गड़बड़ी या पूरा भ्रष्टाचार ? सिस्टम ने ही फेल कर दिया सिटी बस योजना

गड़बड़ी या पूरा भ्रष्टाचार ? सिस्टम ने ही फेल कर दिया सिटी बस योजना

 रायपुर : राजधानी में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के नाम पर सिर्फ वादे हैं, जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है. ऑटो, टैक्सी, रिक्शा और रैपिडो जैसे निजी साधन आम जनता की जरूरत ही नहीं, मजबूरी बन चुके हैं.स्टेशन हो, एयरपोर्ट या शहर की गलियां… हर ओर निजी वाहनों का दबदबा है. और जो पब्लिक ट्रांसपोर्ट मौजूद है, वह ऊंट के मुंह में जीरे जैसा साबित हो रहा है.

राजधानी रायपुर में सिटी बस योजना की शुरुआत भले उम्मीदों से भरी रही हो, लेकिन आज यह योजना भ्रष्टाचार, अव्यवस्था और प्रशासनिक लापरवाही की भेंट चढ़ चुकी है.जहां पहले 378 सिटी बसें थीं, आज महज 103 ही सड़कों पर चल रही हैं. सवाल यह उठता है कि बाकी 275 बसें आखिर कहां गायब हो गईं?

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पिछले एक दशक में सिटी बस योजना के नाम पर सैकड़ों करोड़ खर्च हुए, लेकिन नतीजा शून्य निकला. आधिकारिक दस्तावेजों से पता चलता है कि 60% से ज़्यादा बसें या तो कंडम हो चुकी हैं या संचालन से बाहर हैं. वहीं, प्रशासन उन्हें नीलाम करने की तैयारी में है, वह भी बिना किसी जांच के.

इस बीच, नगरीय प्रशासन मंत्री अरुण साव नई उम्मीद के साथ नई शुरुवात की बात कही है . 'प्रधानमंत्री ई-बस योजना के तहत छत्तीसगढ़ को 240 बसें मिली हैं. नई सवेरा के साथ पब्लिक ट्रांसपोर्ट में नई शुरुआत होगी.'

  1. 2010-रायपुर नगर निगम ने RCBL कंपनी के जरिए 30 बसों का संचालन शुरू किया
  2. 2012- भारत सरकार की JNNURM योजना के तहत 100 बसें (65 बड़ी, 35 छोटी) स्वीकृत हुईं. सात साल के टेंडर के बाद 98 बसें अब भी मंत्रालय और संचालनालय कर्मचारियों के लिए उपयोग हो रही हैं, भले ही उनकी उम्र खत्म हो चुकी हो.
  3. 2014- निगम ने 67 बसें शुरू कीं, जिनमें से अब केवल 40 संचालित हैं.

प्रधानमंत्री ई-बस योजना के तहत छत्तीसगढ़ को 240 बसें आवंटित हुई हैं, जिनमें 100 रायपुर के लिए हैं. रायपुर नगर निगम के अनुसार….

  1. सिविल निर्माण का खर्च केंद्र और राज्य 60:40 के अनुपात में वहन करेंगे.
  2. बिजली व्यवस्था के लिए 12.27 करोड़ रुपये का खर्च केंद्र सरकार देगी.
  3. बसों की खरीद केंद्र द्वारा होगी.
  4. रायपुर के जरवाय टाटी बंद में डिपो निर्माण चल रहा है.
  5. संचालन की जिम्मेदारी चार्टर्ड स्पीड लिमिटेड कंपनी को सौंपी गई है.

सवाल: क्या यह योजना पुरानी कमियों से उबर पाएगी?

  1. स्थानीय निवासी राम रतन साहू कहते हैं कि 'सिटी बस नहीं होने से निजी वाहन चालक मनमानी करते हैं. रेलवे स्टेशन से बस स्टैंड का 200-300 रुपये और नवा रायपुर का 2000-3000 रुपये किराया वसूला जाता है. इतने में तो दिल्ली की ट्रेन यात्रा हो जाए!'
  2. गजेंद्र कुलमित्र बताते हैं, 'सिटी बसों की कमी से सड़कों पर हजारों ऑटो और ई-रिक्शा चल रहे हैं. ये ट्रैफिक जाम और नियमों के उल्लंघन का बड़ा कारण हैं. सिटी बसें होतीं तो यह समस्या कम होती.'
  3. पूनम त्रिपाठी शिकायत करती हैं कि 'सिटी बसें ईद के चांद जैसी हैं. इंतजार में घंटों लग जाते हैं. कम बसों के कारण भीड़ इतनी होती है कि लोग भेड़-बकरियों की तरह ठूंसे जाते हैं.'

1. निजी ट्रांसपोर्टरों का दबदबा

रूट निर्धारण में निगम और निजी ट्रांसपोर्टरों के बीच टकराव आम है. निगम अक्सर झुक जाता है. उदाहरण के लिए, दुर्ग से एयरपोर्ट तक 8 एसी बसें निजी ट्रांसपोर्टरों के विरोध के कारण संचालित बसों को बंद कर दी गईं.

2. स्वशासी बोर्ड का अभाव

राज्य में स्टेट ट्रांसपोर्ट जैसा स्वशासी बोर्ड नहीं है. नीतिगत निर्णयों में देरी और फाइलों का अटकना आम बात है.

3. निगम की सीमित क्षमता

सिटी बस संचालन के लिए एक समर्पित टीम चाहिए, लेकिन निगम में यह काम एक शाखा द्वारा होता है, जिसके पास नीतिगत फैसले लेने का अधिकार नहीं.

4. रखरखाव में लापरवाही

कोरोना काल में दो साल तक बसें डंप रहीं, जिससे मशीनें खराब हो गईं. लेकिन सवाल यह है—लॉकडाउन पूरे दो साल तो नहीं था, फिर मेंटेनेंस क्यों नहीं हुआ?

  1. रायपुर नगर निगम अपर आयुक्त यू.एस. अग्रवाल ने कहा कि '28 बसें चलने लायक नहीं हैं. कोरोना काल में डंप रहने से मशीनें खराब हो गईं. इन्हें नीलाम करने की प्रक्रिया चल रही है.'
  2. रायपुर नगर निगम महापौर मीनल चौबे ने कहा कि 'सिटी बस का संचालन केवल कागजों में है. सड़कों पर बसें दिखती नहीं. अब कार्रवाई होगी.'
  3. अरुण साहू, उपमुख्यमंत्री एवं नगरीय प्रशासन मंत्री ने कहा कि 'पिछली सरकार में मेंटेनेंस नहीं हुआ, जिससे बसें कंडम हो गईं. अब सुनियोजित व्यवस्था बनाई जा रही है. गड़बड़ी हुई है गड़बड़ी करने वालों पर कार्रवाई होगी जांच होगी'

- करोड़ों की AC बसें डिपो में कंडम क्यों हो रही हैं?

- मेंटेनेंस की कमी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर जांच क्यों नहीं?

- क्या नीलामी की प्रक्रिया में भ्रष्टाचार की आशंका नहीं?

प्रधानमंत्री ई-बस योजना नई उम्मीद लेकर आई है, लेकिन इसके सफल संचालन के लिए जरूरी है:

- पारदर्शी और जवाबदेह व्यवस्था.

- स्वशासी परिवहन बोर्ड की स्थापना.

- पुरानी बसों के रखरखाव और नीलामी प्रक्रिया की जांच.

- निजी ट्रांसपोर्टरों के दबाव से निपटने की रणनीति.

छत्तीसगढ़ की जनता सस्ती और सुगम सिटी बस सेवा की हकदार है. सवाल यह है कि क्या सरकार इस बार वादों को हकीकत में बदल पाएगी, या यह भी एक और अधूरी योजना बनकर रह जाएगी?

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