दिव्यांग संगठनों की अनदेखी ने प्रशासन की संवेदनशीलता पर उठाए सवाल

दिव्यांग संगठनों की अनदेखी ने प्रशासन की संवेदनशीलता पर उठाए सवाल

जांजगीर-चांपा :  जिले में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र दिव्यांग मतदाताओं के लिए सुगम एवं समावेशी मतदान सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कलेक्टोरेट सभाकक्ष में जिला स्तरीय निगरानी समिति की बैठक आयोजित की गई। बैठक की अध्यक्षता कलेक्टर एवं जिला निर्वाचन अधिकारी जन्मेजय महोबे ने की। प्रशासन ने बैठक में दिव्यांग मतदाताओं के लिए सुलभ मतदान केंद्र, व्हीलचेयर, रैम्प, रेलिंग जैसी सुविधाओं की रूपरेखा तैयार करने का दावा किया।

लेकिन इस बैठक को लेकर प्रशासन कटघरे में है। जिले में कार्यरत प्रदेश स्तरीय दिव्यांग संगठनों के प्रतिनिधियों को इस महत्वपूर्ण बैठक से पूरी तरह दूर रखा गया, जो न केवल दिव्यांग मतदाताओं की वास्तविक समस्याओं से परिचित हैं, बल्कि वर्षों से उनके अधिकारों की लड़ाई लड़ते आए हैं।

ये भी पढ़े : मुखिया के मुखारी – कर्महिनों को कर्मठता नही भाति

समाजसेवियों और दिव्यांग संगठनों में इस बात को लेकर गहरा असंतोष है। उनका कहना है कि "जब समावेशिता की बात हो रही है, तो उसमें सबसे पहले और सबसे अधिक जरूरी है – वास्तविक हितधारकों की भागीदारी। अगर निर्णय लेने की प्रक्रिया में उन्हें शामिल नहीं किया जाएगा, तो यह पूरी कवायद सिर्फ एक औपचारिकता बनकर रह जाएगी।"

दिखावटी समावेशन बनाम वास्तविक सहभागिता
बैठक में उप जिला निर्वाचन अधिकारी शशि कुमार चौधरी ने जानकारी दी कि जिले में कुल 7605 दिव्यांग मतदाता पंजीकृत हैं और पोलिंग बूथ स्तर पर उनकी मैपिंग का कार्य किया जा रहा है। समाज कल्याण विभाग एवं निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि जिन दिव्यांग नागरिकों का नाम मतदाता सूची में नहीं है, उनका पंजीकरण सुनिश्चित किया जाए।

स्वीप नोडल अधिकारी बी.के. पटेल, डिस्ट्रीक्ट आइकन अनुराधा राठौर समेत अन्य विभागीय अधिकारी बैठक में उपस्थित थे। लेकिन यह सवाल अब भी अनुत्तरित है कि क्या एक “समावेशी” प्रक्रिया, बिना दिव्यांग समुदाय की आवाज़ों को सुने पूरी हो सकती है?

प्रशासनिक संवेदनशीलता पर प्रश्नचिन्ह

कई वरिष्ठ समाजसेवियों और दिव्यांग अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस बैठक को एकतरफा करार देते हुए कहा है कि यदि प्रशासन वास्तव में बदलाव चाहता है, तो उसे दिव्यांग प्रतिनिधियों की बात सुननी ही होगी। अन्यथा यह पूरा आयोजन सिर्फ एक “फोटो-ऑप” बनकर रह जाएगा।

अब यह देखना होगा कि जिला प्रशासन इस चूक को स्वीकार कर आगे की बैठकों में सुधार की दिशा में कदम उठाता है या नहीं। लेकिन इतना तय है कि समावेशन की बुनियाद पर असल भागीदारी नहीं, तो नतीजे भी अधूरे रहेंगे।

ये भी पढ़े : ट्रांसमिशन कर्मियों को अब 15 लाख तक का बीमा सुरक्षा कवच







You can share this post!


Click the button below to join us / हमसे जुड़ने के लिए नीचें दिए लिंक को क्लीक करे


Related News



Comments

  • No Comments...

Leave Comments