बलौदा बाजार-भाटापारा : जिले में रेत खनन को लेकर जनता का आक्रोश दिन-ब-दिन तेज होता जा रहा है। जिले के विभिन्न क्षेत्रों में अवैध रेत परिवहन और खनन के मामलों में निरंतर वृद्धि देखी जा रही है। आलम यह है कि जिले की अधिकांश सड़कें दिन और रात भर बिना रोक-टोक ओवरलोड और बिना रॉयल्टी की रेत से भरी गाड़ियों से भरी रहती हैं।
कहां है प्रशासन की आंख?
माइनिंग विभाग और स्थानीय प्रशासन द्वारा समय-समय पर कार्यवाही के दावे तो किए जाते हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे इतर है। जनता यह सवाल पूछने लगी है कि यदि सच में कार्यवाही हो रही होती, तो अवैध रेत परिवहन का यह सिलसिला आखिर क्यों नहीं थम रहा?
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कई स्थानीय नागरिकों ने बताया कि माइनिंग माफिया इतने बेखौफ हो चुके हैं कि उन्हें अब कानून का कोई डर नहीं रहा। कई बार शिकायतों के बाद भी संबंधित विभाग चुप्पी साध लेता है या केवल कागजी कार्यवाही कर खानापूर्ति करता है।
बाहरी राज्यों से आए लोग कर रहे संचालन
स्थानीय सूत्रों का कहना है कि अवैध रेत खनन में लगे अधिकांश श्रमिक और वाहन चालक बाहरी राज्यों से हैं, जिनकी सही तरीके से न तो पहचान हो पाई है और न ही पुलिस द्वारा कोई ठोस जांच की गई है। इस तरह से बाहरी लोगों द्वारा जिले के खनिज संसाधनों की खुलेआम लूट प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर रही है।
जनता की मांग – अब बंद हो लूट का यह कारोबार
अब जनता ने इस अव्यवस्था के खिलाफ आवाज़ बुलंद कर दी है। कई ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि उन्हें केवल दिखावे की कार्रवाई नहीं चाहिए, बल्कि इस अवैध कारोबार को पूरी तरह बंद करने के लिए ठोस और सतत रणनीति की आवश्यकता है।
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“हम अब आश्वासन नहीं, प्रमाण चाहते हैं” – जनता
जनता ने दो टूक शब्दों में कहा है कि उन्हें अब अधिकारियों से केवल वादे नहीं चाहिए। वह प्रमाण देखना चाहती है कि अवैध रेत खनन की लूट बंद हुई है। यह जिला प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है, लेकिन प्रशासनिक ढिलाई और भ्रष्टाचार के कारण इन खनिजों की लूट का अड्डा बनता जा रहा है।
क्या कहता है प्रशासन?
माइनिंग विभाग के अधिकारी अपनी ओर से कार्रवाई जारी होने की बात कहते हैं। उनका दावा है कि समय-समय पर जांच की जाती है और जुर्माना भी लगाया जाता है। हालांकि, यह कार्रवाई जनता को नाकाफी और सतही प्रतीत हो रही है।
निष्कर्ष:
बलौदा बाजार-भाटापारा जिले में अवैध रेत खनन अब एक गंभीर सामाजिक और पर्यावरणीय संकट बन चुका है। जनता अब शांत बैठने के मूड में नहीं है। प्रशासन और शासन को मिलकर इसे रोकने की दिशा में ईमानदार और प्रभावी कदम उठाने होंगे। वरना यह जनाक्रोश आने वाले समय में और उग्र रूप ले सकता है।
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