कांवड़ यात्रा से परशुराम और श्रवण कुमार का है खास नाता, जानिए क्‍यों?

कांवड़ यात्रा से परशुराम और श्रवण कुमार का है खास नाता, जानिए क्‍यों?

सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित माना जाता है और इसी पवित्र महीने में लाखों शिवभक्त “कांवड़ यात्रा” पर निकलते हैं. यह यात्रा आस्था, श्रद्धा और कठिन तप का प्रतीक मानी जाती है. उत्तर भारत के कई राज्यों से श्रद्धालु पैदल चलकर पवित्र नदियों से गंगाजल भरते हैं और उसे शिवलिंग पर अर्पित करते हैं. सवाल यह है कि आखिर इस कांवड़ यात्रा का इतना धार्मिक महत्व क्यों है और शिवभक्त इसे इतनी कठिन तपस्या के रूप में क्यों करते हैं?

कांवड़ यात्रा 2025 कब से है:- पंचांग के अनुसार, साल 2025 में सावन माह की शुरुआत 11 जुलाई को रात 2 बजकर 6 मिनट से हो रही है और इसका समापन 9 अगस्त को होगा. इस बार सावन पूरे 30 दिनों का रहने वाला है. चूंकि सावन के पहले दिन से ही कांवड़ यात्रा शुरू हो जाती है इसलिए इस बार कांवड़ यात्रा 11 जुलाई से होगी.

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कांवड़ यात्रा क्या है:- कांवड़ यात्रा भगवान शिव को समर्पित एक वार्षिक तीर्थयात्रा है, जिसमें श्रद्धालु, जिन्हें ‘कांवड़िया’ कहा जाता है, पवित्र नदियों, विशेषकर गंगा नदी से जल लेकर पैदल यात्रा करते हुए शिवलिंग पर उस जल को अर्पित करते हैं. यह जल आमतौर पर हरिद्वार, ऋषिकेश, गोमुख, सुल्तानगंज जैसे पवित्र स्थानों से भरा जाता है और फिर सैकड़ों-हजारों किलोमीटर की दूरी तय करते हुए अपने गंतव्य शिव मंदिरों तक पहुंचाया जाता है. इस यात्रा में भक्त अपने कंधों पर एक विशेष प्रकार की ‘कांवड़'(एक बांस का ढांचा, जिसके दोनों सिरों पर घड़े या बोतलें लटकी होती हैं) लेकर चलते हैं, जिसमें पवित्र जल भरा होता है.

कांवड़ यात्रा का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व

समुद्र मंथन से जुड़ाव: सबसे प्रचलित कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है. जब समुद्र मंथन से हलाहल विष निकला और सृष्टि पर संकट आ गया, तब भगवान शिव ने इस विष को पीकर पूरी सृष्टि को बचाया. विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया, इसलिए उन्हें ‘नीलकंठ’ कहा जाने लगा. इस विष के नकारात्मक प्रभावों को शांत करने के लिए, सभी देवी-देवताओं ने भगवान शिव पर पवित्र जल अर्पित किया. यहीं से शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा का आरंभ माना जाता है.

भगवान परशुराम से संबंध: एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान परशुराम ने भगवान शिव का अभिषेक करने के लिए सबसे पहले हरिद्वार से गंगाजल लाकर ‘पुरा महादेव’ (उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में स्थित) में चढ़ाया था. इसे पहली कांवड़ यात्रा माना जाता है.

श्रवण कुमार की कहानी: कुछ लोग इसे श्रवण कुमार की पितृभक्ति से भी जोड़ते हैं. जिस प्रकार श्रवण कुमार अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर तीर्थयात्रा पर ले गए थे, उसी प्रकार शिवभक्त कांवड़ में गंगाजल लेकर शिवधाम जाते हैं.

इतनी कठिन तपस्या क्यों:- कांवड़ यात्रा शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से अत्यंत चुनौतीपूर्ण होती है. कांवड़िया नंगे पैर, कई दिनों तक पैदल चलते हैं, धूप, बारिश और थकान का सामना करते हैं. फिर भी वे इस यात्रा को उत्साह और अटूट भक्ति के साथ पूरा करते हैं. यह यात्रा भगवान शिव के प्रति भक्तों की असीम श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है. वे मानते हैं कि इस तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न होंगे और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी. ऐसी मान्यता है कि कांवड़ यात्रा करने से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.

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