पूर्वी यूरोप में चल रहे युद्ध ने एक बार फिर खतरनाक मोड़ ले लिया है. रूस ने यूक्रेन के खिलाफ अब तक का सबसे व्यापक और विनाशकारी हवाई हमला किया है, जिसमें एक ही रात में 728 ड्रोन और 13 मिसाइलें दागी गईं. यह हमला पिछले तीन वर्षों के संघर्ष में अब तक की सबसे बड़ी सैन्य कार्रवाई के रूप में देखा जा रहा है.
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लक्ष्य पर ट्रांसपोर्ट और सप्लाई नेटवर्क
रूस का यह हमला सिर्फ संख्या में बड़ा नहीं, बल्कि रणनीतिक तौर पर भी बेहद महत्वपूर्ण है. हमलों का मुख्य मकसद यूक्रेन के लॉजिस्टिक्स नेटवर्क और ट्रांसपोर्ट सिस्टम को पूरी तरह पंगु करना है. विशेष रूप से लुत्स्क शहर को निशाना बनाया गया, जो उत्तर-पश्चिम यूक्रेन में स्थित है और पोलैंड और बेलारूस की सीमाओं के पास पड़ता है. यह क्षेत्र यूक्रेनी वायुसेना के लिए एक बड़ा हब माना जाता है. यहां से मालवाहक और सैन्य विमान नियमित रूप से उड़ान भरते हैं. इसी के साथ रूस ने उन एयरबेस और डिपो को भी निशाने पर लिया, जहां से विदेशी सैन्य सहायता हथियारों और जरूरी साजो-सामान के रूप में आती है.
वायु रक्षा प्रणाली को कमजोर करने की रणनीति
विश्लेषकों का मानना है कि रूस का यह हमला सिर्फ बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं था, बल्कि यूक्रेन की वायु रक्षा प्रणाली को कमजोर करने की एक रणनीतिक कोशिश भी थी. यदि यूक्रेन की वायु सुरक्षा ढांचे में सेंध लगती है, तो रूस के लिए भविष्य के हमले आसान हो सकते हैं.
अमेरिका ने फिर से बढ़ाया समर्थन
इस हमले की टाइमिंग भी गौर करने वाली है—क्योंकि ठीक इसी समय अमेरिका ने एक बार फिर यूक्रेन को सैन्य सहायता देना शुरू कर दी है. पिछले कुछ महीनों से अमेरिका की ओर से यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति धीमी पड़ी थी, लेकिन अब 155 मिमी गोला-बारूद, GMLRS (Guided Multiple Launch Rocket Systems) जैसी आधुनिक हथियार प्रणाली यूक्रेन को भेजी जा रही हैं. इन हथियारों का मकसद यूक्रेन की लॉजिस्टिक्स लाइन को बचाए रखना और उसकी रक्षा क्षमता को पुनः सशक्त करना है. रूस का यह हमला यह स्पष्ट करता है कि युद्ध जल्द थमने की संभावना नहीं है. यूक्रेन की सैन्य तैयारियों पर अब और दबाव बढ़ेगा. वहीं अमेरिका और यूरोपीय देशों की अगली रणनीति पर भी सबकी नजरें टिक गई हैं.
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