रायपुर: छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य विभाग में हुए 500 करोड़ रुपये से अधिक के रीएजेंट और दवा खरीदी घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच तेज हो गई है। ईडी अब तीन वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों से पूछताछ की तैयारी में है, जो घोटाले के दौरान छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन (सीजीएमएससी) में पदस्थ थे। घोटाले के मुख्य आरोपी शशांक चोपड़ा सहित 7 लोग पहले ही जेल भेजे जा चुके हैं।
ईओडब्ल्यू और एसीबी मामले में चार्जशीट दाखिल कर चुकी हैं, लेकिन ईडी का दावा है कि अब भी कई बड़े नाम सामने आ सकते हैं। ईडी की कार्रवाई को लेकर प्रशासनिक महकमे में खलबली मची हुई है। छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड में दवा खरीदी घोटाले की जांच कर रही ईडी की टीम ने पिछले दिनों रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग में 18 जगहों पर छापेमारी की थी।
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बता दें कि इससे पहले राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा और एंटी करप्शन ब्यूरो (ईओडब्ल्यू-एसीबी) ने मामले की जांच कर दवा घोटाले के मुख्य सूत्रधार मोक्षित कॉर्पोरेशन दुर्ग के संचालक शशांक चोपड़ा और दवा निगम अफसरों समेत कुल सात लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है।
पूछताछ की, नहीं बनाया आरोपी
सूत्रों की माने तो ईओडब्ल्यू-एसीबी ने मामले में कार्रवाई तो की, लेकिन घोटाले के लिए जिम्मेदार विभाग के आला अफसरों तक उनके हाथ नहीं पहुंच पाए। इस बीच आइएएस भीम सिंह, चंद्रकांत वर्मा और सीजीएमएससी की एमडी पद्मिनी भोई से पूछताछ की पर उनके खिलाफ प्रकरण दर्ज नहीं किया, जबकि स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने विधानसभा सत्र के दौरान संकेत दिया था कि घोटाले में दो बड़े अफसरों की भी भूमिका रही है। अब ईडी ने मामले को हाथ में लिया है, तो अब तक बचते आ रहे अफसरों पर कार्रवाई होना तय माना जा कहा है।
जिम्मेदारों को नोटिस देने की तैयारी
ईडी ने जेल में बंद दवा व्यापारी और अफसरों से पूछताछ करने वाली है। इसके लिए कोर्ट से अनुमति लेने की प्रक्रिया शुरू की गई है। यही नहीं तीन आईएएस अफसरों को भी नोटिस देकर पूछताछ के लिए बुलाने की तैयारी है। चर्चा है कि ईडी जल्द ही कुछ और लोगों को गिरफ्तार कर सकती है।
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ऑडिट रिपोर्ट ने खोली पोल
घोटाले के दौरान जरूरत से ज्यादा दवा और उपकरण खरीदे गए। कई अस्पतालों को ऐसी मशीनें दी गईं, जिनकी जरूरत नहीं थी। 776 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को उपकरण सप्लाई किए गए, लेकिन 350 से ज्यादा केंद्रों में भंडारण सुविधा ही नहीं थी। डीएचएस (जनसांख्यिकीय और स्वास्थ्य सर्वेक्षण) ने बेसलाइन सर्वेक्षण किए बिना ही खरीदारी की। इसका मतलब है कि जिम्मेदार अफसरों ने पहले से कोई सर्वेक्षण नहीं किया था और फिर भी खरीदारी कर ली।



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