सूरन जिसे जिमीकंद या ओल भी कहा जाता है, भारत के कई हिस्सों में एक लोकप्रिय सब्ज़ी है। इसे शाकाहारियों का “मटन” भी कहा जाता है, क्योंकि इसका स्वाद और बनावट खास होती है। यह न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि पोषण से भरपूर भी है। सूरन में विटामिन C, B1, B6, फोलिक एसिड, फाइबर, मैग्नीशियम, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन और फॉस्फोरस भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। यही कारण है कि इसकी मांग पूरे साल बनी रहती है और किसान इसे उगाकर लाखों रुपये तक कमा सकते हैं।
सूरन की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी
सूरन की खेती गर्म और आर्द्र जलवायु में बेहतरीन होती है। इसके लिए 20 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना जाता है। अगर बारिश अच्छी हो या सिंचाई की सुविधा हो तो इसकी पैदावार और भी बढ़ जाती है। मिट्टी की बात करें तो हल्की बलुई दोमट मिट्टी सबसे बेहतर रहती है। इसमें पानी का निकास अच्छा होना चाहिए, क्योंकि पानी रुकने से कंद सड़ने लगते हैं। मिट्टी का pH स्तर 5.5 से 7.0 के बीच होना आदर्श है।
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खेत की तैयारी और बुवाई का समय
खेती शुरू करने से पहले खेत की गहरी जुताई करें, ताकि मिट्टी भुरभुरी और खरपतवार मुक्त हो जाए। अंतिम जुताई में 20-30 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद डालें, जिससे मिट्टी में पर्याप्त पोषण मिल सके।
बुवाई का समय दो परिस्थितियों पर निर्भर करता है:
सूरन की खेती बीज कंद से की जाती है। एक कंद का वजन 200 से 500 ग्राम होना चाहिए और बुवाई के समय 60×60 सेमी की दूरी पर रोपण करें।
सूरन की प्रमुख किस्में और उनकी पैदावार
आजकल बाजार में सूरन की कई उन्नत किस्में उपलब्ध हैं, जो ज्यादा उपज और बेहतर गुणवत्ता देती हैं।
इन किस्मों से प्रति एकड़ 200 क्विंटल तक उपज मिल सकती है। बाजार में इसका भाव ₹3000 से ₹4000 प्रति क्विंटल तक होता है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है।
लागत और मुनाफा
सूरन की खेती में प्रति हेक्टेयर लगभग ₹3 लाख रुपये तक की लागत आती है। इसमें खेत की तैयारी, बीज, खाद, सिंचाई और मजदूरी शामिल है। सही तकनीक और अच्छी किस्मों के इस्तेमाल से एक हेक्टेयर से ₹4 से ₹12 लाख रुपये तक की कमाई संभव है। कई किसान तो एक एकड़ में ₹1 से ₹1.5 लाख रुपये खर्च करके ₹4 से ₹5 लाख रुपये तक का शुद्ध मुनाफा कमा लेते हैं।
सिंचाई और देखभाल
सूरन की फसल को 3-4 बार सिंचाई की जरूरत होती है, खासकर मई के बाद जब मौसम गर्म हो। ज्यादा पानी से बचना जरूरी है, वरना कंद सड़ सकते हैं। खरपतवार नियंत्रण के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करें।
रोग और कीट नियंत्रण
सूरन में आमतौर पर कीट और रोग कम लगते हैं, लेकिन कभी-कभी झुलसा रोग, तना लगन और तंबाकू संडी जैसी समस्याएं आ सकती हैं। इनसे बचाव के लिए इंडोफिल, बाविस्टीन, कैप्टन या मेन्कोजेब जैसे फफूंदनाशकों का छिड़काव करें। साथ ही फसल को अधिक नमी से बचाएं।
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पोषण और धार्मिक महत्व
सूरन न सिर्फ पोषण से भरपूर है बल्कि इसका धार्मिक महत्व भी है। मान्यता है कि दीपावली के दिन सूरन का सेवन शुभ होता है। यह शरीर में विटामिन और खनिज की कमी को पूरा करता है और पाचन शक्ति को भी मजबूत बनाता है।
सूरन की खेती उन किसानों के लिए बेहतरीन विकल्प है जो कम मेहनत में ज्यादा मुनाफा चाहते हैं। सही समय पर बुवाई, अच्छी किस्मों का चुनाव और सही देखभाल से यह फसल आपको लाखों रुपये का फायदा दे सकती है।

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