जशपुरनगर : एनएचएम कर्मचारियों की नियमितीकरण सहित 10 सूत्रीय मांगों को लेकर बारहवें दिन भी हड़ताल पूरे उत्साह के साथ जारी रही। संघ के प्रतिनिधियों ने बताया कि अब तक शासन स्तर से किसी भी प्रकार की सार्थक पहल नहीं कि गई है। जबकि स्वास्थ्य मंत्री एवं समिति द्वारा मीडिया में यह दावा किया जा रहा है कि उनकी पाँच मांगें मान ली गई हैं, जो कर्मचारियों के अनुसार सरासर गलत है।
कर्मचारियों का कहना है कि शासन ने केवल एक मांग (कार्य मूल्यांकन व्यवस्था में पारदर्शिता) को ही पूरा किया है। शेष चार मांगों पर शासन ने आदेश तो जारी किए हैं, किंतु मूल मांगों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया गया है, जिससे वे अपूर्ण हैं। ऐसे में हड़ताल समाप्त करना संभव नहीं है।
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना
कर्मचारियों ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का भी हवाला दिया जिसमें अदालत ने अस्थायी व संविदा नियुक्तियों की प्रथा को जनता के विश्वास और कर्मचारियों के अधिकारों के विरुद्ध बताया था। अदालत ने कहा था कि सार्वजनिक रोजगार की नींव निष्पक्षता, तर्कसंगतता और काम की गरिमा पर होनी चाहिए, न कि बजट संतुलन के नाम पर कर्मचारियों के शोषण पर। कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि छत्तीसगढ़ शासन इस आदेश की अनदेखी करते हुए केवल दबाव और दमनात्मक नीति का सहारा ले रहा है।
गायन और कविता से जताई पीड़ा
धरना स्थल पर कर्मचारियों ने आज गीत और कविताओं के माध्यम से अपनी मांगों को शासन-प्रशासन तक पहुँचाने का प्रयास किया। उनका कहना था कि इस तरह की रचनात्मक अभिव्यक्ति से शायद सत्ताधारी और नीति-निर्धारक जाग जाएँ।
धरना स्थल पर गाई गई कविता की पंक्तियाँ—
"शासन हो या प्रशासन हो,
इसमें न कोई दुशासन हो।
प्यासे को पानी मिले,
और भूखे को राशन हो।
झूठे वायदे से कुछ नहीं,
सच्चाई वाला भाषण हो।
काम हो सब भलाई के,
सबके लिये सुखासन हो।"
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