सिरोही : राजस्थान के सीमावर्ती सिरोही जिले में अब किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ बागवानी की ओर भी अग्रसर हो रहे हैं. जिले के तलहटी स्थित तपोवन में ब्रह्माकुमारी संस्थान की ओर से पिछले तीन वर्षों से मौसमी यानी स्वीट लाइम की खेती की जा रही है. यह खेती आधुनिक तकनीकों के साथ पूरी तरह जैविक पद्धति से की जा रही है जिसमें किसी भी प्रकार के रासायनिक खाद या कीटनाशक का उपयोग नहीं किया जाता.
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तपोवन के बीके ललन भाई ने जानकारी दी कि संस्थान की ओर से दो बीघा भूमि में मिश्रित पद्धति से मौसमी की खेती शुरू की गई थी. हर वर्ष दो बार इन पेड़ों पर फल आते हैं. एक बार में लगभग 10 से 12 क्विंटल फल मिलते हैं. शुरू के एक से दो वर्षों तक पौधों की विशेष देखभाल की जाती है. इसके बाद ये पौधे पेड़ बनकर नियमित रूप से फल देने लगते हैं. यहां ड्रिप पद्धति के माध्यम से पौधों तक पानी पहुंचाया जाता है. इसके साथ ही योग खेती की अवधारणा के तहत गाय के गोबर और गोमूत्र से तैयार जैविक खाद का उपयोग किया जाता है.
दूरी और सिंचाई का रखें ध्यान
मौसमी की खेती के लिए गर्म और शीतोष्ण जलवायु उपयुक्त मानी जाती है. अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे बेहतर होती है. पौधे लगाते समय प्रत्येक के बीच 5 से 8 फीट की दूरी रखनी चाहिए. साथ ही गड्ढों में गोबर खाद का प्रयोग करने से उपज में वृद्धि होती है. गर्मियों में 5 से 10 दिन और सर्दियों में 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए.
एक पेड़ से 30 किलो तक फल
चार साल पुराने मौसमी के एक पेड़ से लगभग 20 से 30 किलोग्राम तक फल प्राप्त होते हैं. एक एकड़ क्षेत्र में 15 से 20 क्विंटल तक उत्पादन संभव है. पौधों को कीटों और रोगों से बचाने के लिए उचित जैविक उपाय करना भी आवश्यक है. किसान अपने खेतों में या किनारों पर मौसमी के बगीचे लगाकर अतिरिक्त आमदनी अर्जित कर सकते हैं. जैविक और टिकाऊ खेती की यह पहल स्थानीय किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन रही है.
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