अपने ही देश के कानूनी पेंच में उलझ गया ट्रंप का टैरिफ वॉर

अपने ही देश के कानूनी पेंच में उलझ गया ट्रंप का टैरिफ वॉर

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने करीब पांच दर्जन देशों पर 2 अप्रैल को जो रेसिप्रोकल टैरिफ (Trump Tariff War) लगाया था, उसे वहां के कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड ने गैरकानूनी ठहरा दिया है। ट्रंप ने अपने इस आदेश के तहत भारत पर 26% टैरिफ लगाया था। आइए जानते हैं क्या है वह कानून जिसके तहत कोर्ट ने ट्रंप के आदेश को गलत बताया है।

रेसिप्रोकल टैरिफ की घोषणा करते हुए ट्रंप ने उस दिन को ‘लिबरेशन डे’ यानी मुक्ति दिवस बताया था। लेकिन अमेरिकी उद्योगपतियों के विरोध और वहां शेयर बाजारों में बड़ी गिरावट के बाद ट्रंप ने रेसिप्रोकल टैरिफ पर अमल को दो महीने के लिए टाल दिया था। हालांकि सभी देशों के आयात पर 10% शुल्क लगा दिया। रेसिप्रोकल टैरिफ 57 देशों पर लगाया गया और यह हर देश के खिलाफ अलग था।

क्या है इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर्स एक्ट

ट्रंप ने एक विशेष कानून के तहत विभिन्न देशों पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने की घोषणा की थी। वह कानून है इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर्स एक्ट (IEEPA)। यह कानून 1977 में लागू हुआ था। इसमें राष्ट्रपति को राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति में अंतरराष्ट्रीय व्यापार को रेगुलेट करने का अधिकार दिया गया है। अगर अमेरिका के लिए असाधारण खतरा उत्पन्न होने पर राष्ट्रपति इस अधिकार का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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इस कानून का पहली बार इस्तेमाल 1979 में किया गया था, जब ईरान में अमेरिकी दूतावास के कर्मचारियों को बंधक बना लिया गया। अमेरिका की कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस की जनवरी 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप के दूसरे कार्यकाल से पहले, 15 जनवरी 2024 तक विभिन्न राष्ट्रपतियों ने 69 बार इस एक्ट का इस्तेमाल किया।

कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड ने ट्रंप के कदम को अवैध क्यों बताया

द्विपक्षीय व्यापार में अमेरिका अनेक देशों के साथ व्यापार घाटे में है। अमेरिका के ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक एनालिसिस (BEA) के अनुसार, उसका सबसे अधिक घाटा चीन के साथ 295.4 अरब डॉलर का है। यूरोपियन यूनियन के साथ घाटा 235.6 अरब डॉलर और मेक्सिको के साथ 171.8 अरब डॉलर का है।

 

ट्रंप ने व्यापार घाटे को ‘राष्ट्रीय आपात स्थिति’ बताते हुए अपने अधिकारों का इस्तेमाल किया और रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी। लेकिन कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड के अनुसार व्यापार घाटा ऐसा ‘असाधारण खतरा’ नहीं (US Legal Dispute) जिसके लिए आपात अधिकारों का प्रयोग किया जाए।

ट्रंप की व्यापार नीति में टैरिफ सबसे बड़ा टूल रहा है। टैरिफ को वे डिक्शनरी का सबसे ‘खूबसूरत शब्द’ बता चुके हैं। लेकिन इस पर कोर्ट ने रोक लगा दी है। हालांकि ट्रंप प्रशासन ने कहा है कि वह इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगा। इससे थोड़ी अनिश्चितता अभी बरकरार है। ट्रंप ने सेक्शन 232 के तहत स्टील और ऑटोमोबाइल आयात पर जो शुल्क लगाए थे, वह भी बने रहेंगे।

 

टैरिफ के कारण विभिन्न देश कर रहे हैं ट्रेड वार्ता

रेसिप्रोकल टैरिफ दो महीने के लिए स्थगित करने के साथ ट्रंप ने कहा था कि इस दौरान विभिन्न देश अमेरिका के साथ समझौता कर सकते हैं। टैरिफ से बचने के लिए उन्हें अपने यहां अमेरिकी वस्तुओं का आयात बढ़ाना होगा और उन पर आयात शुल्क भी कम करना पड़ेगा।


इसी दबाव में इंग्लैंड ने 8 मई को अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौता किया। इस समझौते के तहत उसने करीब 2,500 प्रोडक्ट पर आयात शुल्क में कटौती की, इथेनॉल पर ड्यूटी खत्म कर दी और बोइंग विमान खरीदने पर सहमति जताई। बदले में अमेरिका ने इंग्लैंड से आयात होने वाले 50 से भी कम वस्तुओं पर ड्यूटी में कटौती की। इनमें ज्यादातर को 10% बेसलाइन टैरिफ के बराबर कर दिया, शून्य नहीं किया।

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अब भारत के लिए क्या हैं विकल्प

भारत भी अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौता (BTA) के लिए बात कर रहा है। पिछले हफ्ते वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल तथा वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारी बातचीत के लिए वाशिंगटन गए थे। अगले महीने अमेरिकी अधिकारियों की भी टीम आने वाली है।

थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (GTRI) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, “भारत ऑटोमोबाइल और कृषि समेत हजारों वस्तुओं पर टैरिफ घटाने पर विचार कर रहा है। इसके अलावा सरकारी खरीद में अमेरिकी कंपनियों को अनुमति देने तथा अमेरिकी टेक्नोलॉजी और दवा कंपनियों के लिए पेटेंट और डेटा कानून में ढील देने पर विचार किया जा रहा है। लेकिन इस तरह की डील संतुलित नहीं है।”

श्रीवास्तव ने कहा कि भारत को गैरकानूनी दबाव में किसी भी समझौते (India Trade Benefit) का विरोध करना चाहिए। ट्रंप टैरिफ न सिर्फ डब्ल्यूटीओ नियमों के खिलाफ हैं, बल्कि अमेरिकी कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि ये अमेरिकी कानून के मुताबिक भी नहीं हैं। भारत को पुनर्विचार करना चाहिए ताकि मुक्त व्यापार समझौता अमेरिका के पक्ष में न हो।

 

 






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