायलयों में पड़ी हैं,इज्जत यदि मिल रही हो तो वों मिलती रहे ये किसकी जवाबदारी है? इज्ज्त पाने वालों को खुद अपने इज्जत की परवाह नही है सीमाएं अतिक्रमित हुई टकराव जब कार्यपालिका से आरंभ हुआ तो राजनैतिक शब्द बाणों का आक्रमण हुआ।
ये भी पढ़े :मुखिया के मुखारी – सुशासन का दावा सिर्फ दिखावा ही दिखावा है
सही वक्त और धैर्य की परीक्षा में अति आत्मविश्वास कैसे और कब तक टिकता ? तारीख पर तारीख देने वाले न्यायधीश राष्ट्रपति को समय सीमा में बांध रहे, प्रथम नागरिक की सर्वोच्चता को जो उन्हें शपथ दिलाता है उसे चुनौती दे रहे, यदि ये संवैधानिक है तो फिर ये बताएं की इस निर्णय के लिए संवैधानिक पीठ का गठन क्यों नही हुआ? रिटायर्ड जस्टिस राकेश कुमार ने शिकायत पूर्व मुख्य न्यायधीश की राष्ट्रपति से की उसके जाँच के आदेश हो गए,तीस्ता सीतलवाड़ को ध्वनि की तेजी से भी तेज जमानत सर्वोच्च न्यायलय ने दी उनकी जमानत गुजरात हाईकोर्ट नामंजूर कर चुकी थी, गिरफ्तारी की तलवार लटक रही थी वों सीधे सर्वोच्च न्यायलय पहुंची, न्यायालयों के ग्रीष्मकालीन अवकाश चल रहे थे शनिवार को एक ही दिन में दो बार बेंच गठित की गई पहले ने जमानत नही दी, दुसरे ने दी जमानत, जिसका कोई क़ानूनी आधार नही था, खास न्यायालयीन व्यवस्था खास मकसद से खास आरोपी के लिए बनाई गई ? छुट्टियों में अर्ध रात्रियों में न्यायालय क्या कभी किसी आम हिन्दुस्तानी के मामलों में सुनवाई के लिए खुली है ? आतंकियों से विशिष्ट आरोपी गणों को ये सुविधाएं बारम्बार मिलती हैं,CALT में बड़े कम्पनियों के मामले चलते हैं वहां व्याप्त भ्रष्टाचार अब सार्वजनिक हो चूका है, आग से बनी कालिख रुपयों वाली सिर्फ जस्टिस वर्मा की प्रतिष्ठा नही धूमिल कर रही सर्वोच्च न्यायलय भी अपने निर्णयों से लेकर कटघरे में है।
न्यायधीश के घर से करोड़ो की बरामदगी पर ना मुख्य न्यायधीश ने पुलिस को जाँच की अनुमति दी, ना FIR दर्ज करने की, सर्वोच्च न्यायालय ने खुद की जाँच समिति गठित कर दी क्यों विशिष्टता के गैर संवैधानिक उपयोग पर इलाहाबाद बार एसोसिएशन ने आपत्तियां दर्ज की देश के कई बार एसोसिएशनों ने जस्टिस वर्मा के कृत्यों पर अपराधिक कार्यवाही की मांग की है,जब सर्वोच्च न्यायालय के आचरण में अधिवक्ताओं को खोट दिख रही तो जनमानस को भी उसकी चोट लगी ,क्यों जस्टिस वर्मा पर कार्यवाही नही हुई ? छिपाने बचाने के कृत्यों ने क़ानूनी प्रावधानों के साथ नैतिकता की धज्जियां उड़ाई ,सम्पत्तियों का विवरण सबके लिए जरुरी बताने वाले न्यायधीश अपने सम्पत्तियों का विवरण नही देते ,ना RTI ,ना लोकपाल के दायरे में हैं ,सिफारिश से नौकरी किसी को मिलती है उसे भ्रष्टाचार माना जाता है ,पर खुद कॉलेजियम की सिफारिशो से नौकरी पा रहे, न्याय में भी परिवारवादी व्यवस्था बना रहे ,जो न्याय के रक्षक हैं क्या वों सही में न्याय कर रहे ? कागज यदि सदियों पुरानी चाहिए तो पुराने कुछ वर्षो के कागज मांगने में परेशानी क्या है ?मामला एक मापदंड दो ,जब एक पक्ष को हाईकोर्ट जाने निर्देशित किया तो दुसरे पक्ष की तत्काल सुनवाई कैसे ? संविधान की शपथ लेने वाले सांसद कानून को गैर संवैधानिक बता वकील की दोहरी भूमिका में हैं कैसे ? चपरासी दुसरे लाभ के पद में नही रह सकता तो सांसद वकील बन लाभ कमा रहे ,मिलार्ड उन्हें कुछ नही बोल रहे ,ना संवैधानिक प्रावधानों का ,ना नैतिकता का पालन हो रहा फिर तो उंगलियां उठेंगी, राजनीति होगी तो राजनीतिक बयान ही आयेंगे ,तन पे दाग हो और दूसरों के तन पर दाग देखेंगे तो तनातनी ही होगी, निज पर शासन फिर अनुशासन ,पर उपदेश कुशल बहुतेरे क्यों ? सच की जीत ही न्याय है तो फिर ---------------------न्याय के लिए नैतिकता विहीन तनातनी क्यों ?
चोखेलाल
आपसे आग्रह :
कृपया चोखेलाल की टिप्पणियों पर नियमित रूप से अपनी राय व सुझाव इस नंबर 6267411232 पर दें, ताकि इसे बेहतर बनाया जा सके।
मुखिया के मुखारी व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल की टिप्पणी
Comments