सरकारी लापरवाही और संवेदनहीनता का एक गंभीर मामला, कबाड़ में मिली जागरुकता अभियान की बांटी गई किताबें

सरकारी लापरवाही और संवेदनहीनता का एक गंभीर मामला, कबाड़ में मिली जागरुकता अभियान की बांटी गई किताबें

तखतपुर :  जनपद पंचायत तखतपुर से सरकारी लापरवाही और संवेदनहीनता का एक गंभीर मामला सामने आया है. महिला सशक्तिकरण और जनजागरूकता से जुड़ी सरकारी योजनाओं के तहत वितरित की गई पुस्तकें और कैलेंडर कचरे में फेंके हुए पाए गए.

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इनमें देश के महापुरुषों, श्रीरामचंद्र जी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के चित्र छपे थे.

स्थानीय लोगों के अनुसार ये सामग्री न केवल कचरे में पड़ी मिली, बल्कि कई जगहों पर उसका उपयोग थूकदान की दीवार के रूप में किया गया. इस घटना ने जनपद प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.

सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए छापी गई सामग्री, जिनमें भाजपा के संस्थापक नेताओं, राष्ट्र निर्माताओं और सामाजिक विचारकों की तस्वीरें थीं, वे सार्वजनिक स्थानों पर उपेक्षित और फटी हुई हालत में मिलीं. इससे न सिर्फ सरकारी धन की बर्बादी हुई है, बल्कि राष्ट्रपुरुषों का अपमान भी हुआ है.

मीडिया द्वारा संपर्क करने पर विधायक धर्मजीत सिंह, कलेक्टर संजय अग्रवाल और जनपद पंचायत के सीईओ सत्यव्रत तिवारी ने फोन कॉल का कोई जवाब नहीं दिया. इससे जनता में नाराजगी और बढ़ गई है. स्थानीय जनप्रतिनिधियों का कहना है कि जब मीडिया की कॉल अनसुनी हो रही है, तो आम जनता की शिकायतों का क्या हाल होता होगा?

घटना के सामने आने के बाद स्थानीय सामाजिक संगठनों और नागरिकों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. जनपद सदस्य ऋषभ कश्यप ने इसे 'महापुरुषों और लोकतंत्र की गरिमा का खुला अपमान' बताया और प्रशासन से इस मामले में जिम्मेदारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है.

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अब प्रश्न उठता है कि ये बेलगाम अफसरशाही इतनी हिम्मत लाती कहां से है? क्या लोकतंत्र अब सिर्फ सत्ता की कुर्सी पर टिके मौन कॉलर ट्यून का नाम रह गया है? महापुरुष जिन मूल्यों के लिए जिए, उनका अपमान खुलेआम और बिना किसी शर्म के हो रहा है, और जिम्मेदार आंखें मूंदे बैठे हैं.

छत्तीसगढ़ को 'सुशासन का मॉडल' कहा जाता है, लेकिन जब सरकारी किताबें कूड़े में मिलें और अधिकारी जवाब देने को तैयार न हों, तो सुशासन की परिभाषा पर पुनर्विचार करना जरूरी हो जाता है.









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