गरियाबंद : छत्तीसगढ़ी संस्कृति का जीवंत पर्व तीजा (हरितालिका तीज) गरियाबंद जिले में मंगलवार को पूरे उत्साह, आस्था और परंपरागत लोक रंग के साथ धूमधाम से मनाया गया। भगवान शिव और माता पार्वती के अखंड मिलन का प्रतीक यह पर्व पूरे जिले के साथ ही मुख्यालय स्थित पुराना मंगल बाजार में आस्था का केंद्र बना रहा।सैकड़ों सुहागिन महिलाएं और युवतियां दिनभर निर्जला व्रत रखकर शिव–पार्वती की आराधना करती रहीं। पारंपरिक श्रृंगार, लोकगीतों की गूंज और भक्ति रस से सराबोर यह आयोजन छत्तीसगढ़ी संस्कृति की अनोखी छटा बिखेरता दिखा।

हरितालिका तीज का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरितालिका तीज व्रत किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन विधिविधान से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य और पति की लंबी आयु का आशीर्वाद मिलता है। वहीं, कुंवारी कन्याएं इस व्रत से सुयोग्य वर की प्राप्ति की कामना करती हैं।
यह व्रत छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति में सबसे कठिन व्रतों में गिना जाता है। इसे निर्जला व्रत कहा जाता है, जिसमें महिलाएं सूर्योदय से लेकर अगले दिन सूर्योदय तक बिना जल और अन्न ग्रहण किए उपवास करती हैं। रातभर जागरण और चार पहर की पूजा-अर्चना इस व्रत का विशेष अंग है।

करू भात से शुरू, निर्जला तपस्या तक
परंपरा के अनुसार, तीजा पर्व से एक दिन पहले महिलाएं ‘करू भात’ (हल्का व कड़वा भोजन) खाती हैं। इसे व्रत की तैयारी और आत्मसंयम का प्रतीक माना जाता है।
अगले दिन महिलाएं श्रृंगार कर गौर माता (मिट्टी की प्रतिमा) और भगवान शिव–पार्वती की प्रतिमा स्थापित कर उनका पूजन करती हैं। हल्दी, कुमकुम, चंदन, बेलपत्र, सुहाग की सामग्री और मौसमी फल अर्पित किए जाते हैं।
रात्रि में महिलाएं जागरण करती हैं, गीत गाती हैं और एक-दूसरे को हल्दी-कुमकुम का तिलक लगाकर सौभाग्य की शुभकामनाएं देती हैं। 27 अगस्त को व्रतधारी महिलाओं ने गौर माता का विसर्जन सरोवरों में भक्तिभाव के साथ किया।
स्वयं-श्रृंगार और लोक सौंदर्य का संगम
गरियाबंद के पुराना मंगल बाजार में महिलाएं पारंपरिक परिधानों, मेहँदी, बिंदी और गहनों से सजी-धजी नजर आईं। फूलों से बने फुलेरा, दीयों की रोशनी और झूलों की झंकार ने पूरा वातावरण भक्तिमय बना दिया। पारंपरिक तीजा गीतों की मधुर धुन सावन की ठंडी हवाओं के साथ गूंजती रही।
आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व
तीजा पर्व केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक एकजुटता और परिवारिक मेल-जोल का भी पर्व है। महिलाएं सामूहिक रूप से लोकगीत गाती हैं, कथाएं सुनाती हैं और एक-दूसरे को प्रोत्साहित करती हैं।
यह पर्व छत्तीसगढ़ की मातृशक्ति की सांस्कृतिक पहचान और आस्था का अद्वितीय संगम है।
यह त्योहार भगवान शिव और देवी पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक है। तीज के त्यौहार को पति-पत्नी के प्रेम और एकता का प्रतीक माना गया है -लक्ष्मी सिन्हा
लक्ष्मी सिन्हा ने कहा शिव–पार्वती के प्रेम की धारा बहती झील जैसी, मानसून की हरियाली में खिलते श्रृंगार के पुष्प…करू भात की कड़वाहट और व्रत की पवित्रता से सजती महिलाएँ, तीजा के गीतों में अपनी आस्था पिरोती हैं। झूलों पर गूँजते लोकगीत, हाथों में मेहँदी की सौगात,व्रत के सत्व की शक्ति से नई उम्मीदों का आह्वान करती हैं।यह पर्व न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि हर घर और हर मन को जोड़ने वाली सामूहिक लय भी है।”
करुँ भात से शुरू होकर निर्जला तपस्या तक, यह पर्व नारी शक्ति और समर्पण का प्रतीक है- राधिका सिन्हा
राधिका सिन्हा ने बताया वृंदावन की हरियाली तीजा का संदेश लाती है—प्रेम, व्रत और श्रद्धा की अनूठी मिसाल बनकर। एक दिन पहले ‘करू भात’ के रस–स्वाद से व्रत की तैयारी होती है, तो दूसरे दिन निर्जला तपस्या में भक्ति का आलोक झरता है।झूलों की मधुर धुन, सावन की ठंडी बयार,और गीतों की रागिनी से सजता है तीजा का यह उत्सव।यह पर्व केवल संस्कृति नहीं,बल्कि आस्था का सुधा–झरना है,जो हर दिल को छू लेता है।”पूजा में उपस्थित रही मोहनी सिन्हा संध्या सोनी रेणुका सिन्हा वंदना सिन्हा रूपाली सोनी



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