संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि का पर्व — कमरछठ मातृत्व, आस्था और परंपरा का संगम,गरियाबंद में श्रद्धा-भक्ति के साथ मनाया गया

संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि का पर्व — कमरछठ मातृत्व, आस्था और परंपरा का संगम,गरियाबंद में श्रद्धा-भक्ति के साथ मनाया गया

परमेश्वर राजपूत, गरियाबंद : जिला मुख्यालय गरियाबंद में हर साल कृष्ण जन्माष्टमी से दो दिन पहले, यानी भादो माह की षष्ठी तिथि के दिन, हल षष्ठी का व्रत रखा जाता है। इस पर्व को देश के अलग-अलग राज्यों में हलछठ और ललही छठ के नाम से जाना जाता है, जबकि छत्तीसगढ़ में इसे कमरछठ कहा जाता है।यह त्यौहार माताओं द्वारा अपनी संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए मनाया जाता है। इस दिन, महिलाएं व्रत रखती हैं और भगवान शिव और पार्वती की पूजा करती हैं। 

इस वर्ष यह पावन पर्व 14 अगस्त को श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया। सुबह से ही शहर और ग्रामीण इलाकों में महिलाओं ने व्रत आरंभ कर सगरी सजाने की तैयारी शुरू कर दी। गरियाबंद का पारंपरिक त्योहार कमरछठ गुरुवार को विशेष भक्ति भाव के साथ मनाया गया, जिसमें माताओं ने अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए दिनभर उपवास रखा। शाम को लाई, पसहर, महुआ, दूध-दही आदि का भोग लगाकर सगरी की पूजा की गई। मोहल्लों और मंदिरों में मां हलषष्ठी की कथा का पाठ और श्रवण हुआ। शहर के लगभग सभी मोहल्लों में, खासतौर पर पुराने मंगल बाजार में, महिलाओं ने सामूहिक रूप से सगरी पूजा का आयोजन किया।

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व्रतधारी महिला भारती सिन्हा ने बताया कि बच्चों की लंबी उम्र के लिए माताओं द्वारा किया जाने वाला यह छत्तीसगढ़ी संस्कृति का पर्व हर जाति और वर्ग के लोग पूरे उत्साह से मनाते हैं। हलषष्ठी को हलछठ, कमरछठ या खमरछठ भी कहा जाता है। गुरुवार सुबह से ही महिलाएं महुआ पेड़ की डाली से दातून कर, स्नान कर व्रत धारण करती हैं। दोपहर बाद घर के आंगन और मंदिरों में सगरी बनाई जाती है, जिसमें पानी भरा जाता है, जो जीवन का प्रतीक माना जाता है।

सगरी की सजावट बेर, पलाश, गूलर आदि पेड़ों की टहनियों और काशी के फूलों से की जाती है। इसके सामने गौरी-गणेश, मिट्टी से बनी हलषष्ठी माता की प्रतिमा और कलश की स्थापना कर पूजा की जाती है। साड़ी और सुहाग सामग्री समेत अन्य पूजन वस्तुएं भी माता को अर्पित की जाती हैं। इसके बाद हलषष्ठी माता की 6 कथाओं का वाचन और श्रवण किया जाता है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, बलराम अपने माता-पिता के 7वें संतान थे। यह पर्व श्रावण पूर्णिमा के 6 दिन बाद चंद्रषष्ठी, बलदेव छठ और रंधन षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माताएं षष्ठी माता की पूजा करके परिवार की खुशहाली और संतान की लंबी उम्र के लिए आशीर्वाद मांगती हैं। बलराम, जो श्रीकृष्ण के सौतेले बड़े भाई थे, रोहिणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे और उनके कई नाम हैं — हलधर, हलायुध, संकर्षण आदि। उनके सात भाई और एक बहन सुभद्रा थीं, जिन्हें चित्रा भी कहा जाता है।

6 अंक का विशेष महत्व
कमरछठ में 6 अंक को बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन सगरी में 6-6 बार पानी डाला जाता है। पूजा में 6 खिलौने, 6 लाई के दोने और 6 चुकिया यानी मिट्टी के छोटे घड़े चढ़ाए जाते हैं। 6 प्रकार के छोटे कपड़े सगरी के जल में डुबोकर संतान की कमर पर 6 बार थपकी दी जाती है, जिसे पोती मारना कहते हैं।

बाजार में पसहर चावल और दूध की बढ़ी मांग

पर्व के चलते बाजार में पसहर चावल और दूध की मांग बढ़ गई। मान्यता है कि इस दिन हल से जोते गए अनाज का सेवन वर्जित है। महिलाएं खेत या कृषि कार्य से भी दूरी रखती हैं। हरेली पर्व के दिन बनाई गई गेड़ी को भी सगरी के सामने रखकर पूजा की जाती है।

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कहानी के अनुसार, जब कंस ने देवकी के सात बच्चों को मार दिया था, तब देवकी ने हलषष्ठी माता का व्रत किया और श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। तभी से कमरछठ पर्व मातृत्व, संतान के संरक्षण और सुख-समृद्धि का प्रतीक बनकर पीढ़ी दर पीढ़ी मनाया जाता आ रहा है।









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