धान की खेती में पानी की खपत खूब रहती है. थोड़ा भी सूखा इसकी पैदावार को कम कर सकता है. लेकिन अब इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है. पानी न भी हो तो काम चलेगा. अब बिन पानी भी धान के खेत लहलहाएंगे. फर्रुखाबाद के किसान आलोक कहते हैं कि वे पिछले 20 साल से खेती करते आ रहे हैं. इस बार उन्होंने अपने खेतों में धान की फसल बो रखी है. उन्होंने अराइज पंत और पूसा जैसी किस्में रोपी हैं. आलोक कहते हैं कि इस फसल से उन्हें आज तक नुकसान नहीं हुआ बल्कि लागत से आठ गुना अधिक मुनाफा हो जाता है. आमतौर पर प्रति बीघा दो से तीन हजार रुपए की लागत आती है. फसल तैयार होने पर धान बेच देते हैं और पौधों के अवशेष से जैविक खाद व चारा बना लेते हैं.
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इतने दिन में पककर तैयार
किसान आलोक बताते हैं कि जब बारिश नहीं होती है तो उन्हें ट्यूबबेल से सिंचाई करनी पड़ती हैं. इससे फसल भी काफी देरी से तैयार होती है और पैदावार भी कम हो जाती है. लेकिन कृषि वैज्ञानिकों ने धान की कई ऐसी किस्में तैयार कर ली हैं, जो कम पानी और सूखा प्रभावित क्षेत्रों में भी अच्छी उपज देती हैं. कई जगह किसान बारिश को ध्यान में रखते हुए धान की खेती करते हैं. उन किसानों के लिए धान की ये किस्में बेहद लाभदायक हैं. स्वर्ण शुष्क धान कम पानी वाले क्षेत्रों में अधिक उपज देने वाली किस्म है. धान की इस किस्म में रोग और कीट ज्यादा प्रभावी नहीं हो पाते. इस धान में रोगों से लड़ने की क्षमता ज्यादा होती है. यह कम ऊंचाई वाली धान की किस्म है जो अच्छी पैदावार देती है. यह किस्म कम पानी वाले क्षेत्रों में भी 40 से 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पैदावार देती है. यह धान 110 से 115 दिनों में पककर तैयार हो जाता है.
रोग भी नहीं लगता
बासमती धान की पूसा 834 को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने विकसित किया है. यह 125 से 130 दिनों में पककर तैयार होती है. धान की इस किस्म की पत्ती पर झुलसा रोग ज्यादा प्रभावी नहीं हो पाता है. बासमती की इस किस्म को कम उपजाऊ मिट्टी या फिर कम पानी वाले क्षेत्रों में भी उगा कर तैयार किया जा सकता है. पूसा 834 बासमती धान किसानों को 60 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन देती है. पूर्वी धान-1 किस्म भी कम पानी वाले क्षेत्रों में आसानी से उगाई जा सकती है. सूखा प्रतिरोधी यह किस्म धान की अगेती बुवाई के लिए बेहद ही अच्छी है. यह 115 से 120 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. कम पानी में तैयार होने वाली धान की यह किस्म 45 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन देती है.



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