शराब घोटाला मामले में EOW ने 8 हजार पन्नों का पेश किया एक और पूरक चालान

शराब घोटाला मामले में EOW ने 8 हजार पन्नों का पेश किया एक और पूरक चालान

रायपुर : छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित शराब घोटाला मामले में राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो रायपुर (ईओडब्ल्यू) ने मंगलवार को विशेष कोर्ट में आठ हजार पन्नों का 6वां पूरक चालान पेश किया। इस चालान में बताया गया है कि जेल में बंद ब्रेवरेज कंपनी से जुड़े विजय कुमार भाटिया के साथ सप्लायर कंपनियों से जुड़े संजय मिश्रा, मनीष मिश्रा एवं अभिषेक सिंह ने कमीशन के रूप में करोड़ों रुपए कमाए हैं।इनमें 14 करोड़ रुपए विजय भाटिया को मिले हैं।

वहीं संजय, मनीष एवं अभिषेक को 11 करोड़ रुपए मिले हैं। 248 करोड़ रुपए का नुकसान ईओडब्ल्यू ने चालान में इसका भी खुलासा किया है कि तीसरी कंपनी दिशिता वेंचर्स प्रा.लि. थी, जो शराब के पुराने प्रमोटर आशीष सौरभ केडिया की है। इस तरह इन कंपनियों को लाइसेंस दिए जाने से शासन को राजस्व के रूप में 248 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।

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सिंडिकेट बनाकर कमीशनखोरी का हुआ था खेल
ईओडब्ल्यू ने विशेष न्यायालय रायपुर में चालान शीट पेश किया। इस चालान शीट में ईओडब्ल्यू ने उल्लेख किया है कि उनकी जांच विदेशी शराब पर लिए गए कमीशन पर आधारित है। इससे पूर्व जांच में ईओडब्ल्यू ने चालान शीट में उल्लेख किया था कि घोटाला करने आबकारी विभाग में एक सिंडीकेट सक्रिय था, जिसमें प्रशासनिक अधिकारी अनिल टूटेजा, अरुणपति त्रिपाठी, निरंजन दास के साथ अनवर ढेबर, विकास अग्रवाल, अरविंद सिंह आदि शामिल थे। इनके नियंत्रण में विभाग में कमीशनखोरी की अवैध गतिविधियां हो रही थीं।

10 प्रतिशत मार्जिन लाभ का दो हिस्सों में होता था बंटवारा, 3 कंपनियों को तीन साल तक दिया टेंडर
चालान शीट में यह भी बताया गया है कि, वर्ष 2020-21 से पहले विदेशी शराब सप्लायरों से आबकारी विभाग का बेवरेज कॉर्पोरेशन शराब खरीदकर उसमें शुल्क ड्यूटी जोड़कर छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन की शासकीय शराब दुकानों के माध्यम से शराब की फुटकर बिक्री कर लाभ अर्जित करता था, जो शासकीय खजाने में जमा होता था, लेकिन नई आबकारी नीति के तहत खरीदार की भूमिका में बेवरेज कॉर्पोरेशन को किनारे कर तीन प्राइवेट कंपनियों को एफएल-10ए का लाइसेंस दिया गया। जिन्हे लाइसेंस दिया गया वे सिंडीकेट के करीबी व राजनैतिक संरक्षण प्राप्त व्यक्ति थे। यह लाइसेंसी कंपनियां विदेशी शराब सप्लायरों से शराब की खरीदी कर उसमें 10 प्रतिशत का मार्जिन जोड़कर मार्केटिंग कॉर्पोरेशन को शराब बिक्री करती थीं। इस 10 प्रतिशत के मार्जिन लाभका बंटवारा दो हिस्सो में होता था। तीन साल की अवधि में इन्हीं तीन कंपनियों को टेंडर दिया जाता रहा।

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40 प्रतिशत हिस्से में 52 प्रतिशत हिस्सा भाटिया को मिलता था
ईओडब्ल्यू ने चालान में खुलासा किया है कि, तीनों कंपनियां ओम सांई बेवरेज प्रालि, अतुल सिंह और मुकेश मनचंदा की थीं, जिसमें राजनैतिक प्रेरित व्यक्ति विजय भाटिया को कंपनी में छुपा हुआ लाभार्थी बनाया गया था। कंपनी के लाभ का 60 प्रतिशत हिस्सा सिंडीकेट को दिये जाने के बाद शेष 40 प्रतिशत हिस्से में से 52 प्रतिशत हिस्सा विजय भाटिया का होता था। विजय भाटिया ने अपनी जगह पर कुछ अन्य लोगों को कंपनी में डमी डायरेक्टर बनाया और कंपनी से वेतन के रूप में तथा 16 से अधिक खातों में कंपनी से अपने लाभ के हिस्से को प्राप्त किया। इस तरह भाटिया ने इस व्यवस्था के तौर पर 14 करोड़ रुपए प्राप्त किए थे।

संजय, मनीष एवं अरविंद को मिले थे 11 करोड़

ईओडब्ल्यू की जांच के अनुसार, जिन तीन कंपनियों को लाइसेंस दिया गया था, उनमें एक अन्य कंपनी नेक्सजेन पॉवर इंजिटेक प्रा.लि. है। इस कंपनी का वास्तविक स्वामी संजय मिश्रा था जो चार्टर्ड एकाउंटेट होने के साथ शासकीय शराब दुकानों के ऑडिट के कार्य से जुड़ा था तथा सिंडिकेट अनवर ढेबर एवं अन्य लोगों को इस घोटाला में अवैध तरीके से धन को बैंकिंग चैनल के माध्यम से वैध दिखाने तथा इन्वेस्टमेंट में तकनीकी सलाहकार के रूप में मदद करता था। इस कंपनी में संजय मिश्रा ने अपने छोटे भाई मनीष मिश्रा को डायरेक्टर के रूप में जगह दी थी। इस कंपनी ने तीन साल तक सिंडीकेट को उसका हिस्सा देने के बाद लगभग 11 करोड़ रुपए प्राप्त किए हैं।








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