अकाल मृत्यु वह मरे, जो काम करे चांडाल का… काल भी उसका क्या बिगाड़े जो भक्त हो महाकाल का। काल यानी समय और काल यानी मृत्यु। दोनों ही जिसके आगे नतमस्तक हो जाती हैं, उसे उज्जैन के महाकाल के नाम से जाना जाता है। यह एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जो दक्षिण दिशा की ओर मुख किए हुए है। माना जाता है कि दक्षिण दिशा मृत्यु के देवता यमराज की दिशा है। भगवान महाकाल मृत्यु से परे होने के कारण ही इस दिशा में विराजमान हैं।
वहीं, उज्जैन के महाकालेश्वर शिवलिंग को स्वयंभू माना जाता है, जिसका अर्थ है कि यह स्वयं प्रकट हुआ है। मान्यता है कि भगवान शिव ने एक राक्षस दूषण को भस्म कर उसी की राख से अपना श्रृंगार किया था। समय के अंत तक इसी स्थान पर रहने के कारण वह 'महाकाल' कहलाए।
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यहां से गुजरती है मानक समय की रेखा
यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यानी इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना किसी इंसान ने नहीं की। यहां एक ज्योति के रूप में भगवान महाकाल स्वयं स्थापित हुए हैं। उज्जैन को पृथ्वी की नाभि कहा जाता है। प्राचीनकाल में उज्जैन विज्ञान और गणित की रिसर्च केंद्र हुआ करता था।
वजह है कि दुनियाभर में मानक समय की गणना करने वाली कर्क रेखा इसी जगह से होकर गुजरती है। यह रेखा पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में भूमध्य रेखा के समानांतर 23.5 डिग्री उत्तर में स्थित काल्पनिक रेखा है।
यहां 21 जून की दोपहर 12 बजे सूर्य सिर के ठीक ऊपर ऐसे होता है कि परछाई भी साथ छोड़ देती है। उस समय पर जिसका अधिकार है, वह स्वयं महाकाल हैं।
पुराणों में भी है वर्णन
स्कंदपुराण के अवंती खंड में भगवान महाकाल का भव्य विवरण दिया गाय है। पुराणों में भी महाकाल मंदिर का उल्लेख किया गया है। इतना ही नहीं, कालिदास ने मेघदूतम के पहले भाग में महाकाल मंदिर का उल्लेख किया है। शिवपुराण के अनुसार, नंद से आठ पीढ़ी पहले एक गोप बालक ने महाकाल की प्राण-प्रतिष्ठा की थी।
इस मंदिर का इतिहास कई शताब्दियों में फैला हुआ है। इसके निर्माण और पुनर्निर्माण में कई राजवंशों का योगदान रहा है। विभिन्न राजाओं ने समय-समय पर मंदिर का जीर्णोद्धार और विस्तार किया। वर्तमान मंदिर का स्वरूप मराठा शासकों द्वारा दिए गए योगदान का परिणाम है।
कोई राजा यहां नहीं बिताता रात
कहा जाता है कि उज्जैन पृथ्वी के नाभि केंद्र पर स्थित है। महाकालेश्वर मंदिर इसी नाभि पर विराजमान है। इस वजह से भी यह सबसे शक्तिशाली मंदिर है। भगवान महाकाल ही उज्जैन के वास्तविक राजा हैं। इसलिए किसी राजा या उच्च पदस्थ व्यक्ति को रात में मंदिर के आस-पास नहीं रुकने की परंपरा रही है।
कहा जाता है कि महाकाल मंदिर के पास जो भी राजा रुकता है, उसका अनिष्ट हो जाता है। दरअसल, देश के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई जब मंदिर के दर्शन करने के बाद रात में यहां रुके थे, तो अगले दिन उनकी सरकार गिर गई थी।
इसी तरह से कर्नाटक के मुख्यमंत्री वीएस येदियुरप्पा भी उज्जैन में रुके थे। इसके बाद कुछ ही दिनों के अंदर उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। लंबे समय तक कांग्रेस और फिर भाजपा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया आज तक यहां नहीं रुके हैं।
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