महाराष्ट्र के कोल्हापुर की रहने वाली मोनिका मोहिते आज ऑर्गेनिक खेती की दुनिया में एक जाना-माना नाम हैं. अंग्रेज़ी साहित्य में मास्टर्स, कंप्यूटर साइंस में पोस्ट ग्रेजुएट और क्रिएटिव राइटिंग में डिप्लोमा रखने वाली मोनिका ने जिस क्षेत्र को चुना, वह पढ़ाई से बिल्कुल अलग था – खेती. लेकिन यह फैसला सिर्फ एक व्यवसायिक सोच नहीं थी, यह एक मां का फैसला था. साल 2008 में जब उनके बेटे ने रेसिंग करियर की शुरुआत की, तब एक डाइटिशियन ने कहा कि उसे ताकत और सहनशक्ति बढ़ाने के लिए प्रोटीन सप्लीमेंट्स और एनर्जी बार्स की ज़रूरत होगी. एक स्पोर्ट्सपर्सन और मां होने के नाते, मोनिका को बाजार में मिलने वाले उत्पादों की गुणवत्ता पर संदेह हुआ. उन्होंने तय किया – जब शुद्ध, पोषण से भरपूर भोजन बाज़ार में नहीं है, तो वह खुद उगाएंगी. यहीं से शुरुआत हुई पारखी ऑर्गेनिक फार्म्स की.
ये भी पढ़े : मुखिया के मुखारी – दवा ,दारू दोनों में भ्रष्टाचार का नशा
पारखी ऑर्गेनिक फार्म्स: परिवार और सच्चाई से जुड़ी एक विरासत
मोनिका मोहिते के ऑर्गेनिक फार्म का नाम पारखी है, जिसका मतलब होता है - "जो असली की पहचान रखता हो." यह नाम उन्होंने दो खास महिलाओं के नामों से मिलाकर बनाया है, जिन्होंने उन्हें गहराई से प्रेरित किया – उनकी सास पार्वती और बेटी ख्याति. मोनिका कहती हैं, “आई (मां) ने मुझे खेती की दुनिया से जोड़ा, और यह फार्म मेरे तरफ़ से उनके लिए एक छोटी सी श्रद्धांजलि है.” यह नाम उनके पारिवारिक जुड़ाव और पीढ़ियों से चल रही सेहत की परंपरा को दर्शाता है.
शुरुआत में मोनिका के पास खेती का कोई औपचारिक ज्ञान नहीं था. लेकिन 2010 से उन्होंने पूरी मेहनत से सीखना शुरू किया – वर्कशॉप्स में भाग लिया, विशेषज्ञों से सलाह ली और खेत में काम करके अनुभव भी हासिल किया. भोपाल के ICAR-CIAE में ट्रेनिंग के दौरान उन्होंने जाना कि सोया आटे को दूसरे आटे के साथ सही मात्रा में मिलाने पर उसमें प्रोटीन की मात्रा काफी बढ़ जाती है.
यही छोटी-छोटी खोज और प्रयोग धीरे-धीरे पारखी के मुख्य उत्पादों की नींव बन गईं. आज भी मोनिका लगातार नई चीजें सीखती हैं ताकि उनके उत्पाद पौष्टिक और लोगों की ज़रूरतों के अनुसार बने रहें.
एक आत्मनिर्भर जैविक इकोसिस्टम
करीब 40 एकड़ में फैला हुआ पारखी ऑर्गेनिक फार्म्स एक जीवंत और विविधताओं से भरा हुआ इकोसिस्टम है. यहां फसलें, दालें, पशुपालन और मुर्गीपालन - सब कुछ एक साथ होता है. मोनिका का यह मॉडल पूरी तरह से एकीकृत और टिकाऊ खेती (सस्टेनेबल फार्मिंग) पर आधारित है.
उनकी कुछ प्रमुख व्यावसायिक फसलें हैं - सोयाबीन, जिससे प्रोटीन से भरपूर आटा बनाया जाता है, और गन्ना, जिससे जैविक गुड़ पाउडर तैयार किया जाता है. ये दोनों उत्पाद बहुत लोकप्रिय हैं. उनके आम के बाग में लगभग 150 पेड़ हैं, जिनसे आम का गूदा निकाला जाता है और उसे फल उत्पादों में इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा वह चीकू, धान (चावल), ज्वार और दालों की भी खेती करती हैं.
एक खास नवाचार (innovation) जो सबका ध्यान खींचता है, वह है गाय के गोबर से बनाई गई धूपबत्ती. शुरुआत में इस विचार का मज़ाक उड़ाया गया था, लेकिन आज यह पर्यावरण के लिए सुरक्षित मानी जाती है और शहरों में इसकी अच्छी मांग है.
उनके फार्म से हर दिन ताजे सब्जियों और अंडों की बिक्री होती है, जिससे रोज़ की कमाई होती है. मौसम, फसल की मांग और आपूर्ति की स्थिति के अनुसार, उनका सालाना कारोबार ₹50 लाख से ₹1 करोड़ तक होता है. यह उनके व्यवसायिक समझ और खेती में गहरी जानकारी का प्रमाण है.
रुकावटों को पार करना और लोगों को जागरूक करना
मोनिका के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक थी - अपने आसपास के किसानों और मज़दूरों को जैविक खेती अपनाने के लिए समझाना. बहुत से लोग शक में थे, खासतौर पर खेत में बने कंपोस्ट, गोबर की खाद और प्राकृतिक कीटनाशकों के उपयोग को लेकर. मोनिका कहती हैं, “लोगों ने मेरी बातें नजरअंदाज कर दीं, खासकर गाय के गोबर से धूपबत्ती बनाने के विचार को लेकर. उन्होंने इसका मजाक उड़ाया.”लेकिन मोनिका अपने इरादों पर डटी रहीं. धीरे-धीरे, जब उनके काम का असर दिखने लगा और अच्छे नतीजे सामने आए, तो लोगों का विश्वास बढ़ा और वे उनके साथ जुड़ने लगे.
ये भी पढ़े : घर पर ही इन तरीकों के चमकाएं चेहरा,देखें आसान घरेलु उपाय
मोनिका बताती हैं कि जैविक खेती का सबसे बड़ा रोड़ा यह है कि किसानों को उनकी फसल का उचित दाम नहीं मिलता. जब किसानों को सीधे बाज़ार से जुड़ने का मौका नहीं होता या मिट्टी की सेहत की जानकारी नहीं होती, तो वे जल्दी मुनाफे के लिए फिर से रासायनिक खेती की ओर लौट जाते हैं.
मोनिका बिचौलियों को खत्म करने और ऐसी व्यवस्था बनाने की वकालत करती हैं जिसमें किसान सीधे उपभोक्ताओं से जुड़ सकें. उनके अनुसार, यही टिकाऊ और सफल खेती के भविष्य की असली कुंजी है.
Comments