1 जुलाई 2025 : अनिल अंबानी के कंपनियों के शेयर के भाव चढ़ गए पर पता नही क्या है की इंडी गठबंधन के शेयर बढ़ रहे ना उनके भाव चढ़ रहे, अकललेस ने फिर किया प्रमाण पेश की वों असल में हैं अकललेस, ना कोई रोजगार ,ना कोई धंधा ,ना पुस्तैनी संपत्ति ,पेशा जनसेवा फिर भी बन गए अरबपति ,ऐसे अकललेस ये तो नही बता रहे कैसे वों सपा चला रहे,पर निशाना शास्त्री जी पर साध रहे,कथा के बहाने सत्ता की व्यथा कह जातीयता में सत्ता सूत्र ढूढ़ रहे, महाकुंभ का समागम अभी तक उन्हें बेचैन किए हुए है। हिंदुत्व की काट ढूंढने में अपना ही जनाधार काट रहे हैं, लालू के लाल हैं संविधान रक्षा की कसमें खाते हैं फिर उसी संवैधानिक व्यवस्था से बने वक्फ कानून को कूड़े दान में डालने की बात करते हैं, संविधान से बड़ा इनके लिए सरिया है, भारतीय संसद द्वारा पारित कानून की जिनकी नजरों में नही कोई महत्ता अजीब है इनके संविधान रक्षा की कवायदें ,सनातन विरोधी बयानों की भरमार है ,हिन्दू आस्थाओं पर रोज घात -प्रतिघात, समयचक्र चल ऐसा रहा की समय का चक्कर ही इंडी गठबंधन के पकड़ में नही आ रहा, पाकिस्तान चारों खाने चित्त है गीदड़ भभकीयों का नही कोई शोर है,परमाणु बम बिना फूटे सेफ है, पता नही पाकिस्तान का हाल क्यों पाव -पाव वाला हो गया है।
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आपरेशन सिंदूर ने देश ही नही विश्व में यशोगान हमारा बढ़ाया है, कूटनीति ने राजनीति का वरण कर भारत की महत्ता और बढ़ाई है ट्रंप अपने लिए ट्रंप कार्ड नही बन पाए ,उस ट्रंप से भारतीय विपक्षी पार्टियों को बहुत उम्मीदें थीं जो धराशाई होनी थी हों गई, नोबेल शांति पुरुस्कार की चाह में कइयों ने ऐतिहासिक भूलें की अपने ही व्यक्तित्व को छोटा किया ऐसा ही ट्रंप कर रहे ,भाई -बहन की जोड़ी उद्वेलित है उम्मीद की किरण दिखती तो है पर जलती नही हैं, कामयाबी नाकामी के पीछे छिप गई है या फिर सिर्फ नाकामयाबी है हिस्से ? भाग्य बांचें की मेहनत करें ये समझ नही पा रहे उसमे मतों का टोटा है फिर कहां सत्ता का भरोसा है, चुनाव दर चुनाव, परिणाम दर परिणाम ,मत दर मत, एक से ही हैं ना मानसून में कुछ बदल रहा ,ना पतझड़ सत्ता का संभल रहा, अजीब दुविधा है ,ना सुविधा है, ना विद्या है,खुद ठुक जाने के बाद ठाकरे एकीकरण चाह रहे, मुम्बई का आखरी किला बचाना चाह रहे ,सकुनी के भरोसे साम्राज्य जितने चले थे औंधे मुंह गिरे ,गद्दी मिलती है बुद्धि नही, पवार का पावर उन्हें खुद नही पता चल रहा तो क्या वों किसी को बताएं और दिखाएं।
माँ, माटी, मानुष वाली ममता सत्ता बचाने संघर्षरत है ,ना सरकार है ना उसका असर है, महिला मुख्यमंत्री के प्रदेश में महिलाओं की इज्जत ही बारम्बार तार -तार हों रही, ममता खेला होबे ,खेला होबे कह सिर्फ अपने को संतुष्ट कर रही दक्षिण वाले तीक्ष्ण हिन्दू विरोध पे सवार हों तमिलनाडू की सत्ता की जीत की राह तलाश रहे । कर्नाटक में नाटक का नया शिरा खुला हुआ है सिद्दरमैया अपनी सत्ता सिद्ध कर पाएंगे की नही सवाल है बड़ा खड़ा ,अपने प्रदेश में भी राजनीतिक फिजा पूरी रंगीन कद्दावारों के आचरण कदा अनुसार नही हों रहे, संविधान बचाने वाले अपना ही मोबाईल नही बचा पा रहे ,सीसीटीवी घर में तो है पर ऑफिस में क्यों नही, ये रहस्य बड़ा है या सवाल बड़ा है ? कांग्रेस की नरम -गरम राजनीती में इसका जवाब कब और कैसे आएगा ये कांग्रेसियों को भी नही पता, दाऊ -दलाल गिरोह के उपर घोटालों के करोड़ो के आरोप हैं,आरोपों से आवाज की गर्जना कम नही हों रही या तो पिछले वाले दबंग हैं या ये वाले दमदार नही हैं, या तो फिर कुछ हुआ ही नही सब राजनीतिक सिगुफा है, जिसमें एक दुसरे की पीठ खुजाने की प्रथा है। सरकार मुख्य सचिव को विदा कर रही थी पता नही था की वक्त अभी विदाई का हुआ नही , सुपरस्टार निकले मुख्य सचिव मुख्यमंत्री बुके लिए खड़े और मुख्य सचिव ने उन्हें अपने सेवा विस्तार की जानकारी दी ये है सुशासन वाली सरकार की नियति । अब इसमें भी अर्थ ना खोजें महिनों से मंत्रिमंडल विस्तार नही हुआ तो भी तो सरकार चल रही सुशासन के दावे कर रही, राजनीति ------ कुछ ढपा, कुछ छिपा, कुछ नही खुला
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल की टिप्पणी
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