परमेश्वर राजपूत, गरियाबंद / छुरा : बता दें कि 23 जनवरी 2011 को छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में छुरा नगर में 32 वर्षीय पत्रकार उमेश राजपूत की उनके घर पर पांच लोगों की उपस्थिति में गोलीमार कर हत्या कर दी गई थी। घटना के बाद लगभग चार वर्षों तक स्थानीय पुलिस ने घटना की जांच की किंतु अपराधियों की पकड़ में नहीं आने के चलते परिजनों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सीबीआई जांच की मांग की थी और हाईकोर्ट के आदेश के बाद इस मामले की जांच सीबीआई के द्वारा शुरू की गई और मामला अभी तक सीबीआई न्यायालय में लंबित है। परिजनों की मानें तो इस मामले में जांच एजेंसियों के द्वारा कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर जांच नहीं किया गया , अगर उन बिंदुओं पर सही जांच हो तो अपराधी जल्द ही पकड़े जाते। साथ ही कुछ महत्त्वपूर्ण साक्ष्य स्थानीय पुलिस थाने से सीबीआई जांच के दौरान ग़ायब भी मिले हैं जिन पर अभी तक ठोस कार्यवाही नहीं हो पाया है।
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साथ ही परिजनों का आरोप है कि इस हत्याकांड में सही और त्वरित जांच होगी तो कुछ राजनेता और विभागीय अधिकारी कर्मचारियों के नाम भी इसमें सामने आ सकते हैं। सवाल यह उठता है कि क्या इसमें राजनेता और प्रशासनिक अधिकारियों के नाम सामने आने के चलते इस घटना की जांच आज पंद्रह साल बाद भी पुरी नहीं हो पाई? या उमेश राजपूत के हत्यारों को धरती निकल गई या आसमान? अब तक इस घटना में लगभग 100 से भी अधिक लोगों का बयान दर्ज किया जा चुका है वहीं सीबीआई द्वारा लगभग एक हजार से भी ज्यादा पन्नों का चार्ज सीट पेश किया जा चुका है। साथ ही घटना के समय थाना छुरा में पदस्थ थानेदार भी न्यायिक रिमांड पर जेल भेजे गए थे और जमानत पर जेल से बाहर आ चुके हैं एवं सीबीआई के एक डीएसपी भी सस्पेंड किए जा चुके हैं तो एक तरफ याचिकाकर्ता को गोलीमार हत्या करने की धमकी भी दी जा चुकी है वहीं कई गवाहों की मृत्यु भी हो चुकी है।
रिहाइशी इलाके में थाने से कुछ ही फलांग की दुरी पर घर में पांच लोगों की उपस्थिति में दिन दहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी जाती है और पंद्रह साल बीत जाने के बाद भी एक भी अपराधियों को सजा दिला पाने में जांच एजेंसियां अब तक असफल नजर आती है तो ऐसे में जांच एजेंसियों, न्याय पालिका और व्यवस्था तंत्र , पर परिजनों का सवाल खड़ा करना भी लाजिमी है। बहरहाल अब आने वाले दिनों में पता चल पाएगा कि पत्रकार उमेश राजपूत को न्याय मिल पायेगा कि नहीं?
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