मुखिया के मुखारी – कर्महिनों को कर्मठता नही भाति

मुखिया के मुखारी – कर्महिनों को कर्मठता नही भाति

18 मई 2025: बइठे -  बइठे भरे तरिया के पानी नई पूरय,कर्म प्रधानता को रेखांकित करती यह छत्तीसगढ़ी सूक्ति है जो वर्तमान राजनितिक परिस्थिति में अक्षर सह सत्य है, देश युद्ध की परिस्थिति से दो चार है,नेता उन परिस्थितियों में भी अपनी बोलियों से लाचार हैं,पाकिस्तान के उद्भव में बटवारे की त्रासदी थी,दीर्घकालीन पनपते अलगाव ने धार्मिक वैमनस्यता को दो राष्ट्रों के सिद्धांत में परिवर्तित किया ,रक्त रंजित बटवारे का इतिहास हमे अहिंसक स्वतंत्रता बताया गया,शुतुर्मुर्गीय रवैये ने कभी बीमारी की जड़ तक पहुंचना ही नही चाहा ,आज भी परिस्थिति वही है ,धर्म के नाम पर आतंक जिसे जिहाद का आवरण ओढ़ा विश्व व्यापी बनाया गया ,पहलगाम में धर्म पूछकर हिंदूओं का वीभत्स नरसंहार किया गया, धर्म के आधार पर ही तुर्किए और अजरबैजान ने पाकिस्तान को समर्थन दिया,ना उन्हें मानवता की परवाह हुई, ना न्याय की, यदि धर्म अन्याय को प्रश्रय दे तो युद्ध अवश्यंभावी हो जाता है।सरकार का दायित्व है की वो अपने नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करें युद्ध की परिस्थिति पाकिस्तान का आतंकी मोह ,अदूरदर्शिता और धर्मांधता है, 23 मिनट में पाकिस्तान के जिहाद का भुत उतर गया वों मिमयाने लगा सीजफायर के लिए द्वारे -द्वारे गिड़गिड़ाया।

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भारत सरकार ने कूटनीति और सैन्य पराक्रम के साथ पाकिस्तानी आतंकी हसरतों को छिन्न -भिन्न किया, अपनी वैश्विक धमक बनाई कल तक रक्षा उत्पादों का आयात करने वाला भारत अपने स्वनिर्मित रक्षा उत्पादों से पाकिस्तान के सैन्य और आतंकी ठिकानों को सटीक और मिनटों में तबाह करने की ,सैन्य क्षमता का लोहा मानने विश्व को विवश किया । प्रति आक्रमण पाकिस्तान का सिफर रहा, आत्मरक्षा भारत की अतुलनीय रही ,पर इस अतुलनीय शौर्य गाथा की सराहना की जगह अपनों से ही उलाहना मिल रही है, जिस शौर्य को विश्व मान रहा उसे विपक्ष नही मान रहा, यह शौर्य कर्मठता का प्रमाण है जिसमें सेना का शौर्य ,सरकार की दूरदर्शिता ,धैर्य और नेतृत्व शामिल है। जिन्हें कर्म पर विश्वास था उन्होंने पूरी निष्ठा से उसे निभाया, जिनके कर्म में कमी थी उन्हें अपने पर विश्वास नही था ,तो सरकार पर विश्वास कैसे करेंगे ? 1948 ,1965,1971 के युद्धों के परिणाम हमारे पक्ष में रहे ,फिर भी हमने अपना भू -भाग गंवाया, POK ,अक्साई चीन भारत के हाथो से निकल गया, 1962 की जंग हम चीन से हारे यह हमारी नीतियों की हार थी, हिंदी चीनी भाई -भाई का नारा हास्यास्पद था।

सरकार की नीति ने युद्ध नीति को प्रभावित किया कुटनीतिक अदूरदर्शिता ने चीन को संयुक्त राष्ट्र की स्थाई सदस्यता दिलवा दी,सरकार के सारे निर्णय सही नही हो सकते ,नेतृत्व कभी असफल भी होता है, पर क्या सिर्फ उन असफलताओं से ही व्यक्तित्व का मूल्याकंन होगा? देश के विकसित होने में हर कर्मशील व्यक्तित्व का योगदान है,गलतियों को अपराध नही कहा जा सकता, पर उन गलतियों  को दोहराने की मनाही है ,स्वतंत्रता के बाद बने भू -भागो से ही हमारा संघर्ष है ,कल के अपने आज के सबसे बड़े दुश्मन हैं । इस दुश्मनी का आधार सिर्फ धर्म है, कश्मीर मुद्दा सिर्फ धर्म की वजह से है, पाकिस्तान भारत का ही हिस्सा था, साझी संस्कृति के वो भी वाहक थे, पर साथ ना रह पायें ,वो पहले हिन्दुस्तानी थे जो पाकिस्तानी हो गए, उसके पहले वो हिंदू थे ,जो मुस्लिम हो गए, उसके पहले वो सहिष्णु थे,  जो कट्टर हो गए, आतंक जिहाद की परिधि में बंध उन्होंने भारत को अपना स्थाई दुश्मन मान लिया ,धर्म के अतिरेक में उन्होंने ना सिर्फ अपना इतिहास भुलाया बल्कि अपनी पहचान भी गवां दी।

पहचान के संकट से सारे संकटो ने जन्म लिया, पाकिस्तान बनाने वाले जिन्ना इस्लाम का राज कायम ही नही कर सकते थे, क्योकि वो खुद शराब और फोर्क के शौक़ीन थे ,शौक बड़ा धर्म दिखावा ,राजनितिक महत्वाकांक्षा की जिद्द में जिन्ना ने देश का बटवारा करवाया ,जिन्ना जैसी अतृप्त राजनीतिक अभिलाषाओं की जिद्द पाली मानसिकता वाले नेता आज भी देश में उसी विघ्न संतोष के साथ विचरित हो रहे ,जिनके पास ना विचार है ना कर्म, बस शौक है और उस शौक के लिए वो खुद शोक मना रहे, क्योकि वो पुरे नही हो रहे ,बिना पुरुषार्थ के पुरुष कर्महीन ही होता है ,कर्महीन को दुसरों के कर्मो में कमी दिखती है, कुंठित कभी श्रेष्ठता स्वीकार नही करता ,जड़ से कट के पेड़ जीवित नही रह सकता जों समझ रहे जड़ की ओर ओवैसी जैसे लौट रहे। कुछ अभी भी जड़ से कट रहे, जनभावनाओं से परे कोई जन नेता नही बन सकता, बिना शत्रुबोध के राष्ट्र सुरक्षित नही रहता ,कर्म ने जिन्हें देश की सत्ता सौपी वही फैसला करेंगे ,चव्वनी खाली हल्ला करेंगे क्योंकि ------------------------------------कर्महिनों को कर्मठता नही भाति

चोखेलाल

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मुखिया के मुखारी व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल की टिप्पणी

 






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