भारत में ताजमहल के बाद भी कई ऐसे अजूबे मौजूद हैं जो अपने आप में बेहद अनोखे और अद्भुत हैं। ये अजूबे किसी इमारत की शक्ल में नहीं होते, बल्कि किसी अनोखे विचार या समाज की रूपरेखा के रूप में मौजूद हैं।
ऐसा ही एक अद्भुत और अनूठा शहर है, जो न तो सरकारी व्यवस्था के अधीन है, न ही वहाँ पैसा चलता है और न ही कोई धार्मिक बंदिशें लागू होती हैं। यह शहर है तमिलनाडु के विल्लुप्पुरम जिले में स्थित ऑरोविले - जिसे "भोर का शहर" भी कहा जाता है।
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ऑरोविले: एक अनूठा प्रयोग
ऑरोविले की स्थापना 1968 में मीरा अल्फाजों ने की थी। यह शहर चेन्नई से लगभग 150 किलोमीटर दूर स्थित है। इस शहर को बसाने का मुख्य उद्देश्य था कि यहाँ रहने वाले लोग जात-पात, ऊँच-नीच और किसी भी तरह के भेदभाव से दूर रहें। यहाँ कोई भी व्यक्ति आकर रह सकता है, बशर्ते वह यहाँ एक सेवक की भूमिका निभाए।
ऑरोविले किसी सामान्य शहर की तरह नहीं है, बल्कि यह एक प्रयोगिक टाउनशिप है जहाँ पैसा, राजनीति, धर्म जैसी पारंपरिक व्यवस्थाएं मौजूद नहीं हैं। इसका लक्ष्य पूरी मानवता के बीच समानता, भाईचारे और शांति का संदेश फैलाना है। इसे "यूनिवर्सल सिटी" के नाम से भी जाना जाता है।
मीरा अल्फाजों और उनका जीवन
मीरा अल्फाजों, जिन्होंने इस शहर की स्थापना की, का जीवन भी उतना ही प्रेरणादायक है जितना कि ऑरोविले का सपना। वे 29 मार्च 1914 को पुदुच्चेरी आई थीं और श्री अरविंदो स्प्रिचुअल रिट्रीट से जुड़ी थीं। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद वे जापान भी गईं, लेकिन 1920 में भारत वापस लौटकर 1924 में श्री अरविंदो स्प्रिचुअल संस्थान से जुड़ गईं।
उन्होंने अपने जीवन को जनसेवा के लिए समर्पित कर दिया और देश में उन्हें 'मां' के नाम से सम्मानित किया गया। मीरा अल्फाजों का उद्देश्य था एक ऐसा समाज बनाना जहाँ जाति, धर्म, राष्ट्रीयता जैसी बंदिशें न हों और हर कोई शांति और सद्भावना के साथ रह सके।
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ऑरोविले की खासियतें
धर्म रहित जीवन:
ऑरोविले में कोई भी धर्म या जाति का भेदभाव नहीं है। यहाँ कोई मंदिर तो है लेकिन उसमें किसी देवी-देवता की मूर्ति नहीं है। इस मंदिर का उपयोग पूजा-पाठ के लिए नहीं बल्कि योग और ध्यान के लिए किया जाता है।
राजनीति और पैसा नहीं:
इस शहर में कोई राजनीतिक व्यवस्था नहीं है। न ही यहाँ रुपये-पैसे का कोई लेन-देन होता है। हर कोई अपनी जरूरतें स्वयं पूरी करता है और समाज में सहयोग की भावना होती है।
समानता और भाईचारा:
यहाँ सभी लोग समान माने जाते हैं। कोई जाति, धर्म, लिंग या राष्ट्रीयता के आधार पर भेदभाव नहीं करता। सभी एक-दूसरे के साथ मिलकर रहते हैं।
अंतरराष्ट्रीय आबादी:
आज ऑरोविले में लगभग 50 देशों के लोग रहते हैं। यहाँ करीब 24,000 की आबादी है जो इस छोटे से शहर को एक वैश्विक समुदाय बनाती है।
प्राकृतिक और हरियाली से भरपूर:
ऑरोविले प्राकृतिक सौंदर्य और हरियाली से भरपूर है। यहाँ का वातावरण शांति और सुकून देता है, जो हर आने वाले व्यक्ति को मंत्रमुग्ध कर देता है।
ऑरोविले: एक प्रेरणा
ऑरोविले सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि एक आदर्श है - एक ऐसा आदर्श जहाँ इंसानियत, शांति, भाईचारा और समानता की जड़ों को मजबूती मिलती है। यह शहर आज की भागदौड़ भरी दुनिया में एक संदेश देता है कि हम अपने भेदभावों और मतभेदों को छोड़कर कैसे साथ मिलकर रह सकते हैं।
यहाँ की जीवनशैली हमें सिखाती है कि धन-दौलत, राजनीतिक सत्ता और धार्मिक कट्टरता के बिना भी एक खूबसूरत समाज बनाया जा सकता है, जहाँ हर व्यक्ति अपने-अपने तरीके से खुश और स्वतंत्र महसूस करता हो।
निष्कर्ष
ऑरोविले एक मिसाल है कि एक छोटे से विचार को साकार रूप में कैसे बदला जा सकता है। यह शहर हमें यह भी सिखाता है कि अगर इंसान अपने दिल में सद्भावना, सेवा और प्रेम को जगह दे, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।
इस अनोखे शहर की कहानी भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा है। यह साबित करता है कि सही सोच, सही दिशा और सामूहिक प्रयास से हम अपने समाज को एक बेहतर और खुशहाल जगह बना सकते हैं।
इसलिए, अगर आप भारत की उन अनगिनत विरासतों और अजूबों को जानना चाहते हैं, तो ऑरोविले की कहानी को जरूर पढ़ें और समझें कि असली अजूबा केवल पत्थरों और इमारतों में नहीं, बल्कि इंसान के सोचने और जीने के तरीके में भी हो सकता है।
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भारत में ताजमहल के बाद भी कई ऐसे अजूबे मौजूद हैं जो अपने आप में बेहद अनोखे और अद्भुत हैं। ये अजूबे किसी इमारत की शक्ल में नहीं होते, बल्कि किसी अनोखे विचार या समाज की रूपरेखा के रूप में मौजूद हैं। ऐसा ही एक अद्भुत और अनूठा शहर है, जो न तो सरकारी व्यवस्था के अधीन है, न ही वहाँ पैसा चलता है और न ही कोई धार्मिक बंदिशें लागू होती हैं। यह शहर है तमिलनाडु के विल्लुप्पुरम जिले में स्थित ऑरोविले - जिसे "भोर का शहर" भी कहा जाता है।
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